दलितों के अधिकार के लिए गांधी से अड़ गए थे अंबेडकर, पूना पैक्ट ही अनटचेबिलिटी कानून का आधार बना

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Atul Tiwari
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दलितों के अधिकार के लिए गांधी से अड़ गए थे अंबेडकर, पूना पैक्ट ही अनटचेबिलिटी कानून का आधार बना

BHOPAL. भीमराव अंबेडकर की 6 दिसंबर को पुण्यतिथि है। 6 दिसंबर साल 1956 में बाबा साहब का निधन हो गया था। इसके बाद से ही इस दिन को परिनिर्वाण के तौर पर मनाया जाता है। बाबा साहेब ने निचली जातियों के उत्थान के लिए काम किया था। वह संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन थे।1990 में बाबा साहेब अंबेडकर को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। बाबा साहेब अंबेडकर का जन्म 1891 को मध्य भारत प्रांत (अब मध्य प्रदेश) के महू छावनी शहर में हुआ था। उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पीएचडी की थी। 2003 में इस शहर का नाम महू से बदलकर डॉ. अंबेडकर नगर कर दिया गया है। उनका परिवार मूलतः मराठी और धार्मिक तौर पर कबीर पंथी था। 6 दिसंबर 1956 में खराब स्वास्थ्य के कारण अंबेडकर का निधन हो गया।



बाबा साहब, गांधी जी और पूना पैक्ट



24 सितंबर 1932 को हिंदू लीडर्स (महात्मा गांधी) और भीमराव अंबेडकर के बीच समझौता हुआ। इसे पूना पैक्ट (पूना समझौता) के नाम से जाना जाता है। ये समझौता पूना की येरवडा जेल में हुआ था। ब्रिटिश सरकार ने इस समझौते से कम्यूनल अवार्ड में संशोधन के रूप में अनुमति दी थी। समझौते में दलितों के लिए अलग निर्वाचन मंडल को हटा दिया गया। साथ ही प्रांतीय विधानमंडलों में दलितों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 71 से बढ़ाकर 148 और केंद्रीय विधायिका में कुल सीटों की संख्या 18% कर दी गई। गांधीजी को लगता था कि दलितों को हिंदुओं से अलग निर्वाचन मंडल दिया जाना आजादी की लड़ाई को कमजोर करेगा। इसके चलते गांधीजी ने इसके विरोध में 18 सितंबर 1932 से उपवास करना शुरू कर दिया। अंबेडकर ने पृथक निर्वाचक मंडल को रद्द करने से इनकार कर दिया। बाद में अंबेडकर और हिंदू नेता इस बात पुरप सहमत हो गए कि हिंदू निर्वाचक मंडल के अंदर ही दलितों को प्रतिनिधित्व दिया जाए और इसे 10 साल के लिए बढ़ा दिया जाए।






महिलाओं के लिए बनाया कानून

  

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए पूरी हिंदू व्यवस्था और समाज से लंबी लड़ाई लड़ी। उन्होंने हमेशा ही महिलाओं को समानता, शिक्षा, सम्मान, अधिकार और अपनी समर्थता को समझने पर जोर दिया। उन्होंने महिलाओं को मनुवादी सोच से निकाला। उनकी समाज में बराबरी के लिए कानून बनाया। उन्हें हर क्षेत्र में जगह मिल सके ऐसी व्यवस्था बनाई। हिन्दू कोड बिल लाकर उन्होंने महिलाओं को भरण-पोषण, तलाक, पति की हैसियत के हिसाब से खर्चे का अधिकार दिलाया।



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अंबेडकर ने लिखीं कई किताबें 



अंबेडकर अपने दौर के सभी राजनेताओं से ज्यादा पठन पाठन में संलग्न रहे। ग्यारह अलग अलग भाषाओं पर पकड़ रखने वाले अंबेडकर ने कुल 32 किताबें, 10 वक्तव्य के साथ  चार रिसर्च थीसिस और ढेर सारी पुस्तकों की समीक्षाएं भी लिखी है। भारतीय बौद्धों का धर्मग्रंथ, द प्रॉब्लम ऑफ द रूपी : इट्स ओरिजिन एंड इट्स सोल्युशन आदि पुस्तकें महत्वपूर्ण हैं। उनकी लेखनी की क्षमता का अनुमान आप इसी से लगा सकते हैं कि आज "बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर: संपूर्ण वाङ्मय" के 22 भाग प्रकाशित हो चुके हैं, फिर भी उनकी रचनाओं का प्रकाशन और संकलन का कार्य चल ही रहा है।



ब्राह्मण परिवार की थी डॉ. अंबेडकर की दूसरी पत्नी 



डॉ. शारदा कबीर (शादी के बाद सविता अंबेडकर) का जन्म महाराष्ट्र के एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वो डॉक्टर थीं। बाबा साहेब की दूसरी पत्नी बनीं। जिस समय अंबेडकर ने उनसे शादी की, उनके परिवारजन ही नहीं बल्कि बहुत से अनुयायी भी खासे नाराज हुए। अंबेडकरवादियों को समझ में नहीं आया कि जिन सवर्ण जातियों के खिलाफ बाबा साहेब ने लगातार संघर्ष का बिगुल बजाया, उसी वर्ग की महिला से क्यों शादी कर ली। वैसे डॉ. अंबेडकर ने तमाम किताबें लिखीं लेकिन जब वो द बुद्धा एंड हिज धम्म लिख रहे थे तो भूमिका में उन्होंने खासतौर पर सविता माई का जिक्र किया था। उन्होंने बताया कि किस तरह से केवल उनके कारण उनकी जिंदगी के 8-10 साल बढ़े हैं।



बाबा साहेब की आर्थिक मुद्दों पर समझ 



बाबा साहेब की मौद्रिक प्रणाली की समझ उनकी पुस्तक, “द प्रॉब्लम ऑफ रुपी: इट्स ओरिजिन एंड सॉल्यूशन” से स्पष्ट होती है, जिसे उनके डीएससी शोध प्रबंध के हिस्से के रूप में लिखा गया है। यह पुस्तक उस समय भारतीय मुद्रा की समस्या का विश्लेषण करती है, जब ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार और भारतीय व्यापारिक हितों के बीच टकराव हुआ था। दरअसल, इस पुस्तक के तहत उन्होंने विनिमय दर और कीमतों में स्थिरता के लिए तर्क दिया। यहां तक कि उन्होंने हिल्टन यंग कमीशन के सामने अपनी दलीलें भी पेश कीं, जिन्हें भारतीय रिजर्व बैंक बनाते समय ध्यान में रखा गया था।



संविधान निर्माण में भीम राव अंबेडकर का अहम योगदान



बाबा साहब संविधान ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन थे। बाबा साहब को अपने शुरुआती जीवन में काफी भेदभाव का सामना करना पड़ा था। उन्होंने तभी ठान लिया था कि वो समाज को इस कुरीति से मुक्ति दिलाने के लिए तत्पर रहेंगे। वे कहा करते थे कि स्‍वतंत्रता का अर्थ साहस है और साहस एक पार्टी में व्‍यक्तियों के संयोजन से पैदा होता है। शिक्षा महिलाओं के लिए भी उतनी ही जरूरी है, जितनी पुरषों के लिए। ज्ञान हर व्‍‍यक्ति के जीवन का आधार है।



शोषितों के लिए जिंदगीभर संघर्ष किया



डॉ. भीमराव अंबेडकर भारत के प्रथम कानून मंत्री भी थे। उन्हें दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों के मसीहा के रूप में जाना जाता है। उन्होंने 1956 में सामाजिक, राजनीतिक आंदोलन और दलित बौद्ध आंदोलन चलाया। जिसमें देश के लाखों दलित बहुजनों ने हिस्सा लिया। उन्होंने मूर्ति पूजा का हमेशा विरोध किया। उन्होंने पूजा-पाठ को हिंदू समाज का दोष बताया। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म, उसका पालन, पूजा पाठ लोगों को कमजोर बनाता है। उन्होंने कहा कि जीवन में शिक्षा ही सब कुछ है, अगर शिक्षा पा सकें तो जीवन में कुछ भी हासिल करना मुश्किल नहीं होगा। उनके जीवन की अनेक ऐसी घटनाएं हैं, जिन्हें लोग मोटिवेशन के तौर पर याद रखते हैं। 


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