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Dr. BR Ambedkar Death Anniversary.
भारतीय संविधान के जनक कहे जाने वाले डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर 'बाबा साहेब' की पुण्यतिथि, जिसे महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है, भारत में 6 दिसंबर को महापरिनिर्वाण दिवस हर साल श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाया जाता है। डॉ. अंबेडकर, (Dr. BR Ambedkar ) जो भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माता थे, भारतीय समाज में सुधार लाने के लिए समर्पित थे।
महान न्यायविद, समाज सुधारक थे डॉ. अंबेडकर
बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर ने देश में दलितों के आर्थिक और सामाजिक सशक्तीकरण अस्पृश्यता उन्मूलन और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए लड़ाई लड़ी। डॉ. अंबेडकर ने समाज में फैली अस्पृश्यता और जातिवाद जैसी बुराइयों के खिलाफ आंदोलन किया और इन असमानताओं को खत्म करने के लिए कड़े कदम उठाए। वह एक महान न्यायविद, समाज सुधारक और भारतीय राजनीति के अग्रणी थे। उन्होंने भारतीय संविधान को तैयार करने में अहम भूमिका निभाई, जिसमें समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों को शामिल किया गया, जो आज भी हमारे समाज के मूल सिद्धांत हैं।
बाबा साहब ने क्यों कही थी संविधान जलाने की बात
डॉ. अंबेडकर का योगदान भारतीय समाज के विकास के लिए अपार था, और उनका विचारधारा आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है। उनका संघर्ष और उनके द्वारा किए गए कार्य भारतीय समाज को एक समान, समृद्ध और न्यायपूर्ण बनाने के लिए एक अमिट छाप छोड़ गए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं जिस आज जिस संविधान से देश चल रहा है, और विपक्ष लगातार संविधान (Constitution) के खतरे में होने और खत्म कर देने के आरोप नरेंद्र मोदी सरकार पर हमलावर है, एक ऐसा भी था जब डॉ. भीमराव अंबेडकर कभी संविधान को जला डालने की बात तक कह चुके थे। तो चलिए जानते हैं कि आखिर बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर एक बार संविधान जलाने की बात क्यों कहना पड़ा था।
राज्यसभा में बहस में दिया था बयान
आजादी के बाद भारत को लोकतांत्रिक देश बनाने में डॉ. भीमराव आंबेडकर की अहम भूमिका थी, क्योंकि भारतीय संविधान के निर्माण में उनकी अहम योगदान था। वह संविधान ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष थे, 26 नवंबर 1949 को संविधान स्वीकार करने के बाद 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया। इसके 3 साल बाद एक समय ऐसा भी आया जब बाबा साहब ने संसद में संविधान को जलाने की बात कह डाली। उन्होंने कहा था कि संविधान को आग लगाने वाले वह पहले व्यक्ति होंगे।
दरअसल, दो सितंबर 1953 को राज्यसभा में संविधान संशोधन को लेकर बहस चल रही थी, डॉ. बाबा साहब राज्यपाल की शक्तियों को बढ़ाने के मुद्दे पर मांग कर रहे थे। वह अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा पर भी अडिग थे। बहस के दौरान डॉ. अंबेडकर ने यह यह कहा कि निम्न वर्ग के व्यक्तियों को हमेशा इस बात का भय रहता है कि बहुसंख्यक उनके लिए खतरा बन सकते हैं।
मैं ही बनूंगा जलाने वाला पहला व्यक्ति
उन्होंने कहा, मेरे साथी मुझसे कहते हैं कि संविधान मैंने तैयार किया है। मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि इसे जलाने वाला पहला व्यक्ति भी मैं ही बनूंगा। यह किसी के लिए भी उचित नहीं है। कई लोग इस दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं, लेकिन यह भी ध्यान में रखना आवश्यक है कि एक ओर बहुसंख्यक हैं और दूसरी ओर अल्पसंख्यक। बहुसंख्यक यह नहीं कह सकते कि अल्पसंख्यकों को महत्व नहीं दिया जाना चाहिए। ऐसा करने से लोकतंत्र को हानि पहुंचेगी। राज्यसभा में डॉ. अंबेडकर का यह बयान सभी को चौंकाने वाला था। सभी के मन यह विचार चल रहा था उन्होंने ऐसा क्यों कहा। बता दें कि डॉ. अंबेडकर अल्पसंख्यक लोगों पर अत्याचार के सख्त खिलाफ थे।
दो साल बाद बताया बयान देने का कारण
इस बहस के दो साल के बाद यह मुद्दा 19 मार्च 1955 को राज्यसभा में फिर उठाया गया। जब संविधान में चौथे संशोधन से जुड़े विधेयक पर चर्चा चल रही थी। सदन की चर्चा में हिस्सा लेने पहुंचे डॉ. अंबेडकर से पंजाब से सांसद डॉ. अनूप सिंह ने सवाल किया था कि पिछली बार आखिर आपने यह क्यों कहा कि वह पहले इंसान होंगे जो संविधान को जलाएंगे। सांसद के सवाल पर बाबा साहब ने कहा कि पिछली बार जल्दबाजी में पूरा जवाब नहीं दे पाए थे। उन्होंने कहा, यह बयान एकदम सोच-समझकर दिया था, मैनें सोचकर विचार कर ही कहा कि मैं संविधान को जला देना चाहता हूं।
मंदिर में असुर बसने लगें तो....
बाबा साहब ने अपने बयान को स्पष्ट करते हुए कहा कि हम मंदिर इसलिए बनाते हैं ताकि भगवान उसमें निवास करें। यदि भगवान के आने से पहले ही असुर (दानव) वहां बसने लगें, तो मंदिर को नष्ट करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता। कोई भी यह सोचकर मंदिर नहीं बनाता कि उसमें असुर निवास करेंगे। सभी की इच्छा होती है कि मंदिर में देवताओं का वास हो, यही कारण है कि उन्होंने संविधान जलाने की बात की थी।
बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों बराबर
डॉ. अंबेडकर का जवाब सुनने के बाद एक सांसद ने कहा कि मंदिर को नष्ट करने के बजाय दानव को ही खत्म करने की बात क्यों नहीं करनी चाहिए। इस पर डॉ. अंबेडकर ने कहा कि हमारे पास इतनी ताकत नहीं है, हम ऐसा नहीं कर सकते। हमेशा दानवों ने देवों को हराया, अमृत उन्हीं के पास था, जिसे लेकर देवों को भागना पड़ा था। उन्होंने आगे कहा था कि हमें संविधान को आगे लेकर जाना है तो हमें ध्यान रखना होगा कि अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक दोनों हैं। और अल्पसंख्यकों को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। बाबा साहब ने यह भी कहा कि अल्पसंख्यकों को नजरअंदाज करना लोकतंत्र के लिए खतरनाक होगा। उनका यह विचार था कि संविधान को प्रभावी बनाने के लिए यह जरूरी है कि बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों के हितों का समान रूप से ध्यान रखा जाए। दरअसल, उस वक्त संविधान के कई प्रावधानों में संशोधनों को लेकर बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर काफी नाराज थे। उनका मानना था कि कोई भी संविधान कितना भी अच्छा क्यों नहीं हो, जब तक इसे ढंग से लागू नहीं किया जाएगा तो उपयोगी साबित नहीं होगा।
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