New Delhi. ओडिशा के बालासोर में दुखद ट्रेन हादसे में मरने वालों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। अब तक करीब 288 मौतों की पुष्टि हो चुकी है, वहीं अभी भी बोगियों में कई लाशें फंसी होने की जानकारी आ रही है। ओडिशा के इस भयावह ट्रेन हादसे के बाद हजारों परिवार अपने परिवार के उन सदस्यों की खोजखबर लेने परेशान हो रहे हैं जो उस ट्रेन में सवार थे। इधर जानकार इस रेल हादसे की तुलना साल 1964 में हुए धनुषकोडी स्टेशन पर हुए हादसे से कर रहे हैं। क्या था धनुषकोडी स्टेशन का रेल हादसा जानिए इस खबर में।
चक्रवाती तूफान की चपेट में आ गई थी ट्रेन
15 दिसंबर 1964 को हुए इस रेल हादसे में अंडमान द्वीप समूह के पास भयंकर तूफान की चेतावनी दी थी। चक्रवाती तूफान 110 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से आगे बढ़ रहा था। इसी समय पंबन से धनुषकोडी तक चलने वाली पैसेंजर ट्रेन यात्रियों को लेकर धनुषकोडी रेलवे स्टेशन की तरफ निकली। रात करीब 12 बजे ट्रेन धनुषकोडी पहुंचने ही वाली थी कि तूफान तेज हो गया। सिग्नल में आई खराबी और तेज तूफान के कारण लोको पायलट ने ट्रेन धनुषकोडी स्टेशन से कुछ दूरी पर खड़ी कर दी। पायलट ने काफी देर तक सिग्नल का इंतजार किया लेकिन जब उसे सिग्नल नहीं मिला तो उसने रिस्क लेते हुए बीच तूफान में ही ट्रेन आगे बढ़ा दी।
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और समंदर में समा गई ट्रेन
ट्रेन समंदर के ऊपर बने पंबन ब्रिज से धीमी गति से सरक रही थी। अचानक तूफान के चलते लहरें इतनी तेज हो गई कि पूरी कि पूरी ट्रेन ही समंदर की गहराई में जा समाई। बताया जाता है कि ट्रेन में 200 लोग सवार थे। क्योंकि 100 यात्री 5 रेल कर्मचारियों के अलावा बाकी सभी बेटिकट यात्री थे। माना जाता है कि यह चक्रवाती तूफान अब तक का सबसे खतरनाक तूफानों में से एक था।
तूफान के कारण भी गई थीं हजारों जानें
बताया जाता है कि यह भारत के इतिहास के सबसे शक्तिशाली तूफानों में से एक था। इसकी तीव्रता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें धनुषकोडी रेलवे स्टेशन का ही नामोनिशान मिट गया था। वहीं इस तूफान के चलते करीब डेढ़ से 2 हजार लोगों की जान चली गई थी। अकेले धनुषकोडी में ही एक हजार लोग मरे थे।