New Delhi: इलेक्टोरल बॉन्ड ( electoral bond) से अभी तक जो जानकारी उभरकर आई है, वह प्याले में तूफान उठाने जैसी ही है और इस जानकारी को तो फिलहाल ‘खोदा पहाड़- निकली चुहिया’ सरीखा माना जा रहा है। जानकारी में अभी तक यह निकलकर नहीं आया है कि किस कंपनी ( compnies ) ने कौन सी राजनीतिक पार्टी ( political parties ) को कितना चंदा दिया। अभी तक हंगामा यह हो रहा है कि बीजेपी को सबसे अधिक चंदा मिला, लेकिन राजनीति की गेमिंग समझने वाले कह रहे हैं कि जिस पार्टी की सरकार सत्ता में होती है, उसे सबसे ज्यादा चंदा मिलने का रिवाज रहा है। यह सामान्य बात है।
जानकारी में तूफान मीसिंग है
चुनाव आयोग ने गुरुवार को जब अपनी वेबसाइट पर इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी डाली तो घंटों तक सोशल मीडिया पर आरोप-प्रत्यारोप चले कि फलां कंपनी ने बीजेपी को या अन्य पार्टी को मोटा चंदा दिया, लेकिन जब डिटेल छनकर सामने आई तो पता चला कि यही जानकारी तो मीसिंग है, जो तूफान मचा सकती थी। यानि अपलोड की गई जानकारी में यह तो पता चला रहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड को भुनाकर सबसे अधिक चंदा किस राजनीतिक पार्टी ने प्राप्त किया, लेकिन यह जानकारी आधिकारिक तौर पर पता नहीं चल रही है कि किस कंपनी या संस्था ने किस पार्टी को अधिक या कम चंदा दिया है। यह जानकारी पूरे तौर पर गायब है।
जिसकी सरकार, उसे सबसे अधिक चंदे की परंपरा
खास बात यह है कि बॉन्ड ने यह तो बता दिया है कि देश की अधिकतर छोटी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों को चंदा मिल रहा है, जिनमें बीजेपी, कांग्रेस के अलावा तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, AIADMK, बीआरएस, शिवसेना, TDP, YSR कांग्रेस, डीएमके, JDS, एनसीपी, जेडीयू और राजद तक शामिल हैं। सबसे अधिक चंदा बीजेपी को 6,060 करोड़ रुपये मिला है। दूसरे नंबर पर तृणमूल कांग्रेस 1,609 और तीसरे नंबर पर कांग्रेस को 1,421 करोड़ रुपये का चंदा मिला है। इसके बाद बीआरएस, बीजद, डीएमके, वाईएसआर कांग्रेस, टीडीपी, शिवसेना, राजद शामिल है। आरोप लग रहे हैं कि सबसे अधिक चंदा बीजेपी को क्यों मिला है। इस मसले पर लोकसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा का कहना है कि यह सामान्य बात है। केंद्र में जिस पार्टी की सरकार होती है, उसे सबसे अधिक चंदा मिलता है, यह परंपरा सालों से चल रही है।
प्रशांत भूषण व कुरेशी की मानें तो…
अब भारतीय स्टेट बैंक पर आरोप लग रहे हैं कि उसने अधूरी जानकारी दी है। चुनावी बॉन्ड स्कीम में याचिकाकर्ता एडीआर की तरफ से अदालत में पेश हुए सीनियर वकील प्रशांत भूषण ने एक्स (X) पर लिखा,'चुनाव आयोग की ओर से अपलोड की गई इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी में बॉन्ड के सीरियल नंबर नहीं हैं। इससे ये पता चलता कि किसने किसके लिए बॉन्ड खरीदा गया, जबकि एसबीआई के शपथपत्र में कहा गया था कि ये जानकारी अलग-अलग जगह दर्ज हैं।' पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने भी मीडिया से कहा है कि एसबीआई ने चुनाव आयोग को जो आंकड़े दिए हैं, उससे ये पता करना मुश्किल होगा किस बॉन्ड खरीदार ने किस पार्टी के लिए इसे खरीदा। यानि आरोप लग रहे हैं एसबीआई की ओर से अधूरी जानकारी दी गई है।
क्या एसबीआई ने अधूरी जानकारी दी है?
इस मसले पर एसबीआई ने RTI व अन्य माध्यमों से जो जानकारी दी है, उसके अनुसार इलेक्टोरल बॉन्ड में सिक्योरिटी नंबर लगाए गए हैं ताकि उनकी ऑडिट चेन का पता लग सके। यानि यह बॉन्ड कहां बिका और किसने खरीदा। उसका कहना है कि उसने यह ऑडिटिंग नहीं की है और इसका मिलान करने के लिए उसे वक्त चाहिए। आरोप लग रहे हैं कि बॉन्ड में यूनिक नंबर भी है, जो पूरी चेन खोल सकता है, उसके बावजूद यह बात समझ से परे है कि आधुनिक ट्रांजेक्शन के इस युग में एसबीआई को इसकी जानकारी अभी तक क्यों नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार जोसेफ बर्नाड का कहना है कि यह जानकारी एसबीआई के पास न हो, ये समझ से परे है। मुझे लगता है कि इसका निर्णय भी सुप्रीम कोर्ट को ही करना होगा।