RSS की मैगजीन पाञ्चजन्य ने हिटलर से की इंदिरा गांधी की तुलना, लिखा- इन बातों को छोड़ना वैसा ही, जैसे नाजी पार्टी को पनपने देना

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Atul Tiwari
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RSS की मैगजीन पाञ्चजन्य ने हिटलर से की इंदिरा गांधी की तुलना, लिखा- इन बातों को छोड़ना वैसा ही, जैसे नाजी पार्टी को पनपने देना

NEW DELHI. आज (25 जून) को आपातकाल के 48 साल पूरे हो गए। इस मौके पर RSS की विचारधारा से प्रेरित पत्रिका ‘पाञ्चजन्य’ ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तुलना जर्मनी के तानाशाह हिटलर से की है। मैगजीन के कवर पृष्ठ पर आमने-सामने हिटलर और इंदिरा गांधी की तस्वीर लगाते हुए लिखा, 'दो तानाशाह, एक जैसी इबारत।' उसके ठीक नीचे लिखा, 'हिटलर के जघन्य अपराधों को नकारने अथवा भुलाने पर यूरोप में कई जगह कानूनी पाबंदी है। यह उनके लिए अस्तित्व रक्षा का प्रश्न है। यही स्थिति भारत में इंदिरा गांधी के लगाए आपातकाल की है, जिसे भुलाना लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए खतरनाक हो सकता है। आइए, याद करें 25 जून 1975 की काली रात से शुरू हुई वह दास्तान।'



आपातकाल की लोमहर्षक कहानी... 



इसके आगे आवरण कथा पृष्ठ पर हाथ में हथकड़ी लगे जयप्रकाश नारायण की चर्चित तस्वीर के साथ शीर्षक 'वह भयावह कहानी' में लिखा है, अगर यूरोप नाजीवाद और फासीवाद के सच को विस्मृत कर देगा, तो वहां फिर से वही सब होने से बचना संभव नहीं रह जाएगा। यही स्थिति भारत के साथ है। यदि हम आपातकाल को विस्मृत कर देंगे तो हमारे लिए भी अपने लोकतंत्र को बचाए रखना संदिग्ध हो जाएगा। आपातकाल की लोमहर्षक कहानी लाखों लोगों को जेल में बंद करके, लोकतंत्र का, कानून का, संविधान का, मर्यादा का, हर तरह की संस्था का, न्यायपालिका का गला घोटकर स्वयं को सत्ता में बनाए रखने की तानाशाही सनक की कहानी है।



'तानाशाह इंदिरा' 



आगे आवरण पृष्ठ में लिखा गया है कि इन बातों को बीती मानकर छोड़ना वैसा ही होगा, जैसे यूरोप में किसी नाजी पार्टी को फिर से पनपने देना। यह न तो विचारधारा का प्रश्न है, न राजनीति का। यह भारत के लोकतंत्र की रक्षा का प्रश्न है। इसके साथ ही शिवेंद्र राणा के 'तानाशाह इंदिरा' समेत कुछ अन्य लेखकों के लेख में आपातकाल पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।



निशाने पर राहुल गांधी, गांधी से तो कांग्रेस का कोई नाता ही नहीं 



पत्रिका के इसी अंक में कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर भी करारा प्रहार है। संपादकीय में पत्रिका के संपादक हितेश शंकर ने गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देने पर कांग्रेस पार्टी की बौखलाहट के साथ आपातकाल का जिक्र करते हुए लिखा है कि नाम में गांधी का पुछल्ला जोड़कर हिटलर के कदमों पर चलती वह कांग्रेस न केवल अहिंसा से दूर और नाजीवाद के पास है, बल्कि गांधी से तो उसका कोई नाता ही नहीं है।



कांग्रेस के लिए ‘गांधी’ का अर्थ... नोटों पर छपे गांधी राजनीतिक करेंसी 



आगे वह लिखते हैं- प्रश्न है कि क्या कांग्रेस को गोरक्षा को लेकर, कन्वर्शन (धर्मांतरण) और ईसाई मिशनरियों की भूमिका को लेकर महात्मा गांधी के विचारों का अनुमान भी है? क्या कांग्रेस के लिए ‘गांधी’ शब्द के मात्र दो अर्थ हैं - एक करेंसी नोटों पर छपे गांधी और दूसरे वह गांधी, जिन्हें कांग्रेस के दरबारी राजनीतिक करेंसी समझते हैं? जो कांग्रेस मुस्लिम लीग को सेक्युलर होने का प्रमाणपत्र देती है, उस कांग्रेस को गीता प्रेस सांप्रदायिक नजर आती है?



...ताकि फिर ऐसा काला अध्याय देश के लोकतंत्र में दोबारा ना आए



आपातकाल की बरसी पर शनिवार को दिल्ली में ही कई स्थानों पर आयोजन हुए। दीनदयाल उपाध्याय मार्ग स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज के बैनर तले आपातकाल के दौरान जेलों में बंद हुए लोग तथा लोकतंत्र को लेकर चिंतित लोग जुटे तथा कहा कि वे लोग इसलिए इस दिन को याद कर रहे हैं ताकि फिर ऐसा काला अध्याय देश के लोकतंत्र में दोबारा न आए।


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