UP News: उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में एक बड़े फर्जीवाड़े का मामला सामने आया है, जिसमें एक ब्लॉक के 11 गांवों में 50,000 से ज्यादा फर्जी जन्म प्रमाण पत्र बनाए गए हैं।
कई मामलों में तो ऐसे गांवों में भी जन्म प्रमाण पत्र बने, जहां उस धर्म और जाति के लोग रहते ही नहीं थे। यह मामला अब एटीएस (ATS ) की जांच में भी शामिल हो गया है। रायबरेली पुलिस ने इस मामले में अब तक 18 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। एक साल की जांच के बाद अब डीजी, सीआरएस से फर्जी जन्म प्रमाण पत्र रद्द करने का आदेश दिया गया है।
कैसे शुरू हुआ
यह पूरा फर्जीवाड़ा रायबरेली के सलोन कस्बे के मोहम्मद रियाज और उसके बेटे जीशान के जन सुविधा केंद्र से शुरू हुआ था। इन जन सुविधा केंद्रों से 11 गांवों के फर्जी जन्म प्रमाण पत्र बनाए गए। यह केंद्र सलोन ब्लॉक के गांवों में स्थित था, जहां पंचायत सचिव विजय यादव का भी प्रभाव था।
किस प्रकार हुआ फर्जीवाड़ा
पंचायत सचिव विजय यादव और जीशान के बीच बढ़ती निकटता ने इस फर्जीवाड़े को हवा दी। विजय यादव ने अपनी लॉगिन आईडी और सरकारी नंबर पर आने वाले ओटीपी को जीशान को देना शुरू कर दिया, जिससे फर्जी जन्म प्रमाण पत्र बनाए गए। इन प्रमाण पत्रों में कोई भी गांव के निवासी नहीं था और अधिकांश प्रमाण पत्र मुस्लिम समुदाय के लोगों के थे।
किस गांव में कितने फर्जी जन्म प्रमाण पत्र बने
- पालहीपुर – 13,707
- नूरुद्दीनपुर – 10,151
- पृथ्वीपुर – 9,393
- सांडा सैदन – 4,897
- माधवपुर निनईया – 3,746
- लहूरेपुर – 3,780
- सिरसिरा – 2,773
- गढ़ी इस्लामनगर – 2,255
- औनानीश – 1,665
- गोपालपुर उर्फ अनंतपुर – 225
- दुबहन – 2
बिहार तक फैला है रैकेट
इस फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद जांच में पता चला कि यह रैकेट रायबरेली के अलावा आजमगढ़, कुशीनगर और बिहार में भी फैल चुका था। रायबरेली पुलिस ने इस मामले में दरभंगा के रविकेश और सोहेल समेत 18 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है।
प्रमाण पत्र रद्द होंगे
रायबरेली जिला प्रशासन ने अब महानिदेशक, जन्म मृत्यु पंजीकरण निदेशालय को 52,594 फर्जी जन्म प्रमाण पत्र रद्द करने के आदेश भेज दिए हैं।
कौन हैं ये लोग?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिनके लिए ये फर्जी जन्म प्रमाण पत्र बनाए गए, वे असल में कहां हैं? क्या वे भारत के नागरिक हैं या फिर ये लोग अवैध रूप से भारत में रह रहे बांग्लादेशी या रोहिंग्या हैं? यह मामला अब एटीएस और अन्य जांच एजेंसियों के लिए एक गंभीर जांच का विषय बन गया है।