BHOPAL. मशहूर कवि और चित्रकार इमरोज का 97 साल की उम्र में निधन हो गया है। इमरोज ने मुंबई में कांदिवली स्थित अपने आवास पर आखिरी सांस ली। वे कुछ समय से उम्र संबंधी परेशानियों से गुजर रहे थे। 1926 में पाकिस्तान में जन्मे इमरोज का असली नाम इंद्रजीत सिंह था।
ऐसे शुरू हुई थी इमरोज-अमृता की प्रेम कहानी
इमरोज और अमृता प्रीतम की प्रेम कहानी दुनियाभर में मशहूर है। अमृता, इमरोज को जीत कहकर बुलाती थीं। अमृता का निधन 31 अक्टूबर 2005 को हुआ था। अमृता ने अपने आखिरी पलों में इमरोज के लिए एक कविता भी लिखी थी। इस कविता के शब्द थे- मैं तुम्हे फिर मिलूंगी…। इमरोज ने भी अमृता के लिए कविता लिखी थी। इस कविता के शुरुआत शब्द थे- उसने जिस्म छोड़ा है, साथ नहीं।
अमृता, इमरोज की पीठ पर उंगलियों से लिखती थीं साहिर का नाम
इश्क लिखने वाली अमृता को भी किसी से इश्क हुआ और किसी और को भी अमृता से इश्क हुआ, लेकिन इश्क के इतने पास होते हुए भी अमृता ताउम्र उसके लिए तरसती रहीं। अमृता ने साहिर से प्यार किया और इमरोज ने अमृता से और फिर इन तीनों ने मिलकर इश्क की वह दास्तां लिखी जो अधूरी होते हुए भी पूरी थी। साहिर, अमृता और इमरोज का प्यार जमाने से अलहदा था। इश्क की पहले से खिंची लकीरों से जुदा था। अधूरी मोहब्बत का ये वो मुकम्मल अफसाना है जिसकी मिसाल इश्क करने वाले आज तक देते हैं।
अमृता अक्सर करती थीं ये शिकायत
इमरोज, अमृता के जीवन में काफी देर से आए। अमृता इस बात की शिकायत करती थीं। वह इमरोज से पूछती थी अजनबी तुम मुझे जिंदगी की शाम में क्यों मिले, मिलना था तो दोपहर में मिलते। जब इमरोज ने कहा कि वह अमृता के साथ रहना चाहते हैं तो उन्होंने कहा- पूरी दुनिया घूम आओ फिर भी तुम्हें लगे कि साथ रहना है तो मैं यहीं तुम्हारा इंतजार करती मिलूंगी। कहते हैं कि तब कमरे में सात चक्कर लगाने के बाद इमरोज ने कहा कि घूम ली दुनिया। मुझे अब भी तुम्हारे ही साथ रहना है।
ये पत्र इमरोज ने अमृता को लिखा
तुम जिंदगी से रूठी हुई हो, मेरी भूल की इतनी सजा नहीं, आशी। यह बहुत ज्यादा है। यह दस साल का वनवास, नहीं-नहीं मेरे साथ ऐसे न करो। मुझे आबाद करके वीरान मत करो। वह मेज, वह दराज, वे रंगों की शीशियां, उसी तरह रोज उस स्पर्श का इंतजार करते हैं, जो उन्हें प्यार करती थी और इनकी चमक बनती थी। वह ब्रश, वे रंग अभी भी उस चेहरे को, उस माथे को तलाश करते हैं। उसका इंतजार करते हैं जिसके माथे का यह सिंगार बनकर ताजा रहते थे, नहीं तो अब तक सूख गए होते। तुम्हारे इंतजार का पानी डालकर मैं जिन्हें सूखने नहीं दे रहा हूं पर इनकी ताजगी तुम्हारे साथ से ही है, तुम जानती हो। मैं भी तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं, रंगों में भी जिंदगी में भी। तुम्हारा इमरोज