NEWDELHI. तुर्किए में आए भूकंप में बाद दुनियाभर के वैज्ञानिक भविष्य में आने वाले भूकंप को लेकर काफी आशंकित हैं। भारत में भी वाडिया हिमाचल भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने हिमाचल में 20 ऐसे स्थानों का अनुमान लगाया, जहां कभी भी आठ या इससे अधिक रिएक्टर स्केल के भूकंप के झटके आ सकते हैं। भूकंप के बारे में वैज्ञानिक धारणा है कि 5 या उससे अधिक तीव्रता के भूकंप से बड़ी बड़ी बिल्डिंग कांप जाती हैं। इन हालातों में यदि 8 तीव्रता का भूकंप आ जाए तो हम इससे होने वाले नुकसान की कल्पना तक नहीं कर सकते हैं। तुर्किए में आए भूकंप की रिक्टर पैमाने पर तीव्रता 7.9 थी।संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. आरजे पेरूमल के मुताबिक करीब 2000 किमी लंबे हिमालय क्षेत्र में बड़े भूंकप की आशंका वाले 20 और भारत में करीब आधा दर्जन के करीब क्षेत्र हो सकते हैं।
रामनगर, कांगड़ा और असम में आ सकते हैं ज्यादा तीव्रता वाले भूकंप
उत्तराखंड के रामनगर, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा और असम क्षेत्र में ऐसे भूकंपों की आशंका सबसे ज्यादा है। इसकी वजह इन क्षेत्रों की धरती के नीचे चल रहे तनाव के बावजूद ऊर्जा का बाहर न निकल पाना है। उनका कहना है कि रामनगर क्षेत्र में साल 1255 में आठ से नौ रिक्टर तीव्रता का भूंकप आया था। इसके बाद यहां कोई बड़ा भूंकप दर्ज नहीं किया गया। इसी तरह भूगर्भीय संरचना वाले नेपाल में साल 1255 में बेहद शक्तिशाली भूंकप (8.0 से 9.0 ) आया था। इसके बाद 1831, 1934 और 2015 में भारी भूंकप आ चुका है। एक ही माइक्रो सेस्मेसिटी बेल्ट में पड़ने वाले हिमाचल के कांगड़ा में भी 1905 के भूंकप (7.8 रिएक्टर स्केल) के बाद कोई भूंकप नहीं आया।
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सेंट्रल नेपाल में 51 से 81 साल के बीच आए भूकंप
सेंट्रल नेपाल और देश का असम प्रांत भी ज्यादा तीव्रता वाले भूकंपीय क्षेत्रों में आता है। यहां कम अंतराल में छोटे भूकंप के साथ ही बड़े भूकंप भी आते हैं। नेपाल में साल 1255 के भूकंप को छोड़कर पिछले तीन बड़े भूकंप का अंतराल 51 से 81 साल के बीच रहा और इसी रूट के असम में पिछले 2 बड़े भूकंप 51 से 81 साल के बीच आए हैं।
भूकंप को इस तरह समझें
पूरी धरती 12 टेक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है। इन टेक्टोनिक प्लेटों के नीचे लावा मौजूद है। ये 12 प्लेटें इन्ही लावों पर तैरती हैं। जब लावा इन प्लेटों से टकराता है तो जो ऊर्जा निकलती है उसे भूकंप कहते हैं। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं, पृथ्वी की सबसे बाहरी परत जो 12 प्लेटों में विभाजित है। ये प्लेटें लगातार शिफ्ट होती रहती हैं शिफ्ट होते समय कभी-कभी ये प्लेटें एक-दूसरे से टकरा जाती हैं। जिससे भूकंप का अहसास होता है। इससे जमीन भी खिसकती है। करोड़ों साल पहले भारत एशिया के करीब नहीं था, लेकिन जमीन पर आए भूकंप की ही वजह से भारत हर साल करीब 47 मिलीमीटर खिसक कर मध्य एशिया की तरफ बढ़ रहा है। करीबन साढ़े पांच करोड़ साल से पहले हुई एक टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि हिमालय का निर्माण हुआ।