Banglore. कर्नाटक में बीजेपी से नाराज जगदीश शेट्टार ने आखिरकार कांग्रेस का दामन थाम लिया है। एक दिन पहले ही जगदीश शेट्टार ने बीजेपी छोड़ी थी। इस घटनाक्रम के चलते बीजेपी की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। इससे पहले लक्ष्मण सावदी भी बीजेपी को अलविदा कह चुके हैं। बता दें कि कर्नाटक में लिंगायत समुदाय निर्णायक भूमिका में हैं, ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि आखिर बीजेपी लिंगायत समुदाय की इतनी अनदेखी क्यों कर रही है?
क्यों छोड़ दी बीजेपी?
दरअसल जगदीश शेट्टार हुगली सीट से विधानसभा चुनाव लड़ना पसंद कर रहे थे लेकिन बीजेपी ने उन्हें वहां से टिकट देने से इनकार कर दिया। शेट्टार हुगली सीट से लड़ने का पूरी तरह से मन बना चुके थे। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा ने भी उन्हें मनाने के काफी प्रयास किए लेकिन आखिरकार उन्होंने बीजेपी को बाय-बाय बोल दिया था।
- यह भी पढ़ें
बीजेपी की नजरें ओबीसी और दलित वोटों पर
माना जा रहा है कि कर्नाटक में बीजेपी लंबे समय से ओबीसी और दलित जातियों में अपनी पैठ बना रही है। बीजेपी कर्नाटक में अकेले लिंगायत समाज के भरोसे नहीं रहना चाहती। इसलिए उसने इन जातियों को केंद्रीय मंत्रीमंडल में भी प्रभावी भूमिका दी है।
आरएसएस से भी मिला है वरदहस्त
इन दिनों संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत भी विभिन्न जातियों को एक साथ लाकर केवल हिंदू या भारतीय बताने की वकालत कर रहे हैं। उनके इन बयानों को भी बीजेपी की इस कोशिश से जोड़कर देखा जा रहा है।
भाजपा के इस चुनावी दांव को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी समर्थन हासिल है, जो विभिन्न जातियों को एक साथ लाकर वृहद हिंदू राष्ट्र बनाने की बात कहती रही है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अपने पिछले कई बयानों में जातिगत बंधनों को तोड़ते हुए स्वयं को केवल हिंदू या भारतीय बताने की वकालत की है। उनके इन बयानों को भाजपा के इस कार्ड से जोड़कर देखा जाता है।
उलटा पड़ सकता है दांव
येदियुरप्पा के भाजपा छोड़ने के बाद राज्य में पार्टी को जो करारा नुकसान उठाना पड़ा था, उसका बड़ा कारण यही माना जाता है कि लिंगायत समुदाय के बड़े मतदाता उनके साथ चले गए थे। अंततः भाजपा को अपनी भूल का एहसास हुआ और पार्टी ने उन्हें अपने साथ दोबारा वापस लिया। कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी को इतना बड़ा रिस्क लेना महंगा न पड़ जाए।