BHOPAL. एक जुलाई कई मायनों में खास है। आज ही के दिन 4 दिन सेलिब्रेट किए जाते हैं- सीए डे, एसबीआई डे, डॉक्टर्स डे और जीएसटी डे। आज हम आपको इन सभी के बारे में बताने जा रहे हैं...
1- सीए डे : 74 साल में कितनी बदल गई चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की ‘दुनिया’
देश में हर साल 1 जुलाई का दिन चार्टर्ड अकाउंटेंट डे यानी सीए डे के तौर पर मनाया जाता है। 1 जुलाई 1949 को ही संसद में एक एक्ट बनाकर देश में इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई ) की स्थापना की गई थी। अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक अकाउंटेंट्स के बाद आईसीएआई दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अकाउंटिंग बॉडी है। वहीं भारत का राष्ट्रीय पेशेवर लेखा निकाय है। आईसीएआई ही सीए यानी चार्टर्ड अकाउंटेंट का कोर्स करवाता है। सभी चार्टर्ड अकाउंटेंट्स को यही संस्था लाइसेंस देती है। देश में चार्टर्ड अकाउंटेंसी के प्रोफेशन को आईसीएआई की नियंत्रित करता है। आईसीएआई की स्थापना से पहले देश में अकाउंटिंग के काम के लिए कोई निगरानी तंत्र नहीं था। लेकिन इसकी स्थापना से सीए की शिक्षा, क्वालिफिकेशन, उसका पेशेवर व्यहार नियमों व निगरानी तंत्र के दायरे में आ गया।
क्या होती है सीए की भूमिका
सीए प्रोफेशनल्स देश की वित्तीय व्यवस्था व आर्थिक तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सीए प्रोफेशनल लोगों व कंपनियों को ऑडिटिंग, टेक्सेशन, बिजनेस स्ट्रैटेजी, फाइनेंशियल एनालिसिस, रिस्क मैनेजमेंट और कॉरपोरेट लॉ जैसी सेवाएं देकर देश की अर्थव्यवस्था में बेहद रोल निभाते हैं। यह दिन उन पेशेवर और नैतिक मानकों की याद दिलाता है, जिनका एक सीए से पालन करने की अपेक्षा की जाती है।
क्या क्या सीए डे 2023 की थीम
1 जुलाई 2023 को आईसीएआई अपनी स्थापना का 75वां वर्ष मना रहा है, इसलिए इसकी थीम 'वित्तीय उत्कृष्टता को सशक्त बनाना' रखी गई है।
इस बार क्या है खास
- आईसीएआई ने अपने 75 वर्ष पूरे होने पर एक स्पेशल लोगो का अनावरण किया।
2- डॉक्टर्स डे: डॉ. बिधान चंद्र राय के सम्मान में मनाया जाता है ये दिन
देशभर में हर साल की तरह आज भी राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस मनाया जा रहा है। यह दिन जीवन बचाने वाले डॉक्टरों के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। यह दिन उन सभी डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए जश्न मनाने का दिन है, जो बड़े पैमाने पर समाज की सेवा कर रहे हैं। इस बार यानी 2023 में 33वां डॉक्टर्स डे 1 जुलाई को मनाया जा रहा है।
डॉक्टर्स डे का इतिहास
देश में डॉक्टर्स डे मनाने की शुरुआत 1 जुलाई 1991 से की गई थी। यह दिन प्रसिद्ध चिकित्सक शिक्षाविद और बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय के सम्मान में मनाया जाता है। इनका जन्म 1 जुलाई 1882 को बिहार के पटना में हुआ था। सन् 1976 में इन्हें भारत रत्न पुरस्कार से नवाजा गया था। उनके तमाम योगदान को सम्मान देने के लिए हर साल 1 जुलाई का दिन ‘डॉक्टर्स डे’ के रूप में मनाया जाता है।
राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस 2023 की थीम
हर साल राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस अलग-अलग थीम के साथ मनाई जाती है। ऐसे में इस बार की थीम “फैमिली डॉक्टर्स ऑन द फ्रंट लाइन” रखा गया है।
राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस का उद्देश्य
इस दिन को मनाने का उद्देश्य डॉक्टर्स के कर्तव्यों, महत्व और योगदान के बारे में लोगों को जागरूक करना है। यह दिन हमें चिकित्सकों के प्रति उन अहम योगदान के लिए अपना आभार व्यक्त करने का अवसर देता है। जो वे अपने रोगियों, जिस समुदाय में वे काम करते हैं और पूरे समाज के लिए करते हैं।
नेशनल डॉक्टर्स डे का महत्व
नेशनल डॉक्टर्स डे डॉक्टर्स को उनके काम के लिए धन्यवाद व सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। बच्चे के जन्म से लेकर हेल्दी लाइफस्टाइल जीने तक में डॉक्टर्स की भूमिका बहुत ही खास होती है। जो लोगों को इसी बात से वाकिफ कराने के लिए डॉक्टर्स डे सेलिब्रेट किया जाता है।
3. एसबीआई डे: 200 साल का इतिहास, पहले था नोट छापने का अधिकार
देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) का इतिहास 200 साल से भी ज्यादा पुराना है। आज इसे भारतीय स्टेट बैंक (State Bank Of India) के नाम से जाना जाता है, लेकिन पहले इसका नाम इम्पीरियल बैंक ऑफ इंडिया (Imperial Bank of India) हुआ करता था। इस बैंक की नींव ब्रिटिश शासन काल के दौरान रखी गई थी और आज यह फॉर्च्यून 500 कंपनी बन चुका है। आजाद भारत में नया नाम मिलने के बाद 1 जुलाई 1955 को आधिकारिक रूप से SBI की स्थापना की गई। इसलिए 1 जुलाई को एसबीआई डे मनाया जाता है। इम्पीरियल बैंक के देश में संचालित सभी 480 ऑफिस एसबीआई के ऑफिस बन गए। इनमें ब्रांच ऑफिस, सब ब्रांच ऑफिस और तीन लोकल हेडक्वाटर मौजूद थे। इसी साल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया एक्ट पारित हुआ। अक्टूबर 1955 को स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद SBI का पहला सहयोगी बैंक बना। फिर 10 सितंबर 1959 को द स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ACT, 1959 पारित किया गया।
1806 में पड़ी थी एसबीआई की नींव
SBI की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी पर नजर डालें तो भारतीय स्टेट बैंक की नींव 19वीं शताब्दी के पहले दशक में 2 जून 1806 को कलकत्ता में रखी गई थी। ब्रिटिश राज में उस साल बैंक ऑफ कलकत्ता (Bank of Calcutta) की स्थापना की गई थी। स्थापना के तीन साल बाद बैंक को अपना चार्टर मिला और 2 जनवरी 1809 में इसे बैंक ऑफ बंगाल (Bank of Bengal) नाम दे दिया गया। एक अनूठी संस्था मानी जाती थी, जो बंगाल सरकार द्वारा प्रायोजित ब्रिटिश भारत का पहला संयुक्त स्टॉक बैंक था।
तीन बैंकों के विलय से बना इम्पीरियल बैंक
इसके बाद इसका विस्तार शुरू हो गया। दरअसल, उसी दशक में 15 अप्रैल 1840 में मुंबई में बैंक ऑफ बॉम्बे की स्थापना हुई, जबकि 1 जुलाई 1843 में बैंक ऑफ मद्रास शुरू हुआ। हालांकि, इन तीनों बैंकों में पूंजी भले ही निजी क्षेत्र रहती थी, लेकिन इन्हें खासतौर पर ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के लिए खोला गया था। इसके बाद 27 जनवरी 1921 में बैंक ऑफ मुंबई और बैंक ऑफ मद्रास का बैंक ऑफ बंगाल में विलय कर दिया गया और तीनों बैंक को मिलकार इम्पीरियल बैंक ऑफ इंडिया (Imperial Bank of India) सामने आया।
पेपर करेंसी छापने का था अधिकार
इम्पीरियल बैंक ऑफ इंडिया बनने से पहले यानी विलय से पहले लंबे समय तक तीनों बैंक भारत में स्वतंत्र रूप से काम कर रहे थे। 1823 में ये तीनों बैंक सरकार के नियंत्रण में आ गईं। 1861 से पहले इन तीनों बैंकों को करेंसी छापने का अधिकार भी था। विलय के बने इम्पीरियल बैंक ने ब्रिटिश काल में अपना काम जारी रखा।
आजादी के बाद अस्तित्व में आया SBI
देश को ब्रिटिश शासन की गुलामी से आजादी मिलने तक इम्पीरियल बैंक अस्तित्व में रहा। आजाद भारत में साल 1955 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया को पार्लियामेंटरी एक्ट के तहत अधिग्रहित कर लिया। ऐसा करने के लिए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, एक्ट 1955 लाया गया था। 30 अप्रैल 1955 को बड़ा बदलाव किया गया और इम्पीरियल बैंक का नाम बदलकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (State Bank Of India) कर दिया गया।
2017 में विलय के बाद विस्तार
साल 2017 में एसबीआई में स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर (SBBJ), स्टेट बैंक ऑफ मैसूर (SBM), स्टेट बैंक ऑफ त्रवाणकोर (SBT), स्टेट बैंक ऑफ पटियाला (SBH) और स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद (SBH) का विलय कर दिया गया। यह विलय 1 अप्रैल 2017 को हुआ। विलय के बाद SBI एक विश्व स्तरीय बैंक बन गया। इसकी 22,500 शाखाएं और 58,000 एटीएम का विशाल नेटवर्क गया। इसके साथ ही बैंक का ग्राहक आधार भी 50 करोड़ के आंकड़े को पार कर गया। विलय के बाद सहयोगी बैंकों के अधिकारी और कर्मचारी एसबीआई के कर्मचारी बन गए।
1 जुलाई को मनता है स्थापना दिवस
1 जुलाई 1955 को इम्पीरियल बैंक (Imperial Bank) का नाम बदलकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (State Bank of India) रखे जाने के बाद से ही हर साल पहली जुलाई को एसबीआई की देश-विदेश की शाखाओं में बैंक का स्थापना दिवस मनाया जाता हैं। एसबीआई मुनाफे, जमा, संपत्ति, संपत्ति, ब्रांच और कस्टमर्स के लिहाज से सबसे बड़ा व्यावसायिक बैंक है।
पांच लाख करोड़ से ज्यादा वैल्यू
आजादी से पहले शुरू हुए इस बैंक का दायरा अब बहुत बड़ा हो चुका है. SBI दुनिया के बड़े बैंकों की लिस्ट में 43वें नंबर पर है और फॉर्च्यून ग्लोबल 500 लिस्ट में शामिल एकमात्र भारतीय बैंक है। इसके अलावा बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) में लिस्टेड टॉप-10 सबसे मूल्यवान कंपनियों में भी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया शामिल है। मार्केट कैप की बात करें तो देश के इस सबसे बड़े बैंक एसबीआई (SBI) का MCap बीते सप्ताह 7,273.55 करोड़ रुपये बढ़कर 5,01,206.19 करोड़ रुपये हो गया है।
4. जीएसटी डे: आज ही के दिन लागू हुआ था जीएसटी, क्यों इसे लागू करने में लग गए 17 साल?
पुरानी अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था की जगह वस्तु एवं सेवा कर 1 जुलाई, 2017 को देश में लागू हुआ था। आज जीएसटी दिवस (GST Day) है। आजादी के बाद जीएसटी को सबसे बड़ा टैक्स सुधार माना जाता है। इससे देश के अप्रत्यक्ष कर ढांचे में आमूल-चूल परिवर्तन हुआ है। हाल ही में केंद्र सरकार ने जानकारी दी थी कि छह साल पहले लागू माल एवं सेवा कर (GST) ने न केवल नागरिकों पर कर का बोझ कम करने में मदद की है, बल्कि देश में खपत को गति भी दी है। कुल मिलाकर इससे परिवारों को मासिक बिल कम करने में मदद मिली है। सरकार ने जीएसटी लागू होने से पहले और बाद में विभिन्न वस्तुओं पर कर दरों की तुलना करते हुए यह बात कही है। उसने यह भी कहा कि जीएसटी प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने से लेकर निवेश को बढ़ावा देने में उत्प्रेरक रहा है। जीएसटी के तहत पंजीकृत करदाताओं की संख्या एक अप्रैल, 2018 तक 1.03 करोड़ थी। यह बढ़कर एक अप्रैल, 2023 तक 1.36 करोड़ हो गई है।’’
लागू होने में लगे 17 साल
देश में पुरानी कर व्यवस्था की जगह नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था लाने का विचार 2000 में आया था। 2004 में समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। साल 2006 में अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने वर्ष 2010 से जीएसटी को देश में लागू करने की घोषणा की थी, लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों के बीच इसके कई प्रावधानों को लेकर मतभेद था। इसकी वजह से यह लागू नहीं हो पाया। जीएसटी को 2016 में राज्य सभा और लोकसभा ने पास कर दिया गया। जीएसटी देश में सही ढंग से लागू करने के लिए एक जीएसटी परिषद का गठन किया गया। जीएसटी एक जुलाई, 2017 की मध्यरात्रि को लागू हुआ था। इसमें 13 उपकर समेत उत्पाद शुल्क, सेवा कर और मूल्य वर्धित कर (वैट) जैसे 17 स्थानीय शुल्कों को समाहित किया गया है।
चार दरें
माल एवं सेवा कर के अंतर्गत कर की चार दरें हैं। इसमें आवश्यक वस्तुओं पर कर से या तो छूट है या फिर पांच प्रतिशत की कम दर से कर लगाया जाता है। विलासिता और समाज के नजरिये से हानिकारक वस्तुओं पर 28 प्रतिशत की ऊंची दर से कर लगाया जाता है। कर की अन्य दरें 12 फीसदी और 18 फीसदी हैं। इसके अलावा, सोना, आभूषण और कीमती पत्थरों के लिये 3 प्रतिशत और तराशे तथा पॉलिश किये गये हीरे पर 1.5 प्रतिशत की विशेष दर है।
कर का बोझ हुआ कम
वित्त मंत्री सीतारमण के ऑफिस से हुए ट्वीट में लिखा, ‘‘छह साल पहले केंद्र और राज्य सरकारों के 17 करों और 13 उपकरों को समाहित कर लागू जीएसटी ने न केवल नागरिकों पर कर का बोझ कम करने में मदद की है, बल्कि यह देश में खपत को गति देने को लेकर इंजन भी साबित हुआ है।’’ जीएसटी लागू होने से पहले वैट, उत्पाद शुल्क, केंद्रीय बिक्री कर (सीएसटी) और उनके व्यापक प्रभाव के कारण एक उपभोक्ता को औसतन 31 प्रतिशत कर देना होता था। वित्त मंत्रालय ने ट्वीट किया, ‘‘जीएसटी के तहत कर की दरें कम होने से हर घर में खुशियां आई है। दैनिक उपयोग की विभिन्न उपभोक्ता वस्तुओं पर जीएसटी के माध्यम से राहत मिली है।’’
कई लाभ हुए
जीएसटी भारत की अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में पासा पलटने वाला साबित हुआ है और इसने सभी पक्षों को व्यापक लाभ उपलब्ध कराया है। सरकार ने कहा कि इससे जो लाभ हुए हैं, उसमें विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में कमी, सभी करदाताओं के लिये समान अवसर और बेहतर अनुपालन के माध्यम से राजस्व वृद्धि शामिल है। जब माल एवं सेवा कर 2017 में पेश किया गया था, उस समय मासिक जीएसटी राजस्व 85,000 से 95,000 करोड़ रुपये था। वह बढ़कर अब 1.50 लाख करोड़ रुपये के आसपास पहुंच गया है और इसमें वृद्धि जारी है। इस साल अप्रैल में यह अब तक के उच्चतम स्तर 1.87 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया।