सिंधिया से लेकर मिलिंद तक बडे़- बड़े नामों ने छोड़ा साथ, जानिए अब राहुल गांधी के करीबी कौन-कौन

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Pooja Kumari
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सिंधिया से लेकर मिलिंद तक बडे़- बड़े नामों ने छोड़ा साथ, जानिए अब राहुल गांधी के करीबी कौन-कौन

Rahul's kitchen cabinet. साल 2008 में कांग्रेस का महासचिव बनने के बाद राहुल गांधी ने जब अपनी टीम बनानी शुरू की तो राहुल की यह टीम सोनिया गांधी की पुरानी टीम से काफी अलग थी। दिग्विजय सिंह को छोड़कर टीम के सभी चेहरे नए थे। राहुल गांधी की टीम में उस वक्त मध्यप्रदेश से मीनाक्षी नटराजन, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह, सचिन पायलट, जितिन प्रसाद, और आरपीएन सिंह जैसे नेता शामिल थे। सियासी गलियारों में राहुल गांधी की इस टीम को राहुल ब्रिगेड के नाम से भी जाना जाता रहा है। राहुल ब्रिगेड के ज्यादातर लोग या तो किसी राजपरिवार से थे या किसी राजनीतिक परिवार से… राहुल किचन कैबिनेट के अधिकतर नेताओं को मनमोहन मंत्रिमंडल में भी शामिल किया गया और कांग्रेस ने संतुलन का नाम देकर इसका जोरदार बचाव भी किया था। इसके अलावा जो कैबिनेट में शामिल नहीं हो पाए, उन्हें संगठन में बड़ी जिम्मेदारी मिली। 2013 में इंडिया टुडे मैगजीन ने राहुल गांधी की टीम पर एक रिपोर्ट की। इस रिपोर्ट में कहा गया कि 2014 की कमान राहुल गांधी की टीम ने संभाली है। इससे कई पुराने नेता खफा हैं।

संघर्ष के दिनों में बिछड़े बारी-बारी

2014 के चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह पराजित हो गई। हार का ठीकरा राहुल गांधी और उनकी टीम पर ही फोड़ा गया। मनमोहन कैबिनेट में मंत्री रहीं जयंती नटराजन ने 2015 में पार्टी छोड़ते हुए राहुल गांधी पर कई राजनीतिक आरोप लगाए। नटराजन का कहना था कि राहुल की टीम ने उनके कामों में पहले दखलअंदाजी की और फिर उन्हें अपमानित किया गया। 2014 के बाद से अब तक कांग्रेस करीब 39 चुनाव हार चुकी है। इनमें 2019 का लोकसभा चुनाव भी शामिल है। 2019 चुनाव में कांग्रेस के कई बड़े चेहरे नहीं जीत पाए। यहां तक कि खुद राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गए।

देवड़ा ने भी छोड़ा कांग्रेस का साथ

2019 के बाद राहुल ब्रिगेड ने कांग्रेस छोड़ना शुरू किया। पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया फिर जितिन प्रसाद और उसके बाद आरपीएन सिंह ने कांग्रेस छोड़ी। इसके बाद इन तीनों नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा। हाल ही में मिलिंद देवड़ा भी कांग्रेस छोड़ शिवसेना में शामिल हो गए हैं। देवड़ा केंद्र में मंत्री रह चुके हैं और राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी ने उन्हें मुंबई कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था। वर्तमान में वे संयुक्त कोषाध्यक्ष थे।

सबकी एक ही दलील-राहुल गांधी सुनते नहीं हैं

ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर मिलिंद देवड़ा तक। एक-एक करके कांग्रेस छोड़ने के बाद सबकी एक ही दलील रही है कि राहुल गांधी सुनते नहीं हैं और न ही उनसे संपर्क हो पाता है। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक मिलिंद देवड़ा कांग्रेस छोड़ने से पहले राहुल गांधी से बात करना चाहते थे। देवड़ा अपनी परंपरागत दक्षिण मुंबई लोकसभा सीट को लेकर राहुल से ठोस आश्वासन चाहते थे। गठबंधन में ये सीट शिवसेना के खाते में जाने की बात कही जा रही है। राहुल से संपर्क नहीं होने के बाद देवड़ा ने पार्टी छोड़ने का फैसला किया। कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने भी इसकी पुष्टि की है, कि मिलिंद आखिर वक्त में राहुल से बात करना चाह रहे थे।

कांग्रेस से क्यों भाग रहे राहुल ब्रिगेड के नेता?

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश के मुताबिक निजी स्वार्थ के कारण नेता पाला बदल रहे हैं। पार्टी के पास देने के लिए अभी ज्यादा कुछ नहीं है। ऐसे में स्वार्थी नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। दो साल पहले युवा कांग्रेस की एक बैठक में राहुल गांधी ने नेताओं से कहा था कि कई बड़े नेता संघर्ष नहीं करना चाहते हैं। ऐसे में आप लोगों का भविष्य है। राहुल का कहना था कि जाने वाले नेताओं को हम नहीं रोकेंगे। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, पूर्व में राहुल गांधी के किचन कैबिनेट के सदस्यों ने इसलिए पार्टी छोड़ दी, क्योंकि वो नए समीकरण में फिट नहीं बैठ रहे थे। 2019 के बाद राहुल गांधी के कोर टीम में दूसरे अन्य नेताओं का दबदबा हो गया है।

राहुल गांधी के किचन कैबिनेट में अभी कौन-कौन हैं?

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केसी वेणुगोपाल - कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष के करीबियों में सबसे बड़ा नाम संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल का है। केरल से आने वाले वेणुगोपाल मनमोहन सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। 2019 चुनाव के बाद राहुल गांधी ने अपने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन वेणुगोपाल संगठन महासचिव पद पर बने रहे। मल्लिकार्जुन खरगे के अध्यक्ष बनने के बाद संगठन महासचिव के बदले जाने की बात कही जा रह थी, लेकिन वेणुगोपाल नहीं हटे। कांग्रेस संगठन के भीतर महासचिव का पद दूसरा सबसे अहम पद है।

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अजय माकन - कांग्रेस के कोषाध्यक्ष माकन 2012 में ही राहुल गांधी के कोर टीम में शामिल हो गए थे, तब से वे किचन कैबिनेट के सदस्य हैं। माकन राजस्थान के महासचिव भी रह चुके हैं। अजय माकन की टीम में ही राहुल ने अपने 2 पुराने करीबी नेता विजय इंदर सिंघला और मिलिंद देवड़ा को तैनात करवाया था, लेकिन देवड़ा कांग्रेस छोड़ शिवसेना में चले गए।

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जयराम रमेश - कांग्रेस का संचार विभाग अभी जयराम रमेश के पास है। रमेश 2009 में ही राहुल गांधी के किचन कैबिनेट में शामिल हुए थे। हालांकि, 2014 के बाद वे कुछ सालों तक साइडलाइन जरूर रहे। रमेश के जिम्मे वर्तमान में मीडिया, सोशल मीडिया और आउटरीच कम्युनिकेशन है।

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मणिकम टैगोर - तमिलनाडु के विरुधनगर लोकसभा सीट से सांसद मणिकम टैगोर भी राहुल गांधी के किचन कैबिनेट के सदस्य हैं। टैगोर के पास वर्तमान में आंध्र का प्रभार है। इससे पहले उनके पास तेलंगाना का प्रभार था।

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सुनील कानूगोलू - चुनावी रणनीतिकार सुनील कानूगोलू भी राहुल गांधी के किचन कैबिनेट के हिस्सा हैं। कानूगोलू कर्नाटक और तेलंगाना चुनाव की रणनीति बना चुके हैं, जहां पार्टी को बंपर जीत मिली थी। कानूगोलू 2024 के लिए बने कांग्रेस टास्क फोर्स के सदस्य भी हैं।

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