गांधी जयंती विशेष : अफ्रीका में ट्रेन से बाहर फेंके गए, साबरमती के वो संत जिन्होंने सत्य-अहिंसा के दम पर अंग्रेजों से लिया लोहा, ऐसे थे बापू

155 साल पहले एक ऐसी शख्सियत का जन्म हुआ, जो पूरे विश्व के लिए प्रेरणा स्रोत बने। जिसने अंग्रेजों के पसीने छुड़वाए और भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई। महात्मा गांधी का पूरा जीवन हम लोगों के लिए प्रेरणा है।

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Vikram Jain
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Gandhi Jayanti 2 October 2024 Mahatma Gandhi Ji Special Story

Mahatma Gandhi Birthday

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मदिन 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है। आज बुधवार 2 अक्टूबर 2024 में महात्मा गांधी की 155वीं जयंती मनाई जा रही है। महात्या गांधी यानि मोहनदास करमचंद गांधी को भारत के राष्ट्रपिता तथा बापू के नाम से जाना जाता है। वे भारतीय राजनीतिज्ञ और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता थे। आइए जानते है महात्मा गांधी के बारे में खास जानकारी...

गांधी जयंती पर मनाया जाता है विश्व अहिंसा दिवस

2 अक्टूबर को गांधी जयंती के साथ-साथ 'विश्व अहिंसा दिवस' और 'स्वच्छ भारत दिवस कार्यक्रम' के रूप में भी मनाया जाता है। अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी अपने सत्याग्रह और अहिंसात्मक आंदोलन के लिए पूरे विश्व में विशेष रूप जाने जाते हैं, गांधीजी के प्रति वैश्विक स्तर पर सम्मान व्यक्त करने के लिए ही विश्व अहिंसा दिवस मनाया जाता है। उन्होंने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराया था। इसी के साथ पीएम मोदी ने 2 अक्‍टूबर 2014 को स्‍वच्‍छ भारत मिशन की शुरुआत की थी। महात्मा गांधी के साथ ही भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती भी आज 2 अक्टूबर को मनाई जाती है।

गांधी जी के चलाए बड़े आंदोलन

अंग्रेजों से देश को आजादी दिलाने के लिए हुए स्वतंत्रता संग्राम में कई सेनानियों ने अपना योगदान दिया है। राष्ट्रपति महात्मा गांधी के आंदलनों को कौन भूल सकता है। गांधीजी के आंदोलनों को आज भी याद किया जाता है। सत्य और अहिंसा की राह वाले उनके अनूठे प्रयोग बापू को दुनिया का सबसे अनूठा व्यक्ति साबित करते हैं। हम आपको गांधी के आंदोलनों के बारे में बताएंगे जिन्होंने अंग्रेजों को हिन्दुस्तान छोड़ने पर मजबूर कर दिया।

चंपारण सत्याग्रह

गांधीजी ने भारत में अपने अहिंसक सत्‍याग्रह का पहला प्रयोग बिहार के चंपारण में किया था। इस आंदोलन ने उनके भविष्‍य के महात्‍मा व बापू तक के सफर की नींव रखी। यह बात उस समय की है, जब मोहनदास करमचंद गांधी (Mohandas Karamchandra Gandhi) दक्षिण अफ्रीका से भारत आए थे। दक्षिण अफ्रीका में किए गए उनके आंदोलन की गूंज तो थी, लेकिन भारत में अभी वे महात्‍मा (Mahatma Gandhi) या बापू (Bapu) नहीं थे। उनकी मोहनदास करमचंद गांधी से महात्‍मा गांधी व बापू तक का सफर अप्रैल 1917 में शुरू हुआ, जिसका पहला स्‍टेशन बिहार का चंपारण था। इस यात्रा की शुरुआत चंपारण के एक किसान राजकुमार शुक्‍ल ने कराई, जिसका निमित्त नील किसानों पर अंग्रेजों के अत्‍याचार का तीनकठिया कानून बना।

10 अप्रैल, 1917 के दिन एक ऐसा आंदोलन शुरू हुआ, जिसमें न गोली चली और न लाठी। इतना ही नहीं ... ना जुलूस निकला गया और ना ही बड़ी सभा हुई। गिरफ्तारी हुई तो आरोपी ने खुद ही जमानत लेने से इनकार कर दिया। इसे चंपारण सत्याग्रह के नाम से जाना गया। 

सत्याग्रह के आगे झुक गई अंग्रेजी हुकूमत

चंपारण सत्याग्रह के आगे अंग्रेजी हुकूमत को झुकना पड़ा था। तीन कठिया कानून किसानों की कमर तोड़ रहा था। इससे सौ साल से भी पुरानी प्रथा समाप्त हुई। नील के खेतों में बदन जलाती औरतों और बच्चों को उनका हक मिल गया। यही वो सत्याग्रह था जिसने बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा गांधी बना दिया और बाद में महात्मा गांधी देश के राष्ट्रपिता कहलाए गए।

महात्‍मा गांधी ने अपनी आत्‍मकथा 'सत्‍य के साथ मेरे प्रयोग में' चंपारण के आंदोलन के बारे में 3 अध्‍यायों में जिक्र किया है। इस पुस्‍तक के 12वें अध्‍याय नील का दाग में उन्‍होंने के चंपारन में अंग्रेजों के कानून के कारण किसानों के आंदोलन के बारे में विस्‍तार से बताया है।

असहयोग आंदोलन

अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला हत्याकांड के बाद देश के लोगों में आक्रोश था। अंग्रेजों का अत्याचार बढ़ते ही जा रहा था। अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद होने लगी थी। देश में स्वराज की मांग उठनी शुरू हो गई थी। इसके बाद महात्मा गांधी ने एक अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन की घोषणा की। असहयोग आंदोलन का असर यह हुआ कि छात्रों ने स्कूल-कॉलेज जाना बंद कर दिया। मजदूर कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। कोर्ट में वकीलों ने आना बंद कर दिया। शहरों से लेकर गांव में असर दिखाई देने लगा।

चौरी-चौरा घटना से आहत होकर वापस लिया आंदोलन

साल 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद असहयोग आंदोलन ने पहली बार अंग्रेजों शासन  की नींव हिला दी थी। यह आंदोलन अहिंसात्मक तौर पर चल रहा था। इस दौरान 4 फरवरी 1922 को गोरखपुर के चौरी-चौरा में भीड़ ने पुलिस थाने पर हमला कर दिया। भीड़ ने थाने को आग के हवाले कर दिया था। इस आग जलकर 23 पुलिस वालों की मौत हुई थी। साथ ही इस घटना में तीन अन्य लोग भी मारे गए थे। आंदोलन के दौरान हुई हिंसा से आहत होकर महात्मा गांधी ने आंदोलन वापस ले लिया।

महात्मा गांधी के आंदोलन वापस लेने के फैसले के बाद क्रांतिकारियों का एक दल नाराज हो गया। 16 फरवरी 1922 को गांधीजी ने अपने लेख 'चौरी चौरा का अपराध' में लिखा कि अगर ये आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो दूसरी जगहों पर भी ऐसी घटनाएं होतीं। इसके बाद इस आंदोलन से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नई जागृति मिली।

नमक पर टैक्स के विरोध में दांडी मार्च

असहयोग आंदोलन के आठ साल बाद गांधी जी ने एक और बड़ा आंदोलन चलाया। यह एक ऐसा वक्त था, जब देश आजादी के लिए अंगड़ाई ले रहा था। इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को हिला कर रख दिया था। महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक पैदल मार्च निकाला। 24 दिन के इस मार्च को दांडी मार्च, नमक सत्याग्रह और दांडी सत्याग्रह के रूप में इतिहास में जगह मिली।

अंग्रेजों ने लगाया था नमक पर कर

दरअसल, 1930 में अंग्रेजों ने नमक पर टैक्स लगा दिया था। महात्मा गांधी ने इस कानून के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। इस आंदोलन के जरीए महात्मा गांधी नमक पर से अंग्रेजों के एकाधिकार को खत्म करना चाहते थे। 12 मार्च को शुरू हुआ ये ऐतिहासिक पैदल मार्च 6 अप्रैल 1930 को समाप्त हुआ। इस दौरान गांधी जी और उनके साथी आंदोलनकारी लोगों से नमक कानून को तोड़ने की मांग करते थे। कानून भंग करने के बाद आंदोलन कारियों ने अंग्रेजों की लाठियां भी खाईं लेकिन पीछे नहीं हटे, एक साल तक चले आंदोलन के दौरान कई नेताओं की गिरफ्तारी हुई। इस आंदोलन से अंग्रेज बैचेन हो गए। आखिरकार 1931 को गांधी-इरविन के बीच हुए समझौते के बाद आंदोलन वापस ले लिया गया और अंग्रेजों ने नमक नीति वापस ली। देश के आजादी के इतिहास में दांडी यात्रा को बेहद महत्व दिया जाता है।

छुआछूत विरोधी आंदोलन

सामाजिक सुधार के क्षेत्र में भी महात्मा गांधी जी के विचारों और कार्यां का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने अपने राजनीतिक आंदोलन के साथ-साथ समाज सुधार के लिए भी आंदोलन चलाए। उन्होंने जातिवाद, साम्राज्यवाद, संप्रदायवाद आदि बुराईयों के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया।

अन्याय, अत्याचार और उत्पीड़न का विरोध

महात्मा गांधी ने एक समाज सुधारक के रूप में भारत में प्रचलित अन्याय, अत्याचार और उत्पीड़न का घोर विरोध किया। उन्होंने 8 मई 1933 से छुआछूत विरोधी आंदोलन की शुरुआत की थी। इस दौरान महात्मा गांधी ने आत्मशुद्धि के लिए 21 दिनों तक उपवास किया। इस उपवास के साथ एक साल लंबे अभियान की शुरुआत हुई।

दलित समुदाय को दिया 'हरिजन' का नाम

उपवास के दौरान महात्मा गांधी जी ने कहा था या तो छुआछूत को जड़ से समाप्त करो या मुझे अपने बीच से हटा दो। इससे पहले 1932 में गांधी जी ने अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग की स्थापना की थी। इसके साथ ही महात्मा गांधी ने दलित समुदाय के लिए हरिजन नाम भी दिया था। गांधी जी ने ‘हरिजन’ नाम के साप्ताहिक पत्र का भी प्रकाशन किया था।

महात्मा गांधी जी का जीवन परिचय

महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में गुजरात के पोरबंदर में हिन्दू परिवार में हुआ था। पिता करमचंद गांधी और मां पुतलीबाई ने बेटे का नाम मोहनदास रखा गया था, उन्हें मोहनदास करमचंद गांधी के पहचाना जाता था। गांधी जी अपने माता-पिता की सेवा, आज्ञा का पालन, गृहकार्यों में सहयोग, सैर करना आदि सभी कार्य किया करते थे। उनके पिता गुजरात की एक छोटी रियासत की राजधानी पोरबंदर के दीवान थे। 

माता पुतलीबाई अत्यधिक धार्मिक थी, गांधी का जन्म पालन वैष्णव मत को मानने वाले परिवार में हुआ और उन पर जैन धर्म का भी गहरा प्रभाव रहा। यही कारण था कि इसके मुख्य सिद्धांतों जैसे- सत्य, अहिंसा, आत्मशुद्ध‍ि और शाकाहार को उन्होंने अपने जीवन में उतारा। गांधी जी ने प्रहृलाद और राजा हरिश्चंद्र को आदर्श माना। वह श्रवण और हरिश्चंद्र की कहानियों से बहुत प्रभावित थे क्योंकि वे सत्य के महत्व को दर्शाते थे।

शिक्षा के दृष्टिकोण से गांधीजी एक औसत विद्यार्थी रहे, लेकिन समय-समय पर उन्होंने पुरस्कार और छात्रवृत्त‍ियां भी मिलीं। वे अंग्रेजी विषय में काफी होनहार थे, अंक गणित में वे मध्यम दर्जे के विद्यार्थी रहे और लिखावट के मामले में भी उन्हें अच्छी टिप्पणियां नहीं मिली।

महात्मा गांधी की शादी मात्र 13 साल की आयु में ही हो गई थी। जब वे स्कूल में पढ़ते थे, तभी व्यापारी की बेटी कस्तूरबा से उनकी शादी हुई थी। 15 साल की आयु में गांधी जी एक बेटे के पिता बन गए। लेकिन वह पुत्र जीवित नहीं रह सका। उनके चार बेटे थे जिनके नाम हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास।

शादी और स्कूली शिक्षा के बाद मुंबई के एक कॉलेज में कुछ दिन पढ़ने के बाद वे वकालत की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड गए। उन्होंने 1888 में लंदन के इनर टेंपल में दाखिला लिया था और 1891 में वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रैक्टिस के लिए लंदन के हाई कोर्ट में एनरॉल हुए। लंदन में गांधी एक वेजिटेरियन सोसायटी में भी शामिल हुए और उनके कुछ शाकाहारी मित्रों ने उन्हें भगवद् गीता से परिचित कराया।

1893 में वे वकील के रूप में काम करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए। वहां उन्हें नस्लीय भेदभाव का प्रत्यक्ष अनुभव हुआ जब उन्हें प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बावजूद ट्रेन के प्रथम श्रेणी अपार्टमेंट से बाहर निकाल दिया गया क्योंकि यह केवल गोरे लोगों के लिए आरक्षित था। किसी भी भारतीय या काले को इसमें यात्रा करने की अनुमति नहीं थी। इस घटना का गंभीर प्रभाव पड़ा और उन्होंने नस्लीय भेदभाव के खिलाफ विरोध करने का फैसला किया।

22 मई 1894 को गांधीजी ने नेटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की और दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के अधिकारों में सुधार के लिए कड़ी मेहनत की। थोड़े ही समय में गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के नेता बन गए।

तिरुक्कुरल जो प्राचीन भारतीय साहित्य, मूल रूप से तमिल में लिखा गया, इस प्राचीन ग्रंथ से गांधीजी भी प्रभावित थे। इसी से वे सत्याग्रह के विचार से प्रभावित थे और 1906 में उन्होंने अहिंसक विरोध प्रदर्शन लागू किया। अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका में बिताने के बाद वे 1915 में भारत लौट आए और नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष शुरू किया और इस समय वे एक नए व्यक्ति में परिवर्तित हो गए।

भारत लौटने के बाद गांधी ने गोपाल कृष्ण गोखले को अपना गुरु बनाकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। गांधीजी की पहली बड़ी उपलब्धि 1918 में थी जब उन्होंने बिहार और गुजरात के चंपारण और खेड़ा आंदोलनों का नेतृत्व किया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, स्वराज और भारत छोड़ो आंदोलन का भी नेतृत्व किया।

महात्मा गांधी का सत्याग्रह सच्चे सिद्धांतों और अहिंसा पर आधारित था। उनका कहना था कि “ऐसे जियो जैसे कि तुम्हें कल मरना है। ऐसे सीखो जैसे तुम्हें हमेशा के लिए जीना है।” 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने मोहनदास करमचंद गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी। इसी के साथ 78 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।

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