NEW DELHI. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस ) के एक वरिष्ठ नेता ने समलैंगिक यौन संबंधों को न केवल अप्राकृतिक बताया बल्कि समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों की भी आलोचना की। आरएसएस के श्रमिक शाखा, भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के पूर्व अध्यक्ष सीके साजी नारायणन ने इसे राक्षसों के बीच प्रथा बताया और शास्त्रों का भी हवाला दिया। हालांकि,आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कुछ समय पहले समलैंगिकता को भारतीय संस्कृति का हिस्सा बताया था और उन्होंने भी शास्त्रों का हवाला दिया था।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों की आलोचाना की
दरअसल, आरएसएस से जुड़ी पत्रिका द ऑर्गनाइज़र के प्रकाशित एक लेख में साजी नारायणन ने समलैंगिक यौन संबंधों को न केवल अप्राकृतिक करार दिया बल्कि समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाले अपने ऐतिहासिक 2018 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों की भी आलोचना की। इसी के साथ पत्रिका के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि शीर्ष अदालत भारतीय मुद्दों पर आंखें बंद कर के वेस्टर्न कल्चर को फॉलो कर रही है जो कहीं से भी स्वस्थ नहीं है।
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साजी नारायणन ने यह भी कहा
बीएमएस के पूर्व अध्यक्ष साजी नारायणन ने कहा कि समलैंगिकता का जिक्र रामायण में राक्षस महिलाओं के बीच एक प्रथा के रूप में किया गया था जिसे हनुमान ने लंका में देखा था। धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र समलैंगिकता को दंडित करते हैं, लेकिन कामसूत्र समलैंगिकता समाज में मौजूद है।
आरएसएस प्रमुख ने यह बताया था
वहीं, इस साल जनवरी की शुरुआत में आरएसएस से जुड़ी पत्रिकाओं ऑर्गनाइज़र और पांचजन्य को दिए एक इंटरव्यू में मोहन भागवत ने एलजीबीटीक्यू अधिकारों के मुद्दे पर बात की थी। इस दौरान उन्होंने संघ के समर्थन को दोहराया था। साथ ही एलजीबीटीक्यू समुदाय को समाज में उचित स्थान दिलाने के लिए आरएसएस प्रमुख ने राक्षसों के राजा जरासंध के दो सेनापतियों- हंस और दिंभक की कहानी सुनाई थी। उन्होंने कहा था कि वो एक समलैंगिक संबंध में थे।