न्याय की देवी की आंखों से हटाई गई पट्टी, CJI ने की थी पहल

आपने फिल्मों के सीन और अदालतों में न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी देखा होगा। लेकिन अब नए भारत की न्याय की देवी की आंखें खुल गईं हैं...

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Sandeep Kumar
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अक्सर आपने फिल्मों अदालतों, और कानूनविदों ( lawmakers ) के चेंबर्स में आंखों पर बंधी पट्टी के साथ न्याय की देवी की मूर्ति को जरुर देखा होगा। अब नए भारत की न्याय की देवी की आंखें खुल गईं हैं। यहां तक कि उनके हाथ में तलवार की जगह संविधान (Constitution ) आ गया है। दरअसल, कुछ समय पहले ही अंग्रेजों के कानून ( english laws ) बदले गए हैं और अब भारतीय न्यायपालिका ( Indian Judiciary ) ने भी ब्रिटिश काल ( British period ) को पीछे छोड़ते हुए नया रंगरूप अपना लिया है।

हटाई गई न्याय देवी की आंखों से पट्टी

सुप्रीम कोर्ट का न केवल प्रतीक बदला रहा है बल्कि सालों से न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी भी हट गई है। जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने देश को संदेश दिया है कि अब कानून अंधा नहीं है। आपको बता दे ये सब कवायद सुप्रीम कोर्ट के CJI डी वाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud ) ने की है। ऐसी ही स्टेच्यू सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में लगाई गई है।

न्याय की देवी के हाथों में संविधान

सीजेआई चंद्रचूड़ के निर्देशों पर न्याय की देवी की मूर्ति को नए सिरे से बनवाया गया। सबसे पहले एक बड़ी मूर्ति जजों की लाइब्रेरी में स्थापित की गई है। पहले न्याय की देवी (goddess of justice ) की मूर्ति होती थी उसमें उनकी दोनों आंखों पर पट्टी बंधी होती थी। नई मूर्ति (new idol ) में न्याय की देवी की आंखें खुली हैं और कोई पट्टी नहीं है। साथ ही एक हाथ में तराजू जबकि दूसरे में सजा देने की प्रतीक तलवार होती थी। हालांकि अब न्याय की देवी की मूर्ति के हाथों में तलवार की जगह संविधान (Constitution ) ने ले ली है। मूर्ति के दूसरे हाथ में पहले की ही तर तराजू रहेगा है।

क्यों बदली गई मूर्ति ?

बताया जा रहा है कि CJI चंद्रचूड़का मानना था कि अंग्रेजी विरासत (english heritage ) से अब आगे निकलना होगा। कानून कभी अंधा नहीं होता, वो सबको समान रूप से देखता है। इसलिए न्याय की देवी का स्वरूप बदला जाना चाहिए। साथ ही देवी के एक हाथ में तलवार नहीं बल्कि संविधान होना चाहिए जिससे समाज में ये संदेश जाए कि वो संविधान के अनुसार न्याय करती हैं। दूसरे हाथ में तराजू सही है कि उनकी नजर में सब समान है।

क्यों बांधी गई थी न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी ?

न्याय की देवी की वास्तव में यूनान की प्राचीन देवी (ancient goddess greece ) हैं। जिन्हें न्याय का प्रतीक कहा जाता है। इनका नाम जस्टिया (Justia ) है। आंखों पर पट्टी बंधे होने का मतलब है कि न्याय की देवी हमेशा निष्पक्ष होकर न्याय करेंगी। इसलिए आंखों पर पट्टी बांधी गई थी।

ये मूर्ति अंग्रेज अफसर लेकर आया था भारत 

17वीं शताब्दी में पहली बार इसे एक अंग्रेज अफसर भारत लेकर आया था। ये अंग्रेज अफसर एक न्यायालय अधिकारी थे। ब्रिटिश काल में 18वीं शताब्दी के दौरान न्याय की देवी की मूर्ति का सार्वजनिक इस्तेमाल किया गया। बाद में जब देश आजाद हुआ, तो हमने भी न्याय की देवी को स्वीकार किया। 

FAQ

न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी क्यों हटाई गई है ?
सुप्रीम कोर्ट के CJI डी वाई चंद्रचूड़ के निर्देशों पर न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी को हटाया गया है ताकि यह संदेश दिया जा सके कि कानून अंधा नहीं है और न्याय सभी के लिए समान है।
नई मूर्ति में न्याय की देवी के हाथों में क्या है ?
नई मूर्ति में एक हाथ में संविधान और दूसरे हाथ में तराजू है, जबकि तलवार को हटा दिया गया है। इससे यह संकेत मिलता है कि न्याय संविधान के अनुसार किया जाएगा।
न्याय की देवी का ऐतिहासिक संदर्भ क्या है ?
न्याय की देवी का मूल रूप यूनान की प्राचीन देवी जस्टिया (Justia) से है, जिन्हें न्याय का प्रतीक माना जाता है। आंखों पर पट्टी का अर्थ निष्पक्षता और न्याय का प्रतीक है।
न्याय की देवी की यह मूर्ति भारत में कब लाई गई थी?
यह मूर्तियां पहली बार 17वीं शताब्दी में एक अंग्रेज अफसर द्वारा भारत लाई गई थीं, और ब्रिटिश काल में 18वीं शताब्दी के दौरान इनका सार्वजनिक उपयोग किया गया। जब देश आजाद हुआ, तब न्याय की देवी को भारतीय न्याय प्रणाली में शामिल किया गया।

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