केंद्र सरकार ने मंगलवार,20 जुलाई को संसद में एक हैरान करने वाला बयान देकर पूरे देश को चौंका दिया कि देश में कोरोना आपदा में ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई है। जबकि असलियत में देश में कोरोना की दूसरी लहर में 6 अप्रैल से 19 मई के बीच 629 मौतें हुईं हैं। मौतों के सच का यह आंकड़ा रिसर्चर्स, वकील और स्टूडेंट्स के एक इंडिपेंडेंट ग्रुप ने ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों के बारे में न्यूज रिपोर्ट्स, जांच पैनल और विभिन्न हाई कोर्ट में अस्पतालों के मैनेजमेंट और डॉक्टर्स के बयान के आधार पर तैयार किया है। लेकिन सरकारें अपनी नाकामी छिपाने के लिए मौतों की हकीकत का कड़वा सच मानने को तैयार नहीं।
राज्य औऱ केंद्र सरकारों के सुर एक
इस मामले में तमाम सरकारें केंद्र-राज्य और दलगत मतभेद भुलाकर एक हैं। चाहे मध्यप्रदेश में बेजीपी की सरकार हो या छत्तीगढ़ में कांग्रेस की। इन दोनों ही राज्य सरकारों के स्वास्थ्य मंत्री एक सुर में बोल रहे हैं कि हमारे प्रदेश में ऑक्सीन की कमी से एक भी जान नहीं गई। शुरुआत में ऑक्सीजन की डिमांड अचानक बढ़ने से बस इसकी सप्लाई का मैनेजमेंट थोड़ा बहुत गड़बड़ाया था। जिसे हमने जल्द दुरुस्त कर लिया था। बुधवार को मप्र के स्वास्थ्य मंत्री डॉ.प्रभुराम चौधरी और छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के ट्वीट्स औऱ मीडिया में सामने आए बयान पर नजर डालेंगे तो आप भी हकीकत समझ जाएंगे । दरअसल राज्य सरकारों के इन्हीं गैरजिम्मेदाराना बयान के आधार पर पर ही केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री डॉ.भारती पवार ने बड़ी आसानी और सफाई से बोल दिया कि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है।कोरोना से हुई मौतों की संख्या राज्य सरकारें जारी करती हैं। लेकिन किसी भी राज्य ने ऑक्सीजन की कमी से किसी मौत की सूचना नहीं दी है।
तो क्या देश में ऑक्सीजन के लिए मची मारामारी झूठ थी ?
क्या पूरा देश सच्चाई से मुंह फेरकर राज्यसभा में केंद्रीय मंत्री के बयान को सच मान ले कि वाकई ऑक्सीन की किल्लत से कोई मौत नहीं हुई। अप्रैल में मई में अस्पतालों के बाहर स्ट्रेचर, एंबुलेंस, ऑटो रिक्शा और कारों में ऑक्सीजन के लिए तड़पते मरीजों का जो दिल दहला देने वाला खौफनाक मंजर उन्होंने अपनी आंखों से देखा था क्या वो झूठ था। आइए एक बार फिर हकीकत दिखाने के लिए हम कुछ उन मामलों पर फिर से नजर डालते हैं जो ऑक्सीजन के लिए मची मारा-मारी के चलते सुर्खियों में आए थे। इनमें से कुछ तो हाईकोर्ट की दहलीज तक भी पहुंचे जिनकी सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सरकारों की भूमिका पर तल्ख टिप्पणियां भी कीं।
मौतों के ये मामले तो हाई कोर्ट में रिपोर्ट हुए
ऑक्सीजन की कमी से मौंतों का पहला पहला मामला1 मई, दिल्ली हाईकोर्टः दिल्ली के बत्रा हॉस्पिटल के मैनेज मेंट ने हाईकोर्ट को बताया कि उनके यहां ऑक्सीजन की कमी से 12 मरीजों की मौत हो गई है। अस्पताल के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर सुधांशु बनकटा ने कोर्ट में कहा कि उनके यहां ऑक्सीजन खत्म हो गई थी। समय पर नई सप्लाई नहीं मिलने से मरीजों की जान चली गई।दूसरा मामला1 मई, दिल्ली हाईकोर्टः दिल्ली के जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल के प्रबंधन ने हाईकोर्ट में बताया कि 24 अप्रैल को ऑक्सीजन की कमी से उनके अस्पताल में 25 लोगों की मौत हो गई।तीसरा मामला21 जुलाई, कर्नाटक हाईकोर्ट का पैनलः कर्नाटक हाईकोर्ट की बनाई एक कमेटी ने पाया कि दूसरी लहर के दौरान चामराजनगर के जिला अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से 36 लोगों की मौत हो गई। हालांकि उप मुख्यमंत्री सीएन अश्वथनारायण ने इस रिपोर्ट के आंकड़े से इनकार किया और कहा कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई।
कोर्ट ने कहा, पानी सिर के ऊपर जा रहा है
इन मामलों की सुनवाई करते हुएकोर्ट को कहना पड़ा था कि पानी सिर के ऊपर जा रहा है। दो मई को दिल्ली के सीताराम भारतीय अस्पताल ने हाईकोर्ट में ऑक्सीजन की किल्लत को लेकर बकायदा याचिका दायर की। अस्पताल ने बताया कि उनके यहां 42 कोरोना मरीज भर्ती हैं और सिर्फ 30 मिनट की ऑक्सीजन बची है। ऑक्सीजन की नई सप्लाई कहीं से मिलती नहीं दिख रही है। हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को फौरन ऑक्सीजन का इंतजाम करने का आदेश दिया।दिल्ली हाईकोर्ट में विपिन सांघी और रेखा पल्ली की बेंच ऐसे मामलों की सुनवाई कर रही थी। लगातार ऑक्सीजन की कमी के बीच जस्टिस सांघी ने अधिकारियों से कहा था कि पानी सिर के ऊपर जा चुका है। अप्रैल में भी एक सुनवाई के दौरान जस्टिस सांघी ने अधिकारियों से कहा था कि चाहे मांगों, उधार लो, चोरी करो या इम्पोर्ट करो। शहर के ऑक्सीजन की जरूरत को पूरा करो।
केंद्र ने भी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया था एफिडेविट
अस्पतालों में ऑक्सीजन की सप्लाई बढ़ाने के लिए अदालतों के निर्देश पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दाखिल किया।केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट में बताया कि ऑक्सीजन की डिमांड को पूरा करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। इसमें ऑक्सीजन टैंकर्स की संख्या बढ़ाना, इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध, मेडिकल ऑक्सीजन का इम्पोर्ट करना, सिलेंडर की उपलब्धता बढ़ाना, एयर और रेल ट्रैवल जैसी बातें शामिल थीं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 अप्रैल और 22 अप्रैल को ऑक्सीजन की कमी को लेकर दो उच्चस्तरीय बैठकें कीं। इसमें सभी विभागों के अधिकारियों को सप्लाई सुनिश्चित करने के निर्देश दिए।
स्टडी में दावा- ऑक्सीजन की कमी से 629 मौतें
देश में रिसर्चर्स, वकील और स्टूडेंट्स के एक इंडिपेंडेंट ग्रुप ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों का डाटाबेस बनाने की कोशिश की है। उन्होंने यह डाटाबेस न्यूज रिपोर्ट्स, जांच पैनल और अस्पतालों के बयान के आधार पर किया है।डेटाबेस के मुताबिक इस साल 6 अप्रैल से 19 मई के बीच यानी 43 दिनों में देश के 110 अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से 629 मरीजों की मौत हुई है। इस आंकड़े में वो मरीज शामिल नहीं हैं, जो घर पर क्वारंटाइन थे, जिन्हें अस्पतालों ने भर्ती करने से मना कर दिया था या ऑक्सीजन की कमी की वजह से डिस्चार्ज कर दिए गए थे।डेटाबेस के मुताबिक 23 अप्रैल को ऑक्सीजन की कमी से सबसे ज्यादा 60 मौतें हुईं। इसमें दिल्ली के दो बड़े अस्पतालों सर गंगाराम और जयपुर गोल्डेन में 46 मौतें रिपोर्ट हुई थीं। अस्पतालों के बयान के बयान के बावजूद अधिकारियों ने ऑक्सीजन की कमी से मौत होने की बात से इनकार कर दिया।