सरकार तय नहीं करेगी क्या सच और क्या झूठ, केंद्र सरकार की फैक्ट चेक यूनिट होगी समाप्त

फ्री स्पीच बनाम फेक न्यूज़ पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने निर्णय करते हुए ऐसा फैसला दिया है जो आने वाले समय में सोशल मीडिया सहित डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की आजादी के लिए प्रभावकारी साबित होने वाला है...

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Neel Tiwari
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20 सितंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में सूचना और प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में किए गए संशोधनों को असंवैधानिक करार दिया है। यह फैसला कॉमेडियन कुणाल कामरा और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं के संदर्भ में आया है, जिन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर फैक्ट चेक यूनिट्स (FCU) की स्थापना के लिए केंद्र सरकार के कदम को चुनौती दी थी। फ्री स्पीच बनाम फेक न्यूज़ पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने निर्णय करते हुए ऐसा फैसला दिया है जो आने वाले समय में सोशल मीडिया सहित डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की आजादी के लिए प्रभावकारी साबित होने वाला है

डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लगाए प्रतिबंध प्रिंट मीडिया पर लागू नहीं

फैसले में न्यायमूर्ति अतुल चंदूरकर ने कहा कि नागरिकों के पास केवल भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, सत्य का अधिकार नहीं।" उन्होंने यह भी कहा कि यह राज्य का दायित्व नहीं हो सकता कि वह सुनिश्चित करे कि नागरिकों को केवल सत्य या तथ्यात्मक जानकारी ही मिले। न्यायमूर्ति चंदूरकर ने आईटी संशोधन के तहत डिजिटल प्लेटफार्मों के लिए बनाए गए नियमों को अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 19(1)(ए) (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा कि संशोधन ने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लगाए गए कठोर प्रतिबंधों को प्रिंट मीडिया पर लागू नहीं किया, जिससे यह असमानता उत्पन्न होती है।

डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय

इस आदेश में जज ने केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि वह अपने ही मामले में मध्यस्थ बनने का प्रयास कर रही थी। केंद्र द्वारा गठित FCU यह तय करती कि कौन सी जानकारी फर्जी है, जबकि केंद्र स्वयं पीड़ित पक्ष है। न्यायमूर्ति चंदूरकर ने कहा कि एफसीयू द्वारा कोई स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं हैं, जिससे यह तय किया जा सके कि जानकारी किस प्रकार से फर्जी या भ्रामक है। यह फैसला भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर सेंसरशिप के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय है। अब यह मामला एक खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए रखा जाएगा, जिसमें नए तर्कों और दृष्टिकोणों के आधार पर इसका अंतिम निपटारा किया जाएगा।

यह हैं फैसले के महत्वपूर्ण बिंदु...

1. स्वतंत्र भाषण का अधिकार, सत्य की जवाबदारी सरकार की नहीं।

न्यायमूर्ति अतुल चंदूरकर ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि नागरिकों को केवल भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, न कि सत्य का अधिकार। इसका मतलब यह है कि राज्य की यह जिम्मेदारी नहीं हो सकती कि वह यह सुनिश्चित करे कि नागरिकों को केवल सत्य या तथ्यात्मक जानकारी मिले।

2. आईटी नियम 2021 के संशोधन को असंवैधानिक करार

बॉम्बे हाई कोर्ट ने आईटी नियम, 2021 के संशोधन को असंवैधानिक करार दिया, जिसमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर फर्जी और भ्रामक जानकारी की पहचान के लिए फैक्ट चेक यूनिट्स (FCU) की स्थापना की बात कही गई थी। इस संशोधन को संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 19(1)(ए) (स्वतंत्र भाषण का अधिकार) का उल्लंघन माना गया।

3. प्रिंट और डिजिटल मीडिया के बीच असमानता

न्यायमूर्ति चंदूरकर ने निर्णय में इस बात को उजागर किया कि प्रिंट मीडिया और डिजिटल मीडिया के बीच असमानता उत्पन्न होती है।
उन्होंने कहा कि प्रिंट मीडिया में दी गई जानकारी पर कोई कठोर नियम नहीं लगाए जाते, जबकि डिजिटल मीडिया पर वही जानकारी सख्त नियमों के तहत आती है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।

4. केंद्र सरकार की भूमिका पर सवाल

न्यायमूर्ति चंदूरकर ने केंद्र सरकार की इस भूमिका की आलोचना की कि सरकार खुद पीड़ित पक्ष होते हुए अपने मामले में मध्यस्थ बनने का प्रयास कर रही है।चूंकि फैक्ट चेक यूनिट्स (FCU) का गठन केंद्र सरकार द्वारा किया गया है और FCU ही यह तय करता है कि कौन सी जानकारी फर्जी या भ्रामक है, इसलिए यह स्थिति निष्पक्ष नहीं मानी जा सकती।

5. FCU के दिशानिर्देशों की कमी

जस्टिस चंदूरकर ने फैसला दिया कि FCU के पास कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं हैं, जिससे यह निर्धारित किया जा सके कि जानकारी किस प्रकार से फर्जी, झूठी या भ्रामक है।
 यह संविधान में निहित मौलिक अधिकारों के हनन की दिशा में एक बड़ा मुद्दा है, क्योंकि इसके गलत इस्तेमाल की संभावना ज्यादा है।

6. संशोधन के खिलाफ सुरक्षा उपायों की कमी

अदालत ने पाया कि मौजूदा आईटी नियमों में फर्जी या झूठी जानकारी को रोकने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं हैं।
न्यायमूर्ति चंदूरकर ने कहा कि मौजूदा नियमों में लगाए गए प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) (स्वतंत्र भाषण का अधिकार) के खिलाफ हैं, और प्रत्येक जानकारी पर रोक लगाने के लिए कम से कम प्रतिबंधात्मक उपाय अपनाने की जरूरत है।

7. खंडपीठ को भेजा जाएगा मामला

न्यायमूर्ति चंदूरकर ने अपने निर्णय के अंत में कहा कि अब यह मामला एक खंडपीठ के समक्ष रखा जाएगा, जहां पर इसमें शामिल मुद्दों का नई और ताजा दृष्टिकोण के साथ निपटारा किया जाएगा। खंडपीठ के निर्णय के बाद ही इस मामले का अंतिम निपटारा संभव होगा।

फैसले का होगा व्यापक प्रभाव

यह फैसला देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और डिजिटल प्लेटफार्मों पर सेंसरशिप के भविष्य पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। अब सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर सरकारी नियंत्रण की सीमा और सत्यता की पहचान को लेकर यह निर्णय नए कानूनी तर्कों और बहसों को जन्म दे सकता है।

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