ज्ञानवापी मामले में आज फैसला आ सकता है, परिसर हिंदुओं को सौंपने और शिवलिंग की पूजा की अनुमति मांगी थी

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Atul Tiwari
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ज्ञानवापी मामले में आज फैसला आ सकता है, परिसर हिंदुओं को सौंपने और शिवलिंग की पूजा की अनुमति मांगी थी

VARANASI. ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मामले से संबंधित एक केस में आज यानी 14 नवंबर को अहम आदेश आ सकता है। सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट महेंद्र कुमार पांडेय की अदालत में ज्ञानवापी मामले में किरन सिंह की तरफ से दायर वाद सुनवाई योग्य है या नहीं। मामले में 15 अक्टूबर को अदालत में दोनों पक्षों की दलीलें पूरी हो गई थी और आदेश के लिए 27 अक्टूबर की तारीख नियत की गई थी। 18 अक्टूबर तक दोनों पक्षों को लिखित बहस दाखिल करने को कहा गया था। 8 नवंबर को जज के छुट्टी पर रहने के कारण आदेश नहीं आ सका था। 



इस मामले में किरन सिंह की तरफ से मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित करने, परिसर हिंदुओं को सौंपने और शिवलिंग की पूजा पाठ, राग भोग की अनुमति मांगी गई थी। विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेंद्र सिंह विसेन ने बताया कि ज्ञानवापी परिसर से संबंधित केस भगवान आदि विश्वेश्वर विराजमान मामले में सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट का आदेश 14 नवंबर को आ सकता है। 



'ज्ञानवापी का गुंबद छोड़कर सब कुछ मंदिर का'



किरन सिंह के वकीलों ने दलील में कहा था कि वाद सुनवाई योग्य है या नहीं, इस मुद्दे पर अंजुमन इंतेजामिया की तरफ से जो आपत्ति उठाई गई है, वह साक्ष्य और ट्रायल का सब्जेक्ट है। ज्ञानवापी का गुंबद छोड़कर सब कुछ मंदिर का है। जब ट्रायल होगा, तभी पता चलेगा कि वह मस्जिद है या मंदिर। दीन मोहम्मद के फैसले के जिक्र पर कहा कि कोई हिंदू पक्षकार उस केस में नहीं था, इसलिए हिंदू पक्ष पर लागू नहीं होता। यह भी दलील दी कि विशेष धर्म स्थल विधेयक 1991 इस वाद में प्रभावी नहीं है। स्ट्रक्चर का पता नहीं कि मंदिर है या मस्जिद, जिसके ट्रायल का अधिकार सिविल कोर्ट को है।



किरन सिंह की अपील के मुताबिक, यह ऐतिहासिक तथ्य है कि औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने और मस्जिद बनवाने का आदेश दिया था। वक्फ एक्ट हिंदू पक्ष पर लागू नहीं होता है। ऐसे में यह वाद सुनवाई योग्य है। अंजुमन की तरफ से दिया गया आवेदन खारिज होने योग्य है। 



हिंदू पक्ष का ये कहना था



हिंदू पक्ष के वकीलों ने दलीलें रखी थी कि राइट टू प्रॉपर्टी के तहत देवता को अपनी प्रॉपर्टी पाने का मौलिक अधिकार है। ऐसे में नाबालिग होने के कारण वाद मित्र के जरिए यह वाद दाखिल किया गया। भगवान की प्रॉपर्टी है, तब माइनर मानते हुए वाद मित्र के जरिए क्लेम किया जा सकता है। स्वीकृति से मालिकाना हक हासिल नहीं होता। यह बताना पड़ेगा कि संपत्ति कहां से और कैसे मिली। अदालत में वाद के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट की 6 रूलिंग और संविधान का हवाला भी दिया गया।

 

मुस्लिम पक्ष की दलील



मुस्लिम पक्ष यानी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की तरफ से मुमताज अहमद, तौहीद खान, रईस अहमद, मिराजुद्दीन खान और इखलाक खान ने कोर्ट में सवाल उठाते हुए कहा था कि एक तरफ कहा जा रहा है कि वाद देवता की तरफ से दाखिल है। वहीं, दूसरी तरफ पब्लिक से जुड़े लोग भी इस वाद में शामिल हैं। 

यह वाद किस बात पर आधारित है, इसका कोई पेपर दाखिल नहीं किया गया और कोई सबूत नहीं है। कहानी से कोर्ट नहीं चलता, कहानी और इतिहास में फर्क है। जो इतिहास है, वही लिखा जाएगा। साथ ही कानूनी नजीरें दाखिल कर कहा था कि वाद सुनवाई योग्य नहीं है और इसे खारिज कर दिया जाए।


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