हरतालिका तीज का पावन पर्व इस साल 6 सितंबर को मनाया जाएगा। इस दिन उत्तर भारत के कई हिस्सों में सुहागन महिलाएं और विवाह योग्य युवतियां हरतालिका तीज मनाती है। हरतालिका तीज का व्रत कठिन होता है। इसके कुछ विशेष नियम होते हैं, जिनका पालन करना जरूरी होता है। यदि आप उन नियमों का पालन नहीं करती हैं तो आपका व्रत निष्फल हो सकता है।
आपको बता दें कि इस व्रत में तीज माता यानी माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करते हैं उनके आशीर्वाद से अखंड सौभाग्य और मनचाहे जीवनसाथी जैसी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आइए अब आपको बताते है कि हरतालिका तीज क्या है? इस व्रत का नाम हरतालिका तीज कैसे पड़ा? हरतालिका तीज के व्रत नियम क्या हैं?
व्रत का नाम हरतालिका तीज कैसे पड़ा
दरअसल माता पार्वती के पिता उनका विवाह भगवान विष्णु से करना चाहते थे और माता पार्वती भगवान शिव को पति स्वरूप में चाहती थीं। तब उनकी सखियों ने माता पार्वती को महल से ले जाकर जंगल में छिपा दिया था। वहां सैकड़ों वर्षों तक कठोर जप, तप करते हुए माता पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनको पति स्वरूप में प्राप्त किया।
हरतालिका तीज के नियम
- हरतालिका तीज का व्रत रखने के एक दिन पूर्व से ही सात्विक भोजन करना चाहिए और तीज पूजन सामग्री और सरगी की व्यवस्था कर लेनी चाहिए।
- हरतालिका तीज का व्रत निर्जला रखा जाता है, इसमें अन्न, जल, फल आदि खाना वर्जित है। यह व्रत तीज के सूर्योदय से चतुर्थी के सूर्योदय तक रखा जाता है। इस व्रत में 24 घंटे तक कुछ नहीं खाते हैं।
- तीज के दिन व्रती को ब्रह्म मुहूर्त 04:30 एएम से 05:16 एएम के बीच नित्य कर्म से मुक्त होकर सरगी खाना चाहिए। सरगी में आप फल, मिठाई आदि का सेवन कर सकती हैं। सूर्योदय 06:02 एएम से आपका व्रत प्रारंभ हो जाएगा।
- तीज पूजा में माता पार्वती, भगवान शिव और गणेश जी की मिट्टी की मूर्ति या तस्वीर का उपयोग करें। पूजा प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त 06:36 पी एम के बाद करें। पूजा के लिए मूर्ति की स्थापना दोपहर में करते हैं।
- इस दिन व्रती को सोलह श्रृंगार के साथ नए वस्त्र पहनना चाहिए। माता पार्वती की पूजा में पीले सिंदूर का इस्तेमाल करते हैं। पूजा के समय आप भी पीला सिंदूर लगाएं। यह सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
- तीज पूजा में माता पार्वती को भी सुहाग सामग्री, लाल साड़ी, चुनरी आदि चढ़ाते हैं।
- इसके बाद हरतालिका तीज की व्रत कथा सुनते हैं और माता पार्वती और शिव जी की आरती करते हैं।
- अगर जीवनसाथी के लिए व्रत कर रही हैं, वे शिव जी और माता पार्वती से मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद लें।
- रात के समय में जागरण करें। फिर 7 सितंबर को सुबह में स्नान करके दैनिक पूजा करें। ब्राह्मणों को दान और दक्षिणा दें। उसके बाद पारण करके व्रत को पूरा करें।