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Haryana Assembly Elections : हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे आ गए हैं। चुनाव में पिछले दस सालों से हरियाणा की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला था। एग्जिट पोल में भी कांग्रेस सरकार बनी रही थी, लेकिन हरियाणा की धरती ने इतिहास रच दिया है। कभी किसी पार्टी को तीसरा मौका न देने वाले हरियाणा के वोटर्स ने फिर से बीजेपी को सत्ता की चाबी सौंप दी है। एग्जिट पोल और शुरुआती रुझानों में आगे चल रही कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। वहीं, बीजेपी ने जश्न मनाना शुरू कर दिया है। जानिए वो कौन से कारण रहे है जिनसे बीजेपी हरियाणा में हैट्रिक लगाने में सफल रही...
पीएम मोदी का चला जादू
बीजेपी की जीत की एक वजह प्रधानमंत्री मोदी का जादू भी हो सकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने खूब प्रचार किया। प्रधानमंत्री मोदी ने पलवल, हिसार और गोहाना में रैलियां कीं और वोट बैंक को अपने पक्ष में किया। इसका असर चुनावी नतीजों में देखने को मिला। पीएम मोदी ने 14 सितंबर को कुरुक्षेत्र जिले में अपनी पहली जनसभा की। इसके बाद उन्होंने 25 सितंबर को सोनीपत जिले में एक रैली को संबोधित किया। अगले दिन यानी 26 सितंबर को उन्होंने हरियाणा के बीजेपी कार्यकर्ताओं से बातचीत की। एक दिन बाद यानी 28 सितंबर को उन्होंने हिसार में चुनावी रैली की। 1 अक्टूबर को पीएम मोदी ने पलवल जिले में अपनी आखिरी चुनावी रैली की।
प्रचार में पिछड़ी कांग्रेस
हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए टिकट बंटवारे से पहले कांग्रेस प्रचार में बीजेपी से पिछड़ती नजर आ रही थी। जब मुख्यमंत्री नायब सैनी के साथ पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल और अन्य केंद्रीय मंत्री प्रचार में जुटे थे, तब कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा, उदयभान, कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला टिकट को लेकर दिल्ली में व्यस्त थे। इसके अलावा कई और फैक्टर भी थे, जिन्होंने बीजेपी की राह आसान कर दी थी।
सीएम के चेहरा बदला
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने हरियाणा सीएम चेंज कर दिया था। मनोहर लाल के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी को भांपते हुए शीर्ष नेतृत्व ने ओबीसी चेहरे नायब सैनी को सीएम पद पर बिठाया था। इसके बाद मनोहर लाल को करनाल से लोकसभा चुनाव लड़ाया गया। सांसद बनने के बाद उन्हें केंद्रीय मंत्री भी बनाया गया।
सवर्ण, ओबीसी को एकजुट कर बीजेपी ने पलटी बाजी
कांग्रेस जहां जाट-दलित समीकरण बनाया। वहीं दूसरी ओर भाजपा ने गैर-जाटों, खासकर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को एकजुट करने पर फोकस किया। हरियाणा में ओबीसी आबादी करीब 35 फीसदी है। भाजपा ने अपने परंपरागत सवर्ण वोट के साथ-साथ गैर-जाट वोटों को भी साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके साथ ही बीजेपी ने कई अभियान चलाकर अनुसूचित जातियों को भी साधा और कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया। इसका सीधा फायदा भाजपा को हुआ और बीजेपी ने हरियाणा में हैट्रिक लगा दी। कांग्रेस के अलावा हरियाणा में अगर अन्य पार्टियों की बात करें तो इनेलो-बसपा गठबंधन और जेजेपी-एएसपी गठबंधन भी मुकाबले में थे। दोनों ही गठबंधन कोई खास कमाल नहीं किया। लेकिन दिलचस्प बात यह भी है कि ये दोनों ही गठबंधन दलितों और जाटों पर निर्भर थे। जेजेपी और इनेलो जाटों पर निर्भर हैं, जबकि एएसपी और बीएसपी दलितों पर निर्भर हैं। ऐसे में नजदीकी मुकाबले वाली सीटों पर ये गठबंधन भाजपा के बजाय कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित हुए। इससे कहीं भाजपा को फायदा हुआ तो वहीं कांग्रेस को नुकसान हुआ।
किसानों को खुश किया
बीजेपी की जीत की एक वजह किसानों की नाराजगी दूर करना भी थी। बीजेपी पर आरोप था कि वह किसानों के आंदोलन को दबाने की कोशिश कर रही है। चुनाव से ठीक पहले इसी मुद्दे पर दांव खेला गया और नायब सिंह सैनी की सरकार ने 24 फसलों पर एमएसपी लागू करने का ऐलान किया। यह ऐलान करने वाला हरियाणा देश का पहला राज्य बन गया।
नए उम्मीदवारों को मैदान में उतारा
इस बार भाजपा ने ऐसे उम्मीदवारों पर दांव लगाया जिनके जीतने की संभावना बहुत अधिक थी। इस बार पार्टी ने करीब 30 नए चेहरे मैदान में उतारे। यहां तक कि कद्दावर नेता रामविलास शर्मा का टिकट भी काट दिया गया।
बीजेपी का आक्रामक प्रचार
चुनाव की घोषणा से पहले ही भाजपा चुनावी मूड में थी। आचार संहिता से पहले भाजपा ने ताबड़तोड़ रैलियां कीं। न सिर्फ मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने अलग-अलग हलकों में जाकर प्रचार को धार दी, बल्कि केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल और कानून मंत्री मेघवाल भी वहां पहुंचे। गृह मंत्री अमित शाह लगातार अपडेट लेते रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 सितंबर को कुरुक्षेत्र में रैली कर प्रचार अभियान की शुरुआत की।
अग्निवीर की अग्नि का फायदा
अग्निवीर योजना को लेकर कांग्रेस ने भाजपा को घेरा। इस कदम का जवाब देते हुए भाजपा ने घोषणा की कि जब अग्निवीर सैनिक 4 साल बाद रिटायर होंगे तो वे बेरोजगार नहीं रहेंगे। उन्हें अच्छी नौकरी दी जाएगी। गृह मंत्री अमित शाह ने अग्निवीर सैनिकों को रिटायरमेंट के बाद नौकरी की गारंटी दी। भाजपा की इस गारंटी का कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं था और भाजपा को इसका फायदा मिला।
बागियों को महत्व नहीं दिया गया
इस बार भाजपा ने बिना किसी दबाव के अपने उम्मीदवार चुने। इससे कई नेता नाराज हो गए। कई नेता पार्टी से बगावत कर मैदान में उतर गए। इनमें सबसे प्रमुख नाम सांसद नवीन जिंदल की मां सावित्री जिंदल का था। उन्होंने हिसार से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था, लेकिन पार्टी ने उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया।
खर्ची-पर्ची मुद्दा
हरियाणा में कांग्रेस ने बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे पर खूब हंगामा किया। इस हंगामे के जवाब में बीजेपी ने खर्ची-पर्ची का कार्ड खेला, जो कांग्रेस के लिए महंगा साबित हुआ और वह उबर नहीं पाई। बीजेपी के सभी बड़े नेताओं ने इस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बीजेपी ने आरोप लगाया कि हरियाणा में 10 साल तक कांग्रेस की हुड्डा सरकार सत्ता में थी। हुड्डा के राज में बेरोजगारों को खर्ची और पर्ची के आधार पर नौकरी मिलती थी, लेकिन बीजेपी के सत्ता में आते ही खर्ची-पर्ची बंद कर दी गई। इस मोर्चे पर कांग्रेस पिछड़ गई।
आपसी गुटबाजी भारी पड़ी कांग्रेस को
बीजेपी की जीत की एक वजह कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी भी कही जा सकती है। हरियाणा में कांग्रेस में गुटबाजी लंबे समय से चल रही है। एक तरफ भूपेंद्र हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा का गुट था तो दूसरी तरफ कुमारी शैलजा का गुट था। दोनों ही गुट मुख्यमंत्री पद के लिए दावा कर रहे थे. इस गुटबाजी में रणदीप सिंह सुरजेवाला भी कूद पड़े और उन्होंने भी मुख्यमंत्री पद के लिए दावा ठोक दिया। इस अंदरूनी खींचतान ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया।
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