हाल ही में जारी हुई वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू की रिपोर्ट के अनुसार सिंगापुर को दुनिया का सबसे फिट देश माना गया है। जापान और दक्षिण कोरिया क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। इस सूची में भारत का स्थान 112वां है, जो देश में शारीरिक निष्क्रियता और स्वास्थ्य सेवाओं की चुनौतियों की तरफ चिंताजनक इशारा है।
फिट देशों में TOP-5 में एशिया के देश
रिपोर्ट के अनुसार, फिटनेस रैंकिंग में टॉप-5 देशों में सिंगापुर, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान और इजराइल शामिल हैं। इस रैंकिंग को तय करने में उच्च जीवन प्रत्याशा, सक्रिय जीवनशैली और मजबूत स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे को प्रमुख मानकों के रूप में लिया गया है। इसके साथ ही नॉर्वे, आइसलैंड और स्वीडन जैसे यूरोपीय देश भी टॉप-10 में शामिल हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, फिट देशों के रैंकिंग स्कोर में सिंगापुर 96.2 अंकों के साथ पहले स्थान पर है, जापान 95.3 अंकों के साथ दूसरे, दक्षिण कोरिया 95.1 अंकों के साथ तीसरे, ताइवान 94.3 अंकों के साथ चौथे और इजराइल 94.2 अंकों के साथ पांचवें स्थान पर है, जबकि भारत 61.3 अंकों के साथ 112वें स्थान पर है।
क्यों की गई यह स्टडी
दरअसल यह अध्ययन 197 देशों में किया गया, जिसमें शोधकर्ताओं ने 18 वर्ष और उससे अधिक आयु के वयस्कों द्वारा बताई गई शारीरिक गतिविधियों के आंकड़ों का विश्लेषण किया। इसका उद्देश्य 2000 से 2022 तक विभिन्न देशों में शारीरिक निष्क्रियता का आकलन करना था। इस विश्लेषण से यह भी पता चला कि 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के पुरुष और महिलाएं दुनिया भर में तेजी से शारीरिक निष्क्रियता की ओर बढ़ रहे हैं।
डराती है साल 2000 की रिपोर्ट
साल 2000 में, भारत में लगभग 22% वयस्क शारीरिक गतिविधि में अपर्याप्त रूप से संलग्न थे। रिपोर्ट के अनुसार, 2010 में दुनिया भर के 26.4% वयस्क शारीरिक गतिविधि में पर्याप्त भागीदारी नहीं कर रहे थे, जो 2000 से 5% अधिक था। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि भारत में, 2010 तक यह संख्या बढ़कर लगभग 34% हो गई थी, और यदि यही प्रवृत्ति बनी रही, तो 2030 तक 60% भारतीय वयस्क शारीरिक गतिविधि में अपर्याप्त रूप से शामिल रह सकते हैं।
आलस से बढ़ रहा बीमारियों का खतरा
यह सभी जानते हैं कि शारीरिक निष्क्रियता कई बीमारियों को बढ़ावा देती है, जिनमें मधुमेह, हृदय रोग, और अन्य गैर-संचारी रोग शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO का कहना है कि शारीरिक गतिविधि में कमी और गतिहीन जीवनशैली इन बीमारियों के बढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यह स्वास्थ्य सेवाओं पर भी अतिरिक्त बोझ डाल रही है।
लांसेट की रिपोर्ट ने भी जताई है चिंता
2023 में लांसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी जर्नल में प्रकाशित इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अध्ययन के अनुसार, 2021 में भारत में एक अरब से ज्यादा लोग मधुमेह से ग्रसित थे। इसके अलावा लगभग सवा तीन अरब लोगों को उच्च रक्तचाप यानी हाई ब्लड प्रेशर की समस्या थी। इसके अतिरिक्त, ढाई अरब लोग मोटापे से पीड़ित थे और पौने दो अरब लोगों का 'खराब' कोलेस्ट्रॉल उच्च स्तर पर था।
WHO के गाइडलाइन का भी नहीं होता पालन
वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) समेत शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने कहा है कि वयस्कों के अपर्याप्त रूप से शारीरिक रूप से सक्रिय होने के मामले में दक्षिण एशियाई क्षेत्र उच्च आय वाले एशिया प्रशांत क्षेत्र के बाद दूसरे स्थान पर है। जर्नल के लेखकों ने पाया कि वैश्विक स्तर पर लगभग एक तिहाई वयस्क (31.3 प्रतिशत) अपर्याप्त रूप से शारीरिक रूप से सक्रिय थे - जिसे प्रति सप्ताह कम से कम 150 मिनट मध्यम-तीव्रता वाली शारीरिक गतिविधि या प्रति सप्ताह 75 मिनट जोरदार-तीव्रता वाली शारीरिक गतिविधि न करने के रूप में परिभाषित किया गया है।
और क्या खास है इस रिपोर्ट में
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की विश्व जनसंख्या स्थिति, 2024 की रिपोर्ट से पता चला है कि भारत की जनसंख्या का 77 वर्षों में दोगुना होने का अनुमान है।
मुख्य विशेषताएं
- 1.44 अरब की अनुमानित आबादी के साथ भारत विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है, इसके बाद चीन 1.425 अरब ककी जनसंख्या के साथ दूसरे स्थान पर है।
- वर्ष 2011 में हुई जनगणना के दौरान भारत की जनसंख्या 1.21 अरब दर्ज की गई थी। जिसकी रिपोर्ट से पता चला कि 24% लोग 0-14 आयु वर्ग के, 17% लोग 10-19 आयु वर्ग के और 26% लोग 10-24 आयु वर्ग के थे। जबकि 68% लोग 15-64 वर्ष की आयु के हैं तथा 7% लोग 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के हैं।
- भारत में पुरुषों की जीवन प्रत्याशा 71 वर्ष और महिलाओं के लिये 74 वर्ष है।
- रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि यौन और प्रजनन स्वास्थ्य में भारत की 30 वर्षों की प्रगति ने वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक हाशिये पर रहने वाले समुदायों को नज़रअंदाज़ कर दिया है। इसमें कहा गया है कि वर्ष 2006-2023 के बीच भारत में बाल विवाह का प्रतिशत 23% था।
- भारत में मातृ मृत्यु में उल्लेखनीय रूप से कमी आई है, जो वैश्विक मातृ मृत्यु का 8% है।
- रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि स्वदेशी समूहों में मातृ मृत्यु दर अधिक है। विकलांग महिलाएँ लैंगिक हिंसा के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।
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