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india budget
भारत का बजट देश की आर्थिक स्थिति को दर्शाने और उसे सुधारने के लिए एक अहम औजार है। ये भारतीय सरकार द्वारा हर साल तैयार किया जाता है और इसमें देश के वित्तीय वर्ष (financial year) के लिए सरकारी खर्चे, राज्य की आय, टैक्स नीतियां, विकास की योजनाएं और योजनाओं के लिए बजट आवंटन होते हैं। भारत का बजट समय-समय पर भारतीय अर्थव्यवस्था की बदलती परिस्थितियों के अनुरूप विकसित हुआ है।
स्वतंत्रता से लेकर आज तक, हर वित्तीय वर्ष में बजट ने न केवल सरकार के खर्च और आय को संतुलित किया है, बल्कि समाज में सुधार, कल्याण योजनाओं और आर्थिक सुधारों के लिए भी महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। आज के डिजिटल और पारदर्शी (transparent) बजट ने भारत को एक नई दिशा दी है और आने वाले समय में ये भारतीय अर्थव्यवस्था को और भी मजबूत बनाने में मदद करेगा। आइए, भारत के बजट के इस ऐतिहासिक सफर के बारे में थोड़ा विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं..
स्वतंत्रता से पहले बजट (1947 से पहले)
भारत में बजट की शुरुआत ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी। इसे "वाइसरॉय का बजट" (Viceroy's Budget) कहा जाता थ। ये मुख्य रूप से ब्रिटिश साम्राज्य के प्रशासनिक खर्चों और राज्य की आय पर केंद्रित था। इस बजट का उद्देश्य भारतीय जनता की भलाई के बजाय ब्रिटिश सरकार के खर्चों को पूरा करना था।
ब्रिटिश साम्राज्य की नीतियों के मुताबिक, ये बजट भारत में औपनिवेशिक शासन (colonial rule) को मजबूत बनाने के लिए तैयार किया जाता था। भारतीय समाज की विकास और जरूरतों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था।
आजादी के बाद पहला बजट (1947)
15 अगस्त 1947 को भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता मिली। इसके बाद 1947 में स्वतंत्र भारत का पहला बजट पेश किया गया, जिसे आर. के. शनमुखम चेट्टी ने प्रस्तुत किया था। ये बजट भारत की आर्थिक नीतियों (economic policies) और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण (national reconstruction) का पहला कदम था।
क्योंकि, भारत स्वतंत्रता के बाद बहुत ही कठिन आर्थिक स्थिति में था, ये बजट राष्ट्रीय स्तर पर खास ढांचे के निर्माण और औद्योगिकीकरण (industrialization) की दिशा में महत्वपूर्ण था। साथ ही, इस बजट में विकास योजनाओं और राजस्व सृजन की रूपरेखा बनाई गई थी।
भारत में बजट प्रक्रिया की शुरुआत (1950 के दशक)
1950 में जब भारत का संविधान लागू हुआ, तो इसके साथ ही बजट की प्रक्रिया को भी संविधान के तहत कानूनी रूप से नियुक्त किया गया। इस समय से पंचवर्षीय योजनाओं (five year plans) की शुरुआत हुई, जो आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए बनीं। नेहरू सरकार के तहत, बजट में औद्योगिकीकरण, कृषि और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया। इसके साथ ही नीति आयोग (पहले Planning Commission) का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य विकास के लिए योजनाओं को व्यवस्थित करना था।
बजट में बदलाव और सुधार (1970-1980 के दशक)
1970 और 1980 के दशक में भारतीय बजट को कई महत्वपूर्ण बदलावों का सामना करना पड़ा। इंदिरा गांधी की सरकार ने सामाजिक कल्याण और औद्योगिकीकरण पर जोर दिया। इसके तहत कृषि क्षेत्र में सुधार, बेरोजगारी घटाने और गरीबी समाप्ति के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की गई।
1973 का तेल संकट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक चुनौती बनकर आया था। जिसके बाद सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों के मूल्य में वृद्धि की। उस समय मूल्य वृद्धि (inflation) और आर्थिक संकट से निपटने के लिए कई नए आर्थिक उपायों की योजना बनाई गई।
1991 के बाद आर्थिक सुधार और बजट में परिवर्तन
1991 में भारत में आर्थिक सुधारों का ऐतिहासिक दौर शुरू हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंह राव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को खोलने और निजीकरण की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। इस सुधार के अंतर्गत विदेशी निवेश (Foreign Investment) को आकर्षित करने के लिए निवेश नीति में बदलाव किया गया।
इसमें निजीकरण और व्यापारिक क्षेत्रों में उदारीकरण (LPG System) को बढ़ावा दिया गया। 1991 में पेश किया गया बजट न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक मील का पत्थर था, बल्कि इसने भारत को वैश्विक बाजार (global market) से जोड़ने का रास्ता भी खोला।
2000 के दशक में बजट का ध्यान
2000 के दशक में भारत ने आर्थिक वृद्धि की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। इस दौरान सरकार ने स्वास्थ्य, शिक्षा, और संरचनात्मक सुधार पर बजट में ध्यान केंद्रित किया। इसके अलावा, इस दौर में महंगाई और बेरोजगारी जैसी समस्याओं का समाधान करने के लिए कई कदम उठाए गए। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (NREGA), स्वच्छ भारत अभियान और आत्मनिर्भर भारत जैसी योजनाओं का वित्तीय समर्थन बढ़ाया गया।
आज के डिजिटल बजट और बड़े सुधार
आज के समय में बजट प्रक्रिया में बहुत बदलाव आ चुका है। 2021 में भारत का पहला पेपरलेस बजट प्रस्तुत किया गया, जिसे निर्मला सीतारमण ने लैपटॉप के माध्यम से पेश किया। ये डिजिटल बजट न केवल पारदर्शिता को बढ़ाता है, बल्कि इसे हर नागरिक तक पहुंचाना भी आसान बनाता है।
इसके अलावा, आत्मनिर्भर भारत योजना, स्टार्टअप इंडिया, स्वच्छ भारत मिशन जैसी कई योजनाएं भी बजट का हिस्सा बनीं, जो भारत की तमाम आर्थिक वृद्धि और आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हो रही हैं।
केंद्रीय बजट का महत्व
भारत का बजट केवल सरकारी खर्चों और आय का हिसाब नहीं होता, बल्कि ये देश की सभी आर्थिक स्थिति और विकास की दिशा को भी निर्धारित करता है। बजट में दी गई नीतियों के द्वारा सरकार तय करती है कि, किस क्षेत्र में अधिक खर्च किया जाएगा, किसे कम प्राथमिकता दी जाएगी और किसे नई योजनाओं के लिए बजट आवंटित किया जाएगा।
ये व्यवसाय, निवेशक और आम नागरिकों के लिए भी एक महत्वपूर्ण संकेत होता है कि आने वाले समय में सरकार किस दिशा में काम करने वाली है। बजट के माध्यम से विभिन्न सरकारी विभागों को धन आवंटित किया जाता है, जिनमें रक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचा शामिल हैं। इन विभागों की तैयारी के दौरान विशेषज्ञों और अन्य हितधारकों से चर्चा की जाती है।
केंद्रीय बजट की प्रस्तुति और बदलाव
भारत का केंद्रीय बजट हर साल 1 फरवरी को पेश किया जाता है। ये दिन आम तौर पर भारतीय वित्तीय वर्ष के अगले वर्ष के लिए सरकार की आय, खर्च, कर नीतियां और विकास योजनाओं की रूपरेखा प्रस्तुत करने के लिए तय किया गया है। हालांकि समय-समय पर इसमें बदलाव भी होते आए हैं।
1998 तक बजट फरवरी के आखिरी कार्य दिवस पर शाम 5 बजे पेश होता था। लेकिन 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने इसे सुबह 11 बजे करने का निर्णय लिया, जिससे इसे अधिक व्यावहारिक माना गया। वहीं चुनावी वर्षों में इसे दो हिस्सों में पेश किया जाता है—एक अंतरिम बजट चुनाव से पहले और एक पूर्ण बजट चुनाव परिणामों के बाद। उसके बाद 2017-18 में बजट की तारीख को 1 फरवरी किया गया और साथ ही रेल बजट पेश करने की परंपरा को समाप्त कर दिया गया।
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