काशी के हरिश्चंद्र घाट पर खेली गई चिताओं की राख से होली, 100 डमरुओं की डम-डम के साथ शुरू हुआ उत्सव, 5 लाख श्रद्धालु जुटे

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The Sootr
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काशी के हरिश्चंद्र घाट पर खेली गई चिताओं की राख से होली, 100 डमरुओं की डम-डम के साथ शुरू हुआ उत्सव, 5 लाख श्रद्धालु जुटे

VARANASI. बाबा विश्वनाथ की नगर काशी की मसान होली काफी प्रसिद्ध है। वाराणसी की मसान होली की शुरुआत 4 मार्च, शनिवार से शुरू हुई। पहले दिन हरिश्चंद्र घाट पर होली खेली गई। मसान होली की शोभा यात्रा में डमरू के डमडम के बीच शव लेकर जाते लोग और जलती चिताओं के बीच चिता भस्म से होली खेलते लोगों का नजारा हैरान करने वाला था। 



दुनिया में जानी जाती है अनोखी परंपरा



काशी अपनी अनोखी परंपरा के लिए दुनिया में जाना जाता है। मसान होली की विशेष शोभा यात्रा में हजारों लोग शामिल हुए। वाराणसी में होली का सुरूर शुरू हो गया है। इस होली की झांकियों में बाबा भोले और मां काली के स्वरूपों ने बेहद खास अंदाज में सड़कों पर प्रस्तुति दी। कलाकारों ने शोभायात्रा के दौरान सभी का मन मोह लिया। बाबा किनाराम स्थल से शुरू हुई शोभा यात्रा हरिश्चंद्र घाट पहुंचकर समाप्त हुई।



100 डमरुओं की निनाद के साथ शुरू हुई होली



इस दौरान मणिकर्णिका घाट पर कोई चिता की राख तो कोई भस्म से नहाया। पूरा माहौल भक्तिमय रहा। यह होली 100 डमरुओं की निनाद के साथ शुरू हुई। इस मौके पर दुनियाभर से करीब 5 लाख श्रद्धालु जुटे। यह पारंपरिक उत्सव देर शाम तक चला। मान्यता है कि मणिकर्णिका घाट पर रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन यानी आज बाबा विश्वनाथ चिताओं से निकलने वाले भूतों और औघड़ों के साथ तांडव करते हैं। इस दौरान उनका सबसे विराट अड़भंगी स्वरूप दिखता है।



विशेष होली की ये है मान्यता



मान्यता है कि रंग भरी एकादशी पर गौना कराकर लौटते समय बाबा विश्वनाथ ने देवताओं के साथ खूब होली खेली थी। लेकिन भूत-प्रेत और औघड़ आदि के साथ होली नहीं खेल पाए थे। इसी वजह से श्रीकाशी विश्वनाथ ने महाश्मशान में भूतों की होली खेली। बाबा महाश्मसान समिति के अध्यक्ष और भस्म होली के आयोजक चैनू प्रसाद गुप्ता ने कहा कि सबसे पहले मणिकर्णिका घाट स्थित मसाननाथ मंदिर में गेरुवा लुंगी और गंजी धारण किए 21 अर्चकों ने बाबा मसाननाथ की आरती उतारी। दोपहर 12 बजकर 5 मिनट पर आरती शुरू हुई, जो 45 मिनट तक चली। 



30 किलो फल-फूल का प्रसाद चढ़ाया गया



बाबा मसाननाथ पर 30 किलो फल-फूल, माला और 21 किलोग्राम प्रसाद चढ़ाया गया। इसके बाद शिवभक्त दौड़ते हुए चिताओं के पास पहुंचे। चिताओं की राख को अपने शरीर पर लगाया। अधजली चिताओं पर गंगाजल और थोड़ी-सी भस्म भी छिड़की गई। मान्यता है कि ऐसा करने से आत्मा को जाते-जाते शिव का प्रसाद मिलता है।


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