NEW DELHI. कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के लिए 10 मई को 224 सीटों पर वोटिंग खत्म होने के बाद शाम 6 बजते ही तमाम टीवी चैनल्स पर एग्जिट पोल रिजल्ट के दावे शुरू गए। इस बार वहां कराए गए 9 एग्जिट पोल्स में से 3 में कांग्रेस की सरकार बनने का दावा किया गया है। 5 सर्वे में कांग्रेस को विधानसभा सीट के लिहाज से सबसे बड़ी पार्टी बताया गया है, लेकिन बहुमत के आंकड़े (113 सीट) से 5 से 10 सीट दूर। जबकि 1 एग्जिट पोल में बीजेपी को बहुमत मिलने का दावा किया गया है। एक में वो सबसे बड़ी पार्टी है। 4 सर्वे में कर्नाटक में हंग असेंबली के आसार जताए गए हैं। 4 सर्वे में जेडीएस को 21 से 33 सीट के साथ किंगमेकर बताया गया है। यानी 2018 की तरह एक बार फिर जेडीएस के समर्थन के बिना कांग्रेस या बीजेपी की सरकार बनने के आसार कम हैं। एग्जिट पोल के इन अनुमानों में कौन सही साबित होता है इसका पता 13 मई को काउंटिंग के असल नतीजे सामने आने के बाद ही पता चलेगा। आइए आपको बताते हैं कि वोटों की गिनती से पहले एग्जिट पोल में कैसे पता चलता है कि सरकार किसकी बनेगी?
क्या है एग्जिट पोल, कैसे किए जाते हैं?
दरअसल एग्जिट पोल एक तरह का चुनावी सर्वे होता है। चुनाव की वोटिंग वाले दिन जब आम मतदाता वोट देकर पोलिंग बूथ से बाहर निकलते हैं तो वहां अलग-अलग सर्वे एजेंसी और न्यूज चैनल के लोग मौजूद होते हैं। वे मतदाता से वोटिंग को लेकर सवाल पूछते हैं। इसमें उनसे पूछा जाता है कि उन्होंने किसको वोट दिया है? इस तरह से हर विधानसभा क्षेत्र के अलग-अलग पोलिंग बूथ से वोटर्स से सवाल पूछा जाता है। वोटिंग खत्म होने तक बड़ी संख्या में जवाब इकट्ठा हो जाते हैं। इन आंकड़ों को जुटाकर और उनके जवाब के लिहाज से अनुमान लगाया जाता है कि पब्लिक का मूड किस ओर है? मैथमेटिकल मॉडल के आधार पर ये निकाला जाता है कि कौनसी पार्टी को कितनी सीटें मिल सकती हैं? इसका प्रसारण मतदान खत्म होने के बाद ही किया जाता है।
कितने लोगों से सवाल पूछा जाता है?
चुनाव में मतदान के दिन एग्जिट पोल के लिए सर्वे एजेंसी या न्यूज चैनल के रिपोर्टर अचानक से किसी बूथ पर जाकर वहां अलग-अलग लोगों से सवाल-जवाब करते हैं। आमतौर पर एग्जिट पोल के लिए 30 से 35 हजार से लेकर 1 लाख मतदाताओं से बातचीत होती है। इसमें क्षेत्रवार हर वर्ग और उम्र के अलग-अलग लोगों को शामिल किया जाता है।
एग्जिट पोल, ओपिनियन पोल से अलग कैसे?
ओपिनियन पोल : दरअसल ओपिनियन पोल चुनाव से पहले कराए जाते हैं। ओपिनियन पोल में सभी लोगों को शामिल किया जाता है। भले ही वो वोटर हों या नहीं। ओपिनियन पोल के रिजल्ट के लिए चुनावी दृष्टि से राज्य के मुख्य चुनावी मुद्दों पर जनता की नब्ज को टटोलने का प्रयास किया जाता है। इसके तहत क्षेत्रवार ये जानने की कोशिश की जाती है कि जनता किस बात से नाराज और किस बात से संतुष्ट है।
एग्जिट पोल : एग्जिट पोल मतदान के तुरंत बाद किया जाता है। एग्जिट पोल में केवल वोटर्स को ही शामिल किया जाता है। यानी इसमें वही लोग शामिल होते हैं जो पोलिंग बूथ में वोट डालकर बाहर निकलते हैं। एग्जिट पोल निर्णायक दौर में होता है। मतलब इससे पता चलता है कि लोगों ने किस पार्टी पर भरोसा जताया है। टेलीविजन पर एग्जिट पोल का प्रसारण मतदान के पूरी तरह से खत्म होने के बाद ही किया जाता है।
वोटिंग खत्म होने के डेढ़ घंटे बाद ही प्रसारण की अनुमति
जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 126 (A) के तहत वोटिंग के दौरान ऐसी कोई चीज नहीं होनी चाहिए जो वोटरों के मनोविज्ञान पर असर डाले या उनके वोट देने के फैसले को प्रभावित करे। वोटिंग खत्म होने के डेढ़ घंटे तक एग्जिट पोल्स का प्रसारण नहीं किया जा सकता है और ये तभी हो सकता है जब सारे चुनावों की अंतिम दौर की वोटिंग भी खत्म हो चुकी हो।
सबसे पहले अमेरिका में हुए ओपिनियन पोल
दुनिया में चुनावी सर्वे की शुरुआत सबसे पहले अमेरिका में हुई। जॉर्ज गैलप और क्लॉड रोबिंसन ने अमेरिकी सरकार के कामकाज पर लोगों की राय जानने के लिए सर्वे किया था। इसकी सटीक तारीख तो रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन इसी के बाद ब्रिटेन ने 1937 और फ्रांस ने 1938 में अपने यहां बड़े पैमाने पर पोल सर्वे कराए। इसके बाद जर्मनी, डेनमार्क, बेल्जियम और आयरलैंड में चुनाव पूर्व सर्वे कराए गए।
नीदरलैंड से हुई एग्जिट पोल की शुरुआत
एग्जिट पोल की शुरुआत नीदरलैंड के समाजशास्त्री और पूर्व राजनेता मार्सेल वॉन डैम ने की थी। वॉन डैम ने पहली बार 15 फरवरी 1967 को इसका इस्तेमाल किया था। उस समय नीदरलैंड में हुए चुनाव में उनका आकलन बिल्कुल सटीक रहा था। भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन (आईआईपीयू) के प्रमुख एरिक डी कोस्टा ने की थी। 1996 में एग्जिट पोल सबसे अधिक चर्चा आए। उस समय दूरदर्शन ने सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (सीएसडीएस) को देशभर में एग्जिट पोल कराने के लिए अनुमति दी थी। 1998 में पहली बार टीवी पर एग्जिट पोल का प्रसारण किया गया था।
क्या एग्जिट पोल हमेशा सही होते हैं?
नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। अतीत में कई बार ये साबित हुआ है कि एग्जिट पोल में जो अनुमान लगाए, वो असल नतीजे सामने आने के बाद गलत साबित हुए। भारत में एग्जिट पोल का इतिहास बहुत सटीक नहीं रहा है। कई बार एग्जिट पोल नतीजों के बिल्कुल उलट रहे हैं। इसलिए इनका विरोध भी होता रहता है। आमतौर पर ये न तो बहुत साइंटिफिक होते हैं और न ही लोगों से बहुत सटीक बात करके तैयार किए जाते हैं। इसलिए ये कई बार हकीकत से अक्सर दूर होते हैं। भारत में 2014 के लोकसभा चुनावों में चुनाव आयोग ने इस पर रोक लगा दी थी।