जानें कैसे हुई रक्षाबंधन मनाने की शुरुआत, पढ़ें रोचक इतिहास

सावन मास की पूर्णिमा को रक्षाबंधन मनाया जाता है। इस साल ये त्योहार 19 अगस्त को मनाया जाएगा, लेकिन क्या इस त्योहार को मनाने के पीछे की कहानियों के बारे में जानते हैं आप...आइए जानते हैं कैसे हुई थी रक्षाबंधन मनाने की शुरुआत।

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Dolly patil
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राखी का त्यौहार भाई-बहन के प्यार का त्योहार होता है। हम अपने भाई-बहनों से कितना भी लड़ लें, लेकिन उनके बिना रहा भी नहीं जाता है। इस दिन भाई-बहन के इसी नोक-झोंक भरे रिश्ते को मनाया जाता है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर राखी की शुरुआत कहां से हुई और कैसे हुई। अगर आपके मन में भी यही सवाल है तो आइए आज हम आपको आपके सारे सवालों के जवाब देते हैं। 

क्या है रक्षाबंधन का इतिहास

ये कहानी महाभारत से जुड़ी है। दरअसल भगवान कृष्ण, द्रौपदी को अपनी बहन मानते थे। इसी के साथ आपको बता दें कि द्रौपदी पंचकन्याओं में से एक मानी जाती हैं। एक बार की बात है कि भगवान कृष्ण की उंगली में चोट लग जाती है और काफी खून बहने लगता है।

इस खून को रोकने के लिए द्रौपदी ने अपनी साड़ी के आंचल को चीरकर उनकी उंगली पर पट्टी बांधी थी। द्रौपदी की इस श्रद्धा और प्रेम को देखकर भगवान कृष्ण ने उनकी सुरक्षा करने का वचन दिया था। इसके बाद कृष्ण ने कौरवों की सभा में द्रौपदी चीर हरण के समय चमत्कार करके अपनी द्रौपदी की लाज बचाई थी।

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ऐसा माना जाता है कि तभी से रक्षाबंधन  ( rakshabandhan ) का त्योहार मनाया जाने लगा था। जिसमें बहनें भाई की कलाई पर कच्चा धागा बांधती हैं और भाई इसके बदले में बहन की रक्षा करने का वचन देते हैं।  आइए अब आपको एक और कहानी सुनाते हैं। 

मां लक्ष्मी और राजा बाली की कहानी

रक्षाबंधन के पर्व ( festival of rakshabandhan ) से जुड़ी एक ये कहानी भी काफी प्रचलित है। ये कहानी देवी लक्ष्मी और राजा बाली से जुड़ी हुई है। दरअसल बाली भगवान विष्णु का परम भक्त था और उन्होंने उसे वचन दिया था कि वे उसकी रक्षा करेंगे। 

इसके लिए वे उसके द्वारपाल बनकर रह थे। इस वजह से देवी लक्ष्मी को बैकुंठ में अकेली रह रही थीं। अपने पति को वापस लाने के लिए उन्होंने एक साधारण स्त्री का रूप धारण किया था।

इसके बाद वो राजा बाली के पास आश्रय लेने गईं। बाली ने उन्हें अपने महल में रहने की जगह दी। इसी के साथ देवी लक्ष्मी के आने से बाली के जीवन में सुख-समृद्धि की बढ़ोतरी होने लगी।

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इसके बाद एक दिन सावन मास की पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी ने बाली की कलाई पर सूत का धागा बांधा और उसके लिए मंगल कामना की। इससे खुश होकर बाली ने उनसे मनचाही इच्छा मांगने को कहा था।

इसके बाद माता लक्ष्मी द्वारपाल की ओर इशारा करने लगी और अपने असली रूप में सामने आईं। फिर भगवान विष्णु ने भी अपना असल स्वरूप लिया। फिर बाली ने अपना वचन पूरा किया और भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी के साथ बैकुंठ जाने के लिए कहा। तब से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाने लगा।

कर्णावती और हुमायूं की कहानी

रक्षाबंधन की कहानियों ( rakshabandhan stories ) कि बात हो और रानी कर्णावती का जिक्र न हो, ऐसा नामुमकिन है। दरअसल मेवाड़ के राजा राणा सांगा के साथ रानी कर्णावती ( Rani Karnavati ) का विवाह हुआ था। गुजरात के शासक बहादुर शाह से युद्ध में राणा सांगा वीरगति को प्राप्त हुए थे।

ऐसे में मेवाड़ को हार से बचाने के लिए रानी कर्णावती ने मुगल शासक हुमायूं को पत्र में राखी भेजी और सहायता के लिए प्रार्थना की, लेकिन ये राखी बादशाह हुमायूं तक काफी देर से पहुंची। इस वजह से जबतक हुमायूं अपनी सेना के साथ मेवाड़ पहुंचे तब तक रानी कर्णावती ने जौहर कर लिया था और बहादुर शाह की विजय हो गई थी।

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