NEW DELHI. नागरिकता संशोधन कानून ( CAA ) देश में लागू हो गया है। लोकसभा चुनाव 2024 के लिए इसे बीजेपी का मास्टस्ट्रोक बताया जा रहा है। जिस प्रकार से लोकसभा चुनाव के ऐनवक्त पर इसे लागू किया गया है, उससे इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बीजेपी इसे लोकसभा चुनाव में भुनाने में कोई कसर बाकी रखेगी। आगामी लोकसभा चुनाव में सीएए बीजेपी के लिए कितना फायदेमंद और किन राज्यों में नुकसानदेय साबित हो सकता है, आइए आपको बताते हैं कि विस्तार से.....
सीएए का लाभ मुट्ठी भर लोगों को
विपक्ष का आरोप है कि ऐन चुनाव के मौके पर जानबूझकर सरकार इस कानून को लागू कर रही है इसलिए इसका मंतव्य स्पष्ट है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश का बयान है कि बीजेपी चुनावी फायदे के लिए ऐन चुनाव के पहले इसे लागू कर रही है। हालांकि गृहमंत्री अमित शाह और केंद्रीय राज्य मंत्री शांतनु ठाकुर बहुत दिनों से ये बात कर रहे हैं कि चुनाव के पहले सीएए लागू कर दिया जाएगा। दोनों नेता बंगाल की चुनावी सभाओं में बार-बार देशभर में सीएए लागू करने का दावा करते रहे हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रमुख मुद्दा था
बीजेपी के लिए पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में ही सीएए लागू करने का वादा एक प्रमुख चुनावी मुद्दा था। बीजेपी सोचती है कि सीएए हिंदू राष्ट्रवाद के उनके एजेंडे को आगे बढ़ा सकता है और हिंदू वोटरों को पार्टी के प्रति ध्रुवीकृत किया जा सकता है। दरअसल, बीजेपी ये कानून खासकर उन राज्यों में जहां पहले से ही बड़ी हिंदू आबादी है के लिए ही लेकर आ रही है, क्योंकि सीएए से जिन राज्यों में जितने लोगों को नागरिकता मिलेगी उससे तो पार्टी स्थानीय चुनाव भी नहीं जीत सकती है। बीजेपी जानती है कि इस मुद्दे का विपक्ष जमकर विरोध करेगा। विपक्ष जितना इस मुद्दे का विरोध करेगा उतना ही बीजेपी को फायदा पहुंचेगा। बीजेपी यह साबित करने की हर संभव कोशिश करेगी कि विपक्ष एंटी हिंदू है और मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए यह विरोध कर रहा है। अगर विपक्ष इस मुद्दे का विरोध न करके बीजेपी की साजिश में ट्रैप होने से बच सकती है।
बंगाल में अपने वोटर्स के साथ किए वादे को निभाना
पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से आए मतुआ समुदाय के हिंदू शरणार्थी काफी लंबे समय से नागरिकता की मांग कर रहे हैं। इनकी आबादी अच्छी खासी है। ये लोग बांग्लादेश से आए हैं। सीएए लागू होने से इनको नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा। पिछले लोकसभा चुनावों में भी बीजेपी को मतुआ समुदाय ने भर-भर कर वोट दिया था। 2024 चुनाव में बीजेपी को अगर फिर से मतुआ समुदाय का वोट पाना है तो यह कानून इसके लिए मददगार साबित होगा। 2014 चुनाव में बंगाल में बीजेपी के पास सिर्फ दो लोकसभा सीट थी। इन्हीं समीकरणों के बल पर 2019 चुनाव में बढ़कर 18 सीटें हो गईं और 2021 विधानसभा चुनाव में बीजेपी दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी थी। लोकसभा सीटों के लिहाज से यूपी (80) और महाराष्ट्र (48) के बाद बंगाल (42) तीसरा सबसे बड़ा राज्य है।
बंगाल में मतुआ समुदाय की आबादी करीब 30 लाख, ममता का लागू करने से इनकार
बंगाल में मतुआ समुदाय की आबादी करीब 30 लाख है। नादिया, उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिलों में कम से कम लोकसभा की चार सीट पर इस समुदाय का प्रभाव है। ममता बनर्जी ने ऐलान किया है कि वो पश्चिम बंगाल में सीएए लागू नहीं होने देंगी। ममता जितना अड़चन डालती हैं तो बीजेपी उन पर उतना ही मुस्लिम परस्ती का आरोप लगाकर कठघरे में खड़ी करेगी। बीजेपी को बंगाल ही नहीं पंजाब और दिल्ली में भी सिखों का भी समर्थन हासिल करने में मदद मिल सकती है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान से बड़ी संख्या में सिख पलायन कर रहे हैं, उनमें बड़ी संख्या कनाडा और इंडिया में माइग्रेट करना चाहती है।
BJP के लिए उल्टा भी पड़ सकता है नॉर्थ ईस्ट का विरोध
देशभर में सीएए का विरोध का आधार यह है कि मुसलमानों को क्यों नहीं इसमें शामिल किया गया है, पर पूर्वोत्तर विरोध की अलग वजह हैं। पूर्वोंत्तर में बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यक हिंदुओं को नागरिकता मिलने से इन छोटे राज्यों में अलग तरह की समस्या उत्पन्न हो रही है। पूर्वोत्तर के मूल निवासियों का मानना है कि अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा के मूल लोग सजातीय हैं। इनका खानपान और कल्चर काफी हद तक मिलता है, लेकिन कुछ दशकों से यहां दूसरे देशों से अल्पसंख्यक समुदाय भी आकर बसने लगा, खासकर बांग्लादेश अल्पसंख्यक बंगाली यहां आने लगे, जिसके चलते यहां की मूल निवासियों के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है।
मेघालय और त्रिपुरा में यह स्थिति
मेघालय में वैसे तो गारो और खासी जैसी ट्राइब मूल निवासी हैं, पर बंगाली हिंदुओं के आने के बाद उनका दबदबा हो गया। इसी तरह त्रिपुरा में बोरोक समुदाय मूल निवासी है, लेकिन वहां भी बंगाली शरणार्थी भर चुके हैं। सरकारी नौकरियों में बड़े पदों पर भी बंगाली समुदाय काबिज हो चुका है। असम के हाल सबसे खराब माने जा रहे हैं। राज्य में करीब 20 लाख से ज्यादा हिंदू बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं। स्थानीय लोगों का दावा है कि जनगणना से असल स्थिति साफ नहीं होती क्योंकि सेंसस के दौरान अवैध लोग बचकर निकल जाते हैं।
देश में दूसरे राज्यों की हिंदू आबादी को बर्दाश्त नहीं करते लोग
एक ट्रेंड यह भी देखने को मिला है जहां कहीं भी पाकिस्तान से आए हिंदुओं को बसाया गया है। स्थानीय जनता ने उनका विरोध किया है। पिछले साल राजस्थान से ऐसी कई खबरें आईं थीं जिसमें स्थानीय आबादी पाकिस्तान से आए हिंदुओं को कहीं अन्यत्र बसाए जाने की मांग कर रही थी। कहीं भी स्थानीय जनता नहीं चाहती कि बड़ी संख्या में दूसरे लोग आकर उनके जनजीवन को प्रभावित करें। एक जानकार बताते हैं कि जब तक यह संख्या मुट्ठी भर लोगों की रहेगी तब तक विरोध नहीं होता है। संख्या बढ़ते ही विरोध शुरू हो जाता है। मुंबई में उत्तर भारतीयों और दक्षिण भारतीयों का विरोध, तमिलनाडु में बिहारियों का विरोध इसी आधार पर होता है।