News Delhi. भारत जल्द ही परमाणु ऊर्जा उद्योग में विदेशी निवेश पर लगा प्रतिबंध हटा सकता है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले नीति आयोग के एक सरकारी पैनल ने इसकी सिफारिश की है। भारत के परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1962 के अंतर्गत परमाणु ऊर्जा के स्टेशनों के केंद्रों के विकास और संचालन में सरकार अहम भूमिका निभाती है और घरेलू कंपनियां इक्विटी पार्टनर के रूप में हिस्सा लेती हैं।
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रॉयटर्स समाचार एजेंसी से मिल रही रिपोर्ट के मुताबिक समिति ने अधिनियम में विदेशी निवेश की नीतियों में बदलाव करने की सिफारिश की है ताकि घरेलू और विदेशी दोनों कंपनियां परमाणु ऊर्जा के उत्पादन में पूरक बन सकें। अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर रॉयटर्स को ये बताया कि इसका उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन को कम करना है और परमाणु उर्जा उत्पादन में और मजबूती हासिल करना है।
परमाणु ऊर्जा विभाग ने मीडिया को ये जानकारी देते हुए बताया कि वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक, जीई-हिताची, इलेक्ट्रिक डी फ्रांस (ईडीएफ) सहित कई विदेशी कंपनियां देश की परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में भाग लेने में दिलचस्पी दिखा रही हैं। सरकारी सूत्रों की मानें तो ये बहुराष्ट्रीय कंपनियां प्रौद्योगिकी, आपूर्ति या ठेकेदार के रूप में और सेवा प्रदाता के रूप में अलग-अलग क्षेत्रों में निवेश को इच्छुक हैं, लेकिन ये विदेशी कंपनियां देश में बढ़ रहीं परमाणु विद्युत परियोजनाओं में तब तक निवेश नहीं कर सकती, जबतक एफडीआई नीति उन्हें इसकी अनुमति नहीं देती है।
अधिकारियों ने ये भी बताया कि परमाणु ऊर्जा उत्पादन में तेजी लाने के लिए छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (एसएमआर) के माध्यम से निजी भागीदारी पर जोर दिया जाएगा, जो भारत के कुल बिजली उत्पादन का 3 प्रतिशत है। जबकि कोयले से बनाई जाने वाली ऊर्जा की हिस्सेदारी तीन चौथाई है। बता दें कि सरकारी कंपनी न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) और भारतीय नाभिकीय विद्युत निगम भारत में केवल दो परमाणु ऊर्जा उत्पादक हैं। थर्मल पावर कंपनी एनटीपीसी (एनटीपीसी) और तेल विपणन फर्म इंडियन ऑयल कॉर्प (आईओसी) एनएस, ने परमाणु ऊर्जा के लिए एनपीसीआईएल के साथ साझेदारी की है।