भारतीय रेलवे यात्री गाड़ियों में बड़ा परिवर्तन करने जा रहा है। रेलवे का यह निर्णय यात्रियों की सुरक्षा और आराम को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, और यह बदलाव रेलवे की नई तकनीक अपनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
क्या बदलाव करेगी रेलवे
भारतीय रेलवे में इस्तेमाल होने वाले नीले रंग के कोच, जिन्हें इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) कोच के रूप में जाना जाता है, धीरे-धीरे हटा दिए जाएंगे और उनकी जगह लाल रंग के लिंक हॉफमेन बुश (एलएचबी) कोच लगाए जाएंगे। यह बदलाव रेलवे के आधुनिकीकरण प्रयासों का हिस्सा है, जिसमें यात्रियों की सुरक्षा और सुविधाओं में सुधार पर विशेष जोर दिया जा रहा है। मार्च 2025 तक करीब 100 ट्रेनों में इस बदलाव का लक्ष्य है।
आईसीएफ और एलएचबी कोच में अंतर
दरअसल, आईसीएफ कोच पुराने प्रकार के होते हैं जो स्टील से बने होते हैं और इनमें एयर ब्रेक का उपयोग किया जाता है। ये कोच भारी होते हैं, जिनमें स्लीपर श्रेणी में 72 सीटें और थर्ड एसी में 64 सीटें होती हैं। इनके रख- रखाव में ज्यादा खर्च होता है, और दुर्घटना के दौरान ये एक के ऊपर एक चढ़ जाते हैं, जिससे यात्रियों की सुरक्षा को खतरा होता है। आईसीएफ कोच को 18 महीनों में ओवरहाल की आवश्यकता होती है।
वहीं, एलएचबी कोच नई तकनीक के हैं। ये स्टेनलेस स्टील से बने होते हैं, जिससे ये हल्के और तेज गति वाले होते हैं। इनमें डिस्क ब्रेक का उपयोग होता है और इनकी अधिकतम गति 200 किमी प्रति घंटे तक होती है। एलएचबी कोच स्लीपर श्रेणी में 80 सीटें और थर्ड एसी में 72 सीटें प्रदान करते हैं। इनकी लंबाई आईसीएफ कोच से 1.7 मीटर अधिक होती है, जिससे यात्रियों की क्षमता बढ़ती है। साथ ही, दुर्घटना के समय इनका डिज़ाइन ऐसा होता है कि ये एक के ऊपर एक नहीं चढ़ते, जिससे सुरक्षा में सुधार होता है। एलएचबी कोच को हर 24 महीनों में ओवरहाल किया जाता है
मार्च 2025 तक बदलाव का लक्ष्य
भारतीय रेलवे के अनुसार, मार्च 2025 तक 2000 नए एलएचबी कोचों का निर्माण पूरा करने का लक्ष्य है, जिनमें से 1300 कोच मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों में लगाए जाएंगे और बाकी 700 कोच आईसीएफ कोचों की जगह लेंगे। इसका उद्देश्य यात्री सुविधाओं को बढ़ाना और रेलवे को और अधिक सुरक्षित बनाना है। आईसीएफ कोचों की जगह नए एलएचबी कोच लगने से रेलवे की गति और क्षमता में सुधार होगा।
एलएचबी कोचों की खासियतें
- एलएचबी कोचों का निर्माण कपूरथला, पंजाब में होता है और ये तकनीक जर्मनी से 2000 में लाई गई थी।
- इन कोचों में डिस्क ब्रेक का उपयोग होता है जो अधिकतम गति को बढ़ावा देते हैं और दुर्घटना की स्थिति में सुरक्षित होते हैं।
- इनमें बैठने की क्षमता आईसीएफ कोचों से अधिक होती है, जिससे यात्रियों की सुविधा में बढ़ोतरी होती है।
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