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New Delhi. दिल्ली-एनसीआर के ईस्ट ऑफ कैलाश इलाके में बना इस्कॉन मंदिर आकर्षक का केंद्र है। इसे श्रीश्री राधा पार्थसारथी मंदिर के नाम से भी जानते हैं। खूबसूरत लोटस टैंपल और कालकाजी मंदिर के पास बने इस्कॉन मंदिर की वास्तुकला शानदार है। यहां आकर घंटों बैठकर राधा-कृष्ण की मूर्ति को निहारते रहने का मन करता है। मंदिर में काफी संख्या में अनुयायी नजर आते हैं। इस्कान से जुड़ने के लिए नियम इतने सख्त हैं कि यह हर किसी के बस की बात नहीं। यहां पांच साल का कठिन तप करना होता है। इस दौरान प्याज, लहसुन, मांस, सभी तरह का नशा त्यागना पड़ता है। अनैतिक आचरण, अवैध संबंध की मनाही रहती है। इजाजत के बाद ही पत्नी से संबंध बना सकते हैं। इन पांच सालों में दीक्षा के लिए नियम का पालन करने वाले पर नजर रखी जाती है। पांच साल बाद एक लिखित परीक्षा होती है। उसके लिए एक दिन की क्लास भी दी जाती है। लिखित परीक्षा पास करने के बाद दो बार इंटरव्यू होते हैं। पहली बार इंटरव्यू आचार्य लेते हैं और दूसरी दफा मुख्य आचार्य लेते हैं। सब कुछ क्लियर करने के बाद एक यज्ञ में लगभग 200 से 300 लोगों को एक साथ दीक्षा दी जाती है। दीक्षा में तब मंत्र और तुलसी की माला दी जाती है।
पांच साल तक तो नीम की माला से जप
इस्कॉन टेंपल के नंदन दास बताते हैं कि इस्कॉन का फॉलोअर बनना इतना आसान नहीं है। इसके लिए पांच साल का कठिन तप करना होता है। तप, शौच, दया और सत्य इन चार नियमों का पालन करना होता है। इन्हीं ही इस्कॉन का स्तंभ माना गया है। हरे कृष्णा, हरे कृष्णा, कृष्णा-कृष्णा हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे का दिन में 16 बार जाप पहले पांच साल तक तो नीम की माला से किया जाता है। दीक्षा के बाद तुलसी की माला दी जाती है।
भगवान कृष्ण के साथ एक इंसान की तरह होता है व्यवहार
इस्कॉन टेंपल के नामप्रेमदास के अनुसार, ‘भगवान कृष्ण को आपके-हमारे तरह एक व्यक्ति के तौर पर माना गया है। इसलिए उनके साथ भी एक इंसान की तरह व्यवहार होता है। आप और मैं जो खाते-पीते हैं, वो भगवान को भी दिया जाता है। मांसाहार और लहसुन-प्याज को छोड़कर। यहीं नहीं, भगवान को बाकायदा सुबह उठाया जाता है, भोग लगाया जाता है। दोपहर का भोग, शाम का भोग भी उन्हें लगता है। रात में उनके सोने की पूरी व्यवस्था की जाती है।
एक दिन में छह बार लगता है भोग?
नामप्रेमदास ने बताया कि ‘एक दिन में छह दफा भोग लगाया जाता है। भोग मंदिर परिसर में ही बनता है। सुबह मंगला आरती के बाद का भोग खास होता है, जिसमें कई तरह की मिठाइयां और केक होते हैं।’ श्रृंगार आरती के बाद गुरु पूजा होती है, भागवत कथा, धूप आरती, राजभोग आरती होती है। दोपहर एक बजे मंदिर का पट बंद हो जाता है। शाम 4.15 बजे उत्थान आरती होती है, फिर संध्या आरती, फिर भागवत कथा। सोने के पहले शयन आरती की जाती है इसके बाद रात में 9 बजे मंदिर का द्वार आमजन के लिए बंद हो जाता है।
मंदिर में अलग-अलग तरह के वस्त्रों के पहनने के पीछे की यह है वजह
मंदिर में सेवा दे रहे नंदन दास के अनुसार, इस्कॉन में ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले गेरुआ वस्त्र पहनते हैं। जो अंडर ट्रेनिंग होते हैं वह पीले वस्त्रों में होते हैं। जो सफेद कपड़ों में हैं वह गृहस्थ होते हैं। इस्कॉन में चारों आश्रमों का पालन किया जाता है। हालांकि, ब्रह्मचर्य का पालन करना सबसे ज्यादा मुश्किल है। उन्हें सुबह 3.30 बजे उठना पड़ता है। फिर नहाने के बाद तिलक लगाकर वो मंगला आरती करते हैं। हरे कृष्णा, हरे कृष्णा, कृष्णा-कृष्णा हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम हरे राम का जप इसके बाद उन्हें करना पड़ता हैं। अंत में वो गुरुपूजा करते हैं। वो सिर्फ सात्विक भोजन करते हैं। ब्रह्मचारियों का काम डोनेशन लाना और प्रचार करना होता है।
गृहस्थ के लिए इस्कॉन से जुड़ना कितना कठिन?
प्रभु नंदन दास के अनुसार, जो लोग घर पर रहते हैं वो भी जाप करते हैं। वह घर में बने भोजन में से सबसे पहले भोग भगवान कृष्ण को लगाते हैं। दस मिनट तक उस भोग को मंदिर में रखकर प्रार्थना करते हैं। फिर उस भोग को घर की रसोई में रखे खाने में मिक्स कर देते हैं। इस प्रकार से सारा खाना प्रसाद बन जाता है। एक और बात मुझे बताई गई कि इस्कॉन में प्रसाद ही खाया जाता है, भोग सिर्फ भगवान को चढ़ता है। इस्कॉन में ऐसा कहा जाता है कि भोग खाना पाप है।
मंदिर परिसर में देवी-देवाताओं की आकर्षक मूर्तियां
करीब 3 एकड़ में फैले इस मंदिर के मुख्य हाल में भगवान श्रीकृष्ण, देवी राधा और अन्य देवताओं की सुंदर मूर्तियां स्थापित की गई हैं। मंदिर में भगवान राम, सीता माता, भगवान लक्ष्मण और भगवान हनुमान की प्रतिमाएं भी हैं। यहां गौरी निताई, श्री नित्यानंद प्रभु और श्री चैतन्य प्रभु की मूर्तियां भी हैं। मंदिर परिसर में कई अन्य आकर्षक मूर्तियां भी लगाई गई है।
670 पेज की श्रीद्भगवद्गीता, वजन 800 किलो
वैदिक सफारी में हमेशा काफी भीड़ रहती है। वैदिक सफारी का टिकट 150 रुपए का है। इसके लिए एक ऑडिटोरियम में जाना पड़ता है। जहां दुनिया का एक बहुत बड़ा अजूबा है। यहां विश्व की सबसे बड़ी श्रीद्भगवद्गीता है। इसे इटली से तैयार करवाया गया है, जिसका खर्च तीन करोड़ रुपए आया है। 670 पेज की ये श्रीद्भगवद्गीता 800 किलो की है। इसे देखने के लिए पूरी दुनिया से लोग आते हैं। इस श्रीद्भगवद्गीता को एक हाएड्रोलिक स्टैंड पर रखा गया है। जिसके पीछे का हिस्सा मेटल का है। इसके पन्ने पलटने के लिए चार लोगों को लगना पड़ता है। इसे देखने के बाद यहां एक लाइट एंड साउंड शो के लिए हमें ले जाया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 फरवरी, 2019 को इस इस्कॉन मंदिर में दुनिया की सबसे बड़ी श्रीमद भगवद गीता का विमोचन किया था। इसे बनाने में डेढ़ करोड़ रुपये की लागत आई है। इस्कॉन के संस्थापक स्वामी प्रभुपाद की ओर से गीता प्रचार के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में यह प्रकाशित कराई गई थी।
महाभारत के मैदान में कृष्ण रथ पर सवार...
एक दरवाजे के अंदर लंबा-लंबा गलियारा है। घुप अंधेरा, हाथ को हाथ नहीं दिखाई दे रहा है। अचानक से सामने सूरज उगता दिखाई दे रहा है, उसकी रोशनी में महाभारत के मैदान में कृष्ण रथ पर सवार हैं। अपने पैरों के पास हाथ जोड़े अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे हैं। गूंजती खनकती, कद्दावर आवाज में छोटी-छोटी लाइनों के कहानीनुमा संवादों के जरिए भागवत गीता का खूबसूरती से सार समझाया गया।
कॉर्पोरेट की तरह काम करता है इस्कॉन
दुनियाभर में इस्कॉन के 200 मंदिर हैं। भारत में इस्कॉन का हेडक्वार्टर मुंबई में है। वहीं पश्चिम बंगाल में इसका इंटरनेशनल हेडक्वार्टर है। इस्कॉन एक चैरिटेबल ट्रस्ट के तौर पर रजिस्टर्ड है। इसके मैनेजमेंट को एक गवर्निंग बॉडी चलाती है, जिसे ‘गवर्निंग बॉडी कमिश्नर’ कहते हैं। इसमें एक जोनल हेड होता है। उसके तहत तीन से चार राज्य आते हैं। टेंपल प्रेसिडेंट और वाइस प्रेसिडेंट ही मुख्य होते हैं। बाकी विभागों के लिए हेड ऑफ डिपार्टमेंट होते हैं।
लाइफटाइम मेंबरशिप की फीस 35,500 रुपए
मंदिर में जगह-जगह पर डोनेशन के बोर्ड लगे हैं। कांस्य सेवा के 500 से 1500 रुपए, ताम्र सेवा के 3,000, रजत सेवा के 5,000, स्वर्ण सेवा के 75,000, प्लैटिनम सेवा के 20,000 रुपए दान में दे सकते हैं। अगर कोई व्यक्ति इस्कॉन की लाइफ मेंबरशिप लेना चाहता है तो उसे इसके लिए 35,500 रुपए चुकाने होते हैं। गीता कोर्स करने के रुपए, गो सेवा के रुपए, अलग अलग पूजा की थालियों के 500 से 2100 रुपए, मानव जीवन का लक्ष्य, अच्छे लोग पीड़ा क्यों झेलते हैं, एंग्जाइटी, डिप्रेशन, मृत्यु के बाद, हमारी मुश्किलें आदि जैसे कोर्स करने के लिए क्यूआरकोड लगे हुए हैं ताकि इन कोर्स को किया जा सके।