झारखंड में इसलिए जीत गए सोरेन भैया और हार गई भारतीय जनता पार्टी

देश-विदेश। झारखंड में लग रहा था कि वहां एनडीए और इंडिया के बीच कड़ा मुकाबला होगा और हार-जीत का अंतर भी कम रहेगा, लेकिन नतीजे बता रहे हैं कि वहां झारखंड मुक्ति मोर्चा (India) की एकतरफा जीत हुई है...

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Sourabh Bhatnagar
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झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा के मुखिया हेमंत सोरेन एक बार फिर से सरकार बनाने जा रहे हैं। आदिवासी बहुल इस राज्य की जनता ने यह जाहिर कर दिया कि सोरेन भैया उनके ‘अपने’ हैं। इसी का परिणाम है कि एनडीए और उससे जुड़ी बीजेपी को मोर्चा ने आसानी से मात दे दी। हेमंत की जीत इसलिए भी बड़ी मानी जा रही है कि बीजेपी ने वहां प्रचार के लिए पीएम से लेकर दूसरे राज्यों के सीएम तक को उतार दिया और घुसपैठिए के मुद्दे को जबर्दस्त मुद्दा बनाया, लेकिन वहां की जनता को उनके वादे-मुद्दे रास नहीं आए। यह भी माना जा रहा है कि हेमंत का जेल जाना उनके लिए वरदान साबित हुआ है। 

हेमंत सोरेन का जेल जाना उनके लिए फायदे वाला रहा

झारखंड में लग रहा था कि वहां एनडीए और इंडिया के बीच कड़ा मुकाबला होगा और हार-जीत का अंतर बहुत कम ही रहेगा। लेकिन नतीजे बता रहे हैं कि वहां झारखंड मुक्ति मोर्चा (India) की एकतरफा जीत हुई है और बीजेपी को आशा के अनुरूप जीत नहीं मिली है। बता दें कि पिछली बार भी हेमंत सोरने ने कांग्रेस और राजद के साथ मिलकर वहां सरकार बनाई थी और इस बार तो वह इंडिया के बैनर तले चुनाव लड़कर सरकार बनाने जा रहे हैं। असल में सीएम हेमंत सोरेन का जेल जाना उनके लिए लाभकारी रहा। कथित जमीन घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में उन्हें गिरफ्तार किया गया था। पांच महीने जेल में रहने के बाद उन्हें हाई कोर्ट से जमानत मिल गई थी। कोर्ट ने कहा था कि हेमंत सोरेन कथित अपराधों के लिए दोषी नहीं हैं। ऐसे में हेमंत को लोगों की सहानुभूति मिली। खासकर आदिवासी समाज से उन्हें पूरी सहानुभूति मिली। हम पहले बताते हैं झामुमो के जीत के मुख्य कारण। 

सरकार की घोषणाओं ने फिर जीत का दरवाजा खोला

सरकार ने 200 यूनिक फ्री बिजली की भी घोषणा की है। प्रतिमाह 200 यूनिट तक बिजली बिल माफ की गई। वहीं किसानों को रिझाने के लिए सरकार लोन माफी योजना लाई। सरकार ने 2 लाख रुपए तक का कृषि लोन माफ कर दिया। सरकार में हेमंत के निर्णय और चल रही योजनाएं भी लोगों को भरोसेमंद लगी। 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति का विधेयक, मॉब लिंचिंग रोकथाम से संबंधित विधेयक, निजी सेक्टर की नियुक्ति में भी झारखंड के लोगों के लिए आरक्षण, आदिवासियों और दलितों के लिए 50 की उम्र से ही वृद्धावस्था पेंशन की योजना, राज्यकर्मियों के लिए पुरानी पेंशन योजना की बहाली जैसे फैसले इसके उदाहरण हैं। 

मंईयां योजना का जादू सिर चढ़कर बोला

सोरेन की दोबारा जीत में मंईयां योजना का जादू दिख रहा है। हेमंत सरकार ने चुनाव से पहले मंईयां योजना की घोषणा कर मास्टर स्ट्रोक खोला है, इसके तहत प्रदेश भर की 18 से 50 वर्ष तक की महिलाओं को प्रत्येक माह 1000 रुपये देने की शुरुआत हुई। चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा से पहले कैबिनेट की बैठक में इसकी रकम में 250 फिसदी की बढ़ोतरी करते हुए 2500 रुपए कर दिया गया। लगता है कि यही योजना ने उन्हें महिलाओं के बंपर वोट दिए। चुनाव आयोग के आंकड़ो के मुताबिक झारखंड विधानसभा की ज्यादातर सीटों पर महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुष की तुलना में अधिक है। जानकार मानते हैं कि महिलाएं हेमंत सरकार की मंईयां योजना पर मुहर लगाने के लिए घरों से निकली हैं।

हेमंत को जेल और लोगों का जुड़ाव 

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पांच माह की जेल ने भी उनके लिए दोबारा से सत्ता का दरवाजा खोला। कोर्ट ने भ्रष्टाचार के आरोपों को दरकिनार कर उन्हें जेल से निकलने की इजाजत दे दी। यह निर्णय भी उनकी जीत का मास्टर स्ट्रोक था। लोगों की सहानुभूति उनसे जुड़ गई, खासकर आदिवासियों का उनसे अपनापन उमड़ा। जेल ने लोगों से उनका भावनात्मक लगाव ज्यादा प्रगाढ़ कर दिया। यही कारण है कि स्थानीय आदिवासी समुदाय ने इसे भावनात्मक रूप से लिया और हेमंत के पक्ष में एकजुट को वोट किया।

बाहरी नेताओं पर झामुमो ने सवाल उठाए थे

झारखंड में बीजेपी के पूरे चुनाव अभियान में स्थानीय नेताओं की बजाय बाहरी नेताओं को तरजीह दी गई। इस बारे में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से कई बार सवाल भी उठाए गए। चुनाव अभियान के दौरान शिवराज सिंह चौहान और हेमंत बिस्वा सरमा जैसे बाहरी नेता खुले तौर पर मैदान में दिखे। वहीं, स्थानीय भाजपा नेताओं में जमीनी स्तर पर वैसा उत्साह नहीं दिखा। परिणाम यह रहा कि बाहरी नेताओं की अपील से लोग भावनात्मक रूप से नहीं जोड़ पाए। दूसरी ओर हेमंत और उनकी पार्टी ने चुनाव के दौरान खांटीपन और देसीपन को आधार बनाकर अपनी जीत को मजबूत किया। 

इन कारणों ने बीजेपी की जीत का रथ रोक दिया...

  • ये मुद्दे लोगों को रास नहीं आए
    इस चुनाव में बीजेपी ने बांग्लादेशी घुसपैठियों और लव जिहाद जैसे मुद्दे उठाकर आदिवासियों को साधने की कोशिश की, लेकिन ये सारे मुद्दे भी फेल रहे। बीजेपी की इस काट के तौर पर झामुमो ने अपनी योजनाओं को मुद्दा बनाया और आदिवासियों ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया। असल में स्थानीय लोगों को बीजेपी के मुद्दे बाहरी लगे और उसमें राज्य के लोकल मसले नदारद नजर आए, इसलिए बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा। 
  • वोटों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास
    ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी ने राज्य के आंतरिक व जमीनी मसलों को नजरंदाज कर वोटों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया। उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने पूरे झारखंड में ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा दोहराया। वहीं दूसरी ओर झामुमो ने महिलाओं को दी जाने सम्मान राशि और फ्री बिजली योजनाओं को मुद्दा बनाया। लेकिन यह मसले हेमंत की चल रही योजनाओं और घोषणाओं के आगे बेअसर साबित रहीं। 
  • आदिवासियों को नहीं साध पाई बीजेपी
    आदिवासी बहुल झारखंड राज्य में बीजेपी इन वोटरों को साधने में बेअसर रही। असल में उसने असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान व अन्य नेताओं को बहुत पहले ही प्रचार में उतार दिया था। उन्होंने केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ देने के अलावा राज्य की बेहतरी के लिए भी लगातार कई घोषणाएं की। लेकिन राज्य का आदिवासी समाज उनसे अपनापन नहीं बना सका। आदिवासियों का मन हेमंत और उनके परिवार में ही रमा रहा। 

भ्रष्टाचार का मुद्दा बेअसर रहा

जमीन घोटाले में सीएम हेमंत को जेल भेजे जाने के बाद बीजेपी ने राज्य में भ्रष्टाचार के मसले को जोर-शोर से उठाया। पार्टी ने कहा कि सरकार के मुखिया व कई मंत्री जमीन व अन्य मामलों में भ्रष्टाचार से जुड़े हैं। वे अपना ही घर भर रहे हैं लेकिन राज्य की जनता की भलाई के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के कुछ पुराने मामले भी इस दौरान उठाए गए। यहां तक की प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य में प्रचार के दौरान भ्रष्टाचार पर बात की। लेकिन जनता में भ्रष्टाचार क्लिक नहीं कर पाया। शायद लोगों में यह संदेश चला गया कि उनके नेता को जबर्दस्ती बलि का बकरा बनाया जा रहा है। चुनाव के रिजल्ट ने यह साबित भी कर दिया।

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