Jharkhand Political Drama : 1990 में जमशेदपुर टाटा स्टील प्लांट के बाहर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का आंदोलन हो या झारखंड राज्य की मांग के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन एक नाम हमेशा सबकी जुबान पर होता था - चंपाई सोरेन...। झारखंड मुक्ति मोर्चा जेएमएम के संस्थापक शिबू सोरेन के सबसे करीबी लोगों में एक चंपाई सोरेन को लोग 'झारखंड टाइगर' कहते हैं। झारखंड के युवाओं के बीच भी वे खासा लोकप्रिय हैं। जीवनमें बड़ी से बड़ी उपलब्धि हासिल कर लेने के बाद भी जमीन से जुड़े रहने वाले नेताओं में चंपाई सोरेन का नाम आता है।
जेएमएम में वे एक ताकतवर और प्रभावशाली नेता रहे हैं लेकिन आज हालात ये हैं कि, उन्हें विकल्प तलाशने पड़ गए हैं। अपनों के बीच ही वे पराए से हो गए हैं। पार्टी के सबसे वरिष्ठ और विश्वसनीय नेता को एक्स पोस्ट करके अपनी पीड़ा बतानी पड़ रही है। आखिर झारखंड में हो क्या रहा है? क्या यह उथल - पुथल अचानक आई या लंबे समय से दबा हुआ असंतोष अब बगावत के रूप में फूट रहा है। सभी सवालों के जवाब जानने के लिए द सूत्र की स्टोरी अंत तक पढ़िए...।
झारखंड के राजनीतिक घटनाक्रम के बारे में जानने से पहले एक नजर चंपाई सोरेन की कहानी पर डाल लेते हैं।
कौन हैं चंपाई सोरेन ?
झांरखंड में चंपाई सोरेन वो आदिवासी चेहरा हैं जो हमेशा गरीबों की मदद के लिए आगे रहा है। जेएमएम के एक समर्पित कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने लम्बे समय तक काम किया। इनका कोई पॉलिटिकल बैकग्राऊंड नहीं रहा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि,- उन्होंने स्वयं को अपनी मेहनत और समर्पण से यहां तक पहुंचाया है।
चंपाई सोरेन का जन्म 1 नवंबर 1959 को हुआ था। चंपाई सोरेन अपने घर में सबसे बड़े हैं। एक गरीब किसान परिवार से आने वाले चंपाई सोरेन ने 10वीं तक ही पढ़ाई की है। इसके बाद वे राजनीति में सक्रीय हो गए थे। जब वे स्कुल में थे तभी से झारखंड राज्य की मांग तूल पकड़ने लगी थी। उन्होंने भी झारखंड राज्य की मांग के लिए किए जाने वाले आंदोलन में लिया था।
झारखंड राज्य के आंदोलन की अपनी एक लंबी कहानी है आज बात चंपाई सोरेन की होगी। जेएमएम के संस्थापक शिबू सोरेन के विश्वसनीय लोगों की लिस्ट में एक नाम चंपाई सोरेन का रहा है। झारखंड राज्य की मांग के लिए उन्होंने शिबू सोरेन के साथ कंधा- से कंधा मिलाकर काम किया है।
चंपाई सोरेन का राजनीतिक करियर :
चंपाई सोरेन छोटी उम्र से ही राजनीति में सक्रिय रहे हैं लेकिन पहला चुनाव उन्होंने साल 1991 में लड़ा। बिहार की सरायकेला सीट से वे पहली बार विधायक चुने गए थे। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, 1991 में सरायकेला सीट पर वे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े थे। इसके बाद जब जेएमएम का गठन हुआ तो उन्होंने शिबू सोरेन के साथ काम किया।
पांच बार के विधायक :
सरायकेला सीट से चंपाई सोरेन पांच बार के विधायक हैं। चंपाई सोरेन सितंबर 2010 से जनवरी 2013 तक अर्जुन मुंडा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं। 2019 में, वे हेमंत सोरेन की सरकार में खाद्य और नागरिक आपूर्ति और परिवहन मंत्री बने।
टैम्प्ररी सीएम का टैग :
समय ने करवट ली और एक सुबह चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री बना दिया गया। चंपाई सोरेन के सीएम बनने का कारण थे हेमंत सोरेन। दरअसल, ईडी ने हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया था इसके बाद उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। ईडी हेमंत सोरेन के खिलाफ जमीन घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच कर रही थी। खैर हेमंत जैसे ही जेल के अंदर गए चंपाई सोरेन लाइमलाइट में आ गए। उन्होंने इंडिया गठबंधन के तहत झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
चंपाई सोरेन का नाम सामने आने से पहले चर्चा थी कि, हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन सत्ता संभाल सकती हैं लेकिन यह बात मात्र चर्चाओं तक सीमित रह गई। अब चंपाई सोरेन सीएम बन गए थे अपनी जिम्मेदारी निभाने लगे थे लेकिन मीडिया में उन्हें टेम्प्ररी सीएम का टैग मिला। उसका कारण थे दोबारा हेमंत सोरेन। सभी को पता था कि, अगर हेमंत सोरेन ईडी की हिरासत से छूटते हैं तो चंपाई सोरेन को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ सकती है। हुआ भी यही, 31 जनवरी को गिरफ्तार किए गए हेमंत सोरेन को 28 जून को कोर्ट के आदेश के बाद रिहा कर दिया गया। 5 महीने बाद अब हेमंत सोरेन जेल के बाहर आ गए और चंपाई सोरेन को सीएम पद से इस्तीफा मांग लिया गया।
यहीं से शुरू हुई असल कहानी :
क्या कुछ हुआ इसके लिए आप चंपाई सोरेन का यह बयान पढ़िए - उन्होंने अपना दर्द बयां करते हुए एक्स पर लिखा, "हूल दिवस के अगले दिन, मुझे पता चला कि अगले दो दिनों के मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है। पूछने पर पता चला कि गठबंधन द्वारा 3 जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है, तब तक आप सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते। इससे अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे?"
इस्तीफा नहीं देना चाहते थे चंपाई सोरेन :
चंपाई सोरेन के बयान और तमाम घटनाक्रम के आधार पर एक बात तो साफ़ है - चंपाई सोरेन ने इस्तीफ़ा दिया नहीं बल्कि उनसे इस्तीफा दिलाया गया। यही बात चंपाई सोरेन के आत्मसम्मान को चोट दे गई और आज वे विकल्प तलाश रहे हैं।
चम्पई सोरेन ने अपने बयान में कहा था कि, 'पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनीतिक सफर में, मैं पहली बार, भीतर से टूट गया। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। सत्ता का लोभ रत्ती भर भी नहीं था, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी इस चोट को मैं किसे दिखाता? अपनों द्वारा दिए गए दर्द को कहां जाहिर करता? किसने सोचा था 'झारखंड टाइगर' कहे जााने वाले व्यक्ति काे एक सोशल मीडिया पोस्ट करके अपना दर्द बयान करना पड़ेगा लेकिन राजनीति में कब क्या हो जाए किसे पता...।
अब आगे क्या :
हम चंपाई सोरेन के राजनीतिक जीवन पर बात कर चुके हैं अब एक नजर झारखंड के भविष्य पर डाल लेते हैं। चंपाई सोरेन ने अपने बगावती तेवर दिखा दिए हैं। कुछ विधायक भी उनके साथ दिल्ली में मौजूद हैं। सूत्रों के अनुसार वे भाजपा की सदस्य्ता भी ले सकते हैं। कुल मिलकर हेमंत सोरेन का नेतृत्व अब सवालों के घेरे में है। अगर कोई और विधायक होता तो शायद सह भी लिया जाता लेकिन यहां बात उस नेता की हो रही है जिसने हेमंत सोरेन के पिता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया था।
भाजपा को क्या फायदा :
हेमंत सोरेन के लिए चंपाई सोरेन की बगावत महंगी साबित होगी। वहीं अगर चंपाई सोरेन भाजपा के साथ हो लेते हैं तो ये भाजपा के लिए बेहद फायदेमंद हो सकता है। पॉइंट्स में समझिये :
- कोल्हान क्षेत्र में झारखंड की 14 सीट आती है। इन सभी पर चंपाई सोरेन का दबदबा है। चंपाई सोरेन की भाजपा में एंट्री से इन सीटों जोड़ - गणित भाजपा के पक्ष में हो सकता है।
- चंपाई सोरेन ने जिस तरह से बगावती सुर छेड़े हैं - यह भाजपा के परिवारवाद के नरेटिव को और मजबूत करेगा। इसके बाद झारखंड में भाजपा हेमंत सोरेन को और आसानी से टारगेट कर पाएगी।
- चंपाई सोरेन की आदिवासी नेताओं पर पकड़ काफी मजबूत है। जल्द ही यहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में अगर चंपाई सोरेन भाजपा में शामिल हो गए तो उनके बाद और भी नेता भाजपा ज्वाइन कर सकते हैं।
क्या गिर सकती है सरकार :
झारखंड विधानसभा में 82 सीट है। 81 पर विधायक निर्वाचित होते हैं वहीं 1 सीट पर विधायक को मनोनीत किया जाता है। यहां झामुमो के पास 27, के पस कांग्रेस 18, भाकपा-माले के पास 1 और राजद के पास 1 विधायक है। वहीं विपक्ष में बैठी भाजपा के पास 24, आजसू के पास 3, NCP (UP) के पास 1 और 1 निर्दलीय विधायक है।
अब वर्तमान में स्थिति यह है कि, सीता सोरेन के इस्तीफे, 4 विधायकों के सांसद बन जाने से विधानसभा में कुल 77 विधायक हैं। इससे बहुमत आंकड़ा 39 हो गया।
नए समीकरण :
झारखंड में झामुगो सरकार को खतरा तो है। अगर चंपाई सोरेन समेत 5 से 6 विधायक जेएमएम छोड़कर भाजपा में शामिल होते हैं तो संभावना है कि, दलबदल कानून के तहत इन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाए। जब ये अयोग्य घोषित हो जाएंगे तो झारखंड विधानसभा की टोटल स्ट्रेंथ 70 रह जाएगी। फिर बहुमत का आंकड़ा 36 हो जाएगा। इसके बाद सरकार में बने रहना हेमंत सोरेन के लिए मुश्किल भरा होगा। भले ही सरकार गिरे या न गिरे...।
खैर, हेमंत सोरेन अब क्या करेंगे, भाजपा की क्या प्लानिंग है और चंपाई सोरेन के राजनीतिक जीवन का नया अध्याय किस तरह से आगे बढ़ेगा यह देखने के लिए थोड़ा इन्तजार और करना होगा।
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