जम्मू-कश्मीर का बिना शर्त 1947 में हुआ था विलय, यह कहना कठिन है कि अनुच्छेद 370 की प्रकृति स्थायी नहीं 

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Pratibha Rana
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जम्मू-कश्मीर का बिना शर्त 1947 में हुआ था विलय, यह कहना कठिन है कि अनुच्छेद 370 की प्रकृति स्थायी नहीं 

New Delhi. जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का विरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं की दलील सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गुरुवार (10 अगस्त) को अहम टिप्पणी के साथ इतिहास के पन्नों से बातें कही हैं। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा है कि भारत के सामने पूर्व रियासत जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता का समर्पण अक्टूबर 1947 में बिना किसी शर्त के पूरी तरह से कर दिया गया था। इसलिए यह कहना 'वास्तव में कठिन' है कि राज्य को विशेष रूप से स्वायत्तता देने वाला अनुच्छेद 370 स्थायी प्रकृति का था। 





सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने क्या कहा?





सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई में अहम बातें कही हैं। उनका मानना है कि संविधान के अनुच्छेद-1 में कहा गया है कि जम्मू और कश्मीर समेत भारत विभिन्न राज्यों का संघ है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि सभी मायनों में संप्रभुता का पूर्ण हस्तांतरण हुआ था। भारतीय संविधान की अनुसूची-1 में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के नामों की सूची है। इसमें जम्मू-कश्मीर समेत इन सभी की सीमा और क्षेत्राधिकार निहित हैं। सुप्रीम कोर्ट में मामले में अगली सुनवाई 16 अगस्त को होगी। 





और क्या कहा पीठ ने...





संविधान पीठ में शामिल जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत का कहना है कि ऐसा कतई नहीं कहा जा सकता है कि अनुच्छेद 370 लागू करने के बाद जम्मू और कश्मीर में संप्रभुता के कुछ तत्वों को बनाए रखा गया था।





कानून के गठन का अधिकार संसद के पास 





सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया कि भारत के साथ जम्मू और कश्मीर के विलय में कोई शर्त नहीं लगाई गई थी। भारत में इस राज्य की संप्रभुता का समर्पण पूरी तरह से किया गया था। जब राज्य की संप्रभुता को भारत में विलीन कर दिया था तो इसलिए (राज्य से संबंधित) किसी भी कानून के गठन का अधिकार संसद के पास ही रहता है। हम अनुच्छेद 370 को ऐसे दस्तावेज के रूप में नहीं देख सकते कि जो जम्मू और कश्मीर की संप्रभुता के कुछ अंश को बनाए रख सकता है।





370 हटाने का विरोध करने वालों की यह दी है दलील





जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का विरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि विलय पत्र के अनुसार भारत सरकार को राज्य से संबंधित रक्षा, संचार और विदेश मामले ही देखने का अख्तियार था। जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जफर शाह ने कहा, संवैधानिक रूप से केंद्र सरकार या राष्ट्रपति के पास जम्मू-कश्मीर के लिए कोई कानून बनाने का अधिकार ही नहीं है। 





केंद्र सरकार ने हलफनामा में क्या कहा था?





केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का बचाव किया है। केंद्र ने सोमवार (7 अगस्त) को शीर्ष अदालत में कहा था कि यह कदम उठाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर के पूरे क्षेत्र में ‘अभूतपूर्व’ शांति, प्रगति और समृद्धि देखने को मिली है। केंद्र सरकार ने कहा था कि आतंकवादियों की तरफ से सड़कों पर की जाने वाली हिंसा और अलगाववादी नेटवर्क अब ‘अतीत की बात’ हो चुकी है। अब वहां हालात बहुत बेहतर हैं। 





2 अगस्त से रोज हो रही है सुनवाई 





चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच-जजों की पीठ ने अनुच्छेद 370 मामले में 2 अगस्त से रोज सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट में राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी। शीर्ष अदालत अब इन्हीं 23 रिट याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।



 



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