इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार के बयान पर SC ने जवाब किया तलब

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव के बयान का संज्ञान लिया है। दरअसल इलाहाबाद HC के जस्टिस ने विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में कहा था कि हिंदुस्तान बहुसंख्यकों की इच्छा के हिसाब से चलेगा...

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Sandeep Kumar
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इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव के एक विवादित बयान ने तूल पकड़ रहा है। हालांकि, ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यादव ने 8 नवंबर को प्रयागराज में आयोजित विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में कहा था कि 'हिंदुस्तान बहुसंख्यकों की इच्छा के हिसाब से चलेगा', इस बयान ने देशभर में बहस छेड़ दी है। कई वरिष्ठ वकीलों और राजनीतिक हस्तियों ने इस बयान की निंदा की है और इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता के खिलाफ बताया है। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर कार्रवाई करने के मूड में है, और जस्टिस यादव के बयान पर जांच की जा रही है।

जस्टिस शेखर यादव के बयान पर SC ने लिया 

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव ने एक कार्यक्रम में यह विवादित बयान दिया कि भारत बहुसंख्यकों की इच्छा से चलेगा। इस बयान के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया है और जस्टिस यादव के खिलाफ जानकारी मांगी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह मामला विचाराधीन है और इसकी इन-हाउस जांच की जाएगी।

सिब्बल-अन्य नेताओं ने जताया विरोध

राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने जस्टिस यादव के बयान को भारत को तोड़ने वाला और संविधान के खिलाफ बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि ऐसे बयान देने वाले जज को कुर्सी पर नहीं बैठने दिया जाना चाहिए। सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में सख्त कदम उठाना चाहिए और ऐसे जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाना चाहिए।

VHP के कार्यक्रम में दिया बयान

जस्टिस शेखर यादव ने 8 नवंबर को प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद की लीगल सेल के कार्यक्रम में बयान दिया था कि भारत बहुसंख्यकों की इच्छा के हिसाब से चलेगा। उनका कहना था कि यह उनकी निजी राय है, जो उन्होंने समाज और परिवार में अधिकतर लोगों के विचारों के अनुरूप व्यक्त की। उनके इस बयान को विवादास्पद माना गया है, जिससे देशभर में बहस शुरू हो गई है।

जस्टिस के खिलाफ महाभियोग लाने का प्रस्ताव

कपिल सिब्बल और अन्य विपक्षी नेताओं ने जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की बात कही है। उनका कहना है कि ऐसे बयान न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आघात करते हैं और इस पर सख्त कदम उठाया जाना चाहिए। उन्होंने केंद्र सरकार से भी समर्थन की अपील की है, ताकि इस तरह के विवादों से बचा जा सके और न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखी जा सके।

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