Karnataka: दुनिया का एक तबका मानता है कि धर्म अफीम है, जिसका असर बहुत गहरा होता है। दूसरी ओर कर्नाटक की सरकार (karnataka government ) को लग रहा है कि यह कमाई का मोटा साधन भी है, इसलिए उनसे ज्यादा चढ़ावा पाने वाले मंदिरों (Mandir ) पर कैटिगरी के अनुसार टैक्स ( tax ) लगाने का निर्णय लिया है। इसकी अधिकतम सीमा 10 प्रतिशत रखी गई है। चूंकि मामला संवेदनशील है, इसलिए इसका विरोध ( oppose ) शुरू हो गया। विपक्षी दल कह रहे हैं कि पैसा मंदिरों से वसूला जाएगा और भला दूसरे धर्मों का होगा। सरकार का कहना है कि टैक्स का प्रावधान तो पहले से ही था, उसे तो और सिम्प्लीफाई ( simplify) किया गया है। फिलहाल प्रदेश में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है।
क्या है मंदिरों पर टैक्स का मसला
गत 21 फरवरी को राज्य की सिद्धारमैया ( कांग्रेस ) सरकार ने विधानसभा में कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती (संशोधन) विधेयक पेश किया था। सदन में BJP और जनता दल (सेकुलर) ने इसका विरोध किया। विधानसभा में कांग्रेस बहुमत में हैं। इसलिए विरोध के बावजूद बिल पास हो गया। मामले को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने इस बिल को विधान परिषद में पेश किया गया। यहां विपक्ष मजबूत स्थिति में हैं। विपक्ष के पास 34 और 8 MLC हैं। कांग्रेस के पास सिर्फ 29 MLC हैं। बहुमत के अभाव में विधान परिषद में यह विधेयक पास नहीं हो सका। सरकार ने 29 फरवरी को दोबारा से इस बिल को विधानसभा में पेश किया। तब राज्यसभा में चुने गए सैयद नसीर हुसैन के समर्थन में 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगने पर BJP और JD(S) ने सदन से वाकऑउट कर दिया। लिहाजा बिल बिना विरोध के पास हो गया। सरकार इस बिल को जल्द पारित कराना चाहती है, इसलिए इसे विधान परिषद बजाय सीधे राज्यपाल के पास भेजा गया है। वहां यह बिल पेंडिंग है और राजनिवास ने इस पर अभी निर्णय नहीं लिया है।
टैक्स वसूलने के लिए बनाई गई कैटेगरी
इस विधेयक के नए प्रावधानों के अनुसार सरकार के अधीन आने वाले करीब 34 हजार मंदिरों को तीन श्रेणी में बांटा गया है। एक करोड़ रुपए से ज्यादा आमदनी वाले मंदिरों को 'A' कैटेगरी में रखा जाएगा और उनसे 10 प्रतिशत टैक्स वसूला जाएगा। 10 लाख से एक करोड़ रुपए के बीच आमदनी वाले मंदिर 'B' कैटेगरी में रखे गए हैं। इन्हें पांच प्रतिशत टैक्स देना होगा। बाकी सभी मंदिर 'C' कैटेगरी में हैं और वे टैक्स की परिधि से बाहर हैं। सरकार का दावा है कि ये पैसा धार्मिक परिषद के खाते में जाएगा। मंदिर से जुड़े विभाग का कहना है कि 'ए' और 'बी' श्रेणी के मंदिरों से लिए टैक्स से इनका खर्च और विकास किया जाएगा। विभाग ने जानकारी दी है कि राज्य में करीब 34 हजार मंदिर ‘सी’ कैटेगरी में, 250 मंदिर ‘बी’ और 67 मंदिर ‘ए’ कैटेगरी में आते हैं। यह बिल लागू नहीं हुआ है लेकिन मंदिरों के पुजारी, श्रद्धालु व विपक्षी दल भी इसके विरोध में उतर आए हैं। आरोप लग रहे हैं कि मंदिर कोई मिल या फैक्ट्री नहीं है, जिससे सरकार टैक्स वसूले। आरोप लग रहे हैं कि मंदिरों का यह पैसा चर्च और मस्जिदों पर खर्च किया जाएगा।
टैक्स वसूली से क्यों नाराज है विपक्ष
इस विधेयक को लाने पर राज्य की विपक्षी पार्टी बीजेपी व जनता दल (सेकुलर) ने कड़ी आपत्ति जताई है। बीजेपी का आरोप है कि मंदिरों से उगाया जाने वाला टैक्स सीधे कांग्रेस सरकार के खाते में जाएगा। पार्टी इसलिए भी नाराज है कि इस बिल के तहत प्रशासक की नियुक्ति सरकार करेगी जो किसी और धर्म का भी हो सकता है। पार्टी का आरोप है कि सिद्धारमैया सरकार ने वक्फ बोर्ड और क्रिश्चियन मिशनरी के लिए बजट में अलग से प्रावधान किया है, लेकिन मंदिर से पैसे लिए जा रहे हैं। यह सरकार हिंदू विरोधी है। प्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र का आरोप है कि सरकार अपना खाली खजाना भरने के लिए यह बिल लाई है। दूसरी ओर जेडीएस की प्रवक्ता प्रशांति का कहना है कि राज्य सरकार हिंदू मंदिरों का पैसा लेगी और उसे मस्जिदों और चर्चों में खर्च करेगी।
प्रदेश के सीएम तो कुछ और ही कह रहे हैं
राज्य के मुख्यमंत्री ने विपक्ष के आरोपों को नकारते हुए कहा है कि मंदिरों से टैक्स लेने का प्रावधान साल 2001 से लागू है। बीजेपी सरकार ने इसे अपने कार्यकाल में शुरू किया था। उन्होंने पांच से 25 लाख रुपए की आमदनी वाले मंदिरों से पांच प्रतिशत टैक्स लिया था। अब 10 लाख रुपए तक के मंदिरों को पैसा नहीं देना होगा। पूर्व बीजेपी सरकार 25 लाख से ऊपर आय वाले मंदिरों से 10 प्रतिशत टैक्स लेती थी। हम इतना टैक्स एक करोड़ से ऊपर आय वाले मंदिरों से ले रहे हैं। संबंधित विभाग के मंत्री रामलिंगा रेड्डी का कहना है कि राज्य में 40 हजार से 50 हजार पुजारी हैं। हम चाहते हैं कि अगर पुजारियों के साथ कुछ होता है तो उनके परिवारों को कम से कम 5 लाख रुपए दिए जाएं ताकि उनके परिवार को आर्थिक संकट न झेलना पड़े। हम पुजारियों के बच्चों को वजीफा भी देने जा रहे हैं। उनका आरोप है कि बीजेपी इस मसले पर मामले में राजनीति कर रही है। कांग्रेस ने हमेशा मंदिरों और हिंदू हितों की रक्षा की है।
पुजारी और श्रद्धालु विरोध जता रहे हैं
मंदिरों से टैक्स वसूली किए जाने के प्रावधान से पुजारी व श्रद्धालु भी नाराज हैं। बेंगलुरु स्थित मल्लेश्वरम गंगा मां मंदिर के एक पुजारी के अनुसार मंदिरों के खर्च भी लगातार बढ़ रहे हैं। इसमें फूलों की खरीदारी, रखरखाव, बिजली-पानी का बिल, स्टाफ का खर्च, प्रसाद और पुजारियों का वेतन आदि शामिल है। टैक्स लगा तो मंदिर प्रशासन को परेशानी होगी। एक श्रद्धालु का कहना था कि सरकार का निर्णय धर्मविरोधी है। अगर सरकार मंदिरों से टैक्स उगाएगी तो मंदिरों के रखरखाव में समस्या आ सकती है। एक अन्य भक्त का कहना था कि सरकार को सभी धर्मों के मामले में समान निर्णय लेने चाहिए। सरकार का यह कदम पक्षपात से भरा हुआ है।