Bengaluru. कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने मस्जिद के अंदर कथित तौर पर 'जय श्री राम' के नारे लगाने के मामले में अहम फैसला सुनाते हुए दो लोगों के खिलाफ पुलिस द्वारा दर्ज आपराधिक मामले को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि यह समझ से परे है कि जय श्री राम का नारे लगाने से किसी समुदाय की धार्मिक भावनाएं कैसे आहत हो सकती है। कोर्ट ने यह आदेश पिछले महीने पारित किया गया था। जिसे मंगलवार को कोर्ट की साइट पर अपलोड किया गया।
'जय श्री राम' के नारे लगाने दर्ज हुआ था केस
शिकायत के अनुसार, दक्षिण कन्नड़ जिले में दो लोगों ने मस्जिद में घुसकर 'जय श्री राम' के नारे लगाए थे। मस्जिद में नारे लगाने के मामले में इन आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 295 ए (धार्मिक विश्वासों को ठेस पहुंचाना) के तहत आरोप लगे थे। आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 447(आपराधिक अतिक्रमण), 506 (आपराधिक धमकी) और 34 के तहत केस दर्ज किया गया।
आरोपों को खारिज करने दायर की अपील
पुलिस की कार्रवाई के बाद आरोपियों ने आरोपों को चुनौती देते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट का रुख किया और आरोपों को खारिज करने के लिए अपील दायर की। आरोपियों के वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि मस्जिद एक सार्वजनिक स्थान है और इसलिए आपराधिक अतिक्रमण का कोई केस नहीं बनता। वकील ने आगे कहा कि जय श्री राम का नारा लगाना आईपीसी की धारा 295 ए के तहत परिभाषित अपराध की जरुरत को पूरा नहीं करता है।
धार्मिक भावनाएं नहीं होती आहत
न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना (Justice M. Nagaprasanna) की सिंगल बेंच ने आरोपियों की अपील याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह समझ नहीं आ रहा है कि जय श्री राम के नारे लगाने से किसी समुदाय की धार्मिक भावनाएं कैसे आहत होंगी।
हाई कोर्ट की बेंच ने कहा कि धारा 295 ए जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्यों से संबंधित है। जिसका उद्देश्य किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान कर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना है। यह समझ में आता है कि अगर कोई जय श्री राम का नारा लगाता है तो इससे किसी वर्ग की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचेगी। शिकायतकर्ता ने कहा कि इलाके में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द से रह रहे हैं, इस घटना का कोई मतलब नहीं निकाला जा सकता है।
बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि कोई भी कृत्य आईपीसी की धारा 295ए के तहत अपराध नहीं बनेगा। जिन कार्यों से शांति स्थापित करने या सार्वजनिक व्यवस्था को नष्ट करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, उन्हें आईपीसी की धारा 295 ए के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। इन कथित अपराधों में से किसी भी अपराध के कोई तत्व न पाए जाने पर याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आगे की कार्रवाई की परमिशन देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और इसके परिणाम स्वरूप न्याय की विफलता होगी।
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