भोपाल. जननायक के नाम से मशहूर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न (मरणोपरांत) से सम्मानित किया जाएगा। 24 जनवरी को उनकी 100वीं जयंती है। वे पिछड़े वर्गों के हितों की वकालत करने के लिए जाने जाते थे। कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के सीएम रहे हैं। वह बिहार के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। साल 1967 में कर्पूरी ठाकुर ने डिप्टी सीएम बनने पर बिहार में अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म कर दिया था।
गरीब को पेंशन मिलती तो होती बड़ी बात
इंदिरा गांधी ने सांसदों-विधायकों को प्रलोभन देते हुए मासिक पेंशन का कानून बनाया था। तब कर्पूरी ठाकुर ने कहा था कि मासिक पेंशन देने का कानून ऐसे देश में पारित हुआ है, जहां 60 में 50 करोड़ (तब की आबादी) लोगों की औसत आमदनी साढ़े तीन आने से दो रुपए है। यदि देश के गरीब लोगों के लिए 50 रुपए मासिक पेंशन की व्यवस्था हो जाती, तो बड़ी बात होती।
देश में पहली बार ईडब्ल्यूएस और महिलाओं के लिए आरक्षण दिया
- देश में पहली बार ओबीसी आरक्षण दिया था।
- 1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद मुंगेरीलाल कमीशन लागू किया। इसके कारण पिछड़ों को नौकरियों में आरक्षण मिला।
- देश के पहले मुख्यमंत्री जिन्होंने अपने राज्य में मैट्रिक तक पढ़ाई मुफ्त की थी।
- बिहार में उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा दिया था।
- 1967 में पहली बार उपमुख्यमंत्री बनने पर अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म की थी।
- गैर लाभकारी जमीन पर मालगुजारी टैक्स को बंद किया था।
- मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने फोर्थक्लास वर्कर पर लिफ्ट का यूजन करने पर रोक हटाई।
लोकप्रियता के कारण मिली जननायक की उपाधि
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 व निधन 17 फरवरी 1988 को हुआ था। लोकप्रियता के कारण उन्हें जन-नायक कहा जाता था। कर्पूरी ठाकुर का जन्म भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान समस्तीपुर के एक गांव पितौंझिया, जिसे अब कर्पूरीग्राम कहा जाता है, में नाई जाति में हुआ था।