नई दिल्ली. किसानों ने 22 जुलाई को जंतर-मंतर पर कृषि कानूनों की रद्द करने की मांग को लेकर किसान संसद लगाई। इस दौरान किसान नेता राकेश टिकैत समेत सभी किसान तीनों कानून रद्द करने की मांग पर अड़े रहे। इस बीच सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने कहा कि ब्रिटेन की संसद में इस पर बहस हो रही है, लेकिन हमारी सरकार इस मुद्दे पर खामोश है। किसानों और सरकार के बीच 12 दौर की बातचीत हो चुकी है।
किसानों को सशर्त मंजूरी
26 जनवरी को किसानों के लाल किले पर उग्र प्रदर्शन के बावजूद दिल्ली सरकार ने किसानों को एंट्री की इजाजत दी गई। यह परमिशन 22 जुलाई से लेकर 9 अगस्त तक है। दिल्ली डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने शर्तों के साथ प्रदर्शन की मंजूरी दी है। दिल्ली में जंतर-मंतर और बॉर्डर पर सिक्योरिटी बढ़ा दी गई है। पुलिस ने किसानों को इस शर्त पर प्रदर्शन की इजाजत दी है कि वे संसद तक कोई मार्च नहीं निकालेंगे।भारतीय किसान यूनियन (BKU) के लीडर राकेश टिकैत पहले सिंघु बॉर्डर पहुंचे थे। यहां से बसों के जरिए वे किसानों के साथ जंतर-मंतर आए। प्रदर्शन में सिर्फ 200 किसान शामिल हुए। टिकैत ने कहा कि हम मॉनसून सत्र की कार्यवाही पर भी नजर रखेंगे।
26 जनवरी को रैली में हुई थी हिंसा
इसी साल 26 जनवरी को लाल किले तक किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के बाद उन्हें पहली बार दिल्ली में प्रदर्शन की इजाजत मिली है। 26 जनवरी की रैली के दौरान प्रदर्शनकारी उग्र हो गए थे और कई उपद्रवियों ने लाल किले में घुसकर पुलिसकर्मियों से मारपीट की थी और किले की प्राचीर पर धार्मिक झंडा भी फहरा दिया था।
केंद्र और किसान दोनों अड़े
देश के किसान नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले साल दिसंबर से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दौरान किसान संगठनों की केंद्र सरकार से 12 दौर की बातचीत भी हो चुकी है, लेकिन कोई समाधान नहीं निकल सका है। किसान तीनों कृषि कानून रद्द करने की मांग पर अड़े हैं। वहीं केंद्र सरकार का कहना है कि वह किसानों की मांगों के मुताबिक कानूनों में बदलाव कर सकती है, लेकिन कानून वापस नहीं लिए जाएंगे।