NEW DELHI. कर्नाटक चुनाव में जीते के बाद सीएम चुनने के लिए कांग्रेस में हुई जद्दोजहद पहली बार नहीं है। ऐसा कई बार हुआ है। साल 2018 में एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी इस तरह की खींचतान देखने को मिली थी। जैसी 72 घंटे तक कर्नाटक में देखने को मिली। कांग्रेस हाईकमान ने कर्नाटक में मुख्यमंत्री विवाद को सुलझा लेने का दावा किया है। इस फॉर्मूले के तहत सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बनाए गए हैं और डीके शिवकुमार उपमुख्यमंत्री। सीएम चुनने में हुई देरी के सवाल पर कर्नाटक कांग्रेस के प्रभारी महासचिव रणदीप सुरजेवाला पत्रकारों पर तंज कसते नजर आए।
कांग्रेस के लिए सीएम चुनना चुनौती से कम नहीं
सुरजेवाला ने मीडिया से कहा कि आप लोग कांग्रेस पार्टी से सवाल पूछ सकते हैं, इसलिए हमसे मुख्यमंत्री चुनने में देरी होने पर सवाल उठा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी से आप इस तरह का सवाल नहीं पूछ सकते हैं। सुरजेवाला मीडिया के मुख्यमंत्री चुनने में देरी होने के सवाल को भले घुमा दे, लेकिन पिछला इतिहास देखकर लगता है कि कांग्रेस के लिए नेता चुनना हमेशा टेढ़ी खीर साबित हुआ है।
राजीव गांधी ने एयरपोर्ट पर ही बदले मुख्यमंत्री
कांग्रेस में सबसे ज्यादा सीएम राजीव गांधी के दौर में ही बदले गए। राजीव गांधी के कार्यकाल में राजस्थान और बिहार में 5 साल के भीतर 4-4 मुख्यमंत्री बदल दिए गए थे। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी 3-3 मुख्यमंत्री बदले गए। 1990 में राजीव गांधी ने कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल को एयरपोर्ट पर बुलाकर इस्तीफा देने के लिए कह दिया था। राजीव कर्नाटक में हुए छिटपुट दंगों की वजह से पाटिल से नाराज थे। पाटिल को हटाने के बाद एस बंगरप्पा को राजीव गांधी ने सीएम बनाया था। लिंगायत समुदाय से आने वाले पाटिल ने 1994 के चुनाव में इसे बड़ा मुद्दा बनाया और एयरपोर्ट पर सीएम बदलने के आदेश को खुद के अपमान से जोड़ दिया था। साल 1984 में कांग्रेस और देश की सत्ता संभालने के बाद राजीव गांधी ने बिहार, यूपी, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में सीएम बदल दिए है। दिलचस्प बात है कि मुख्यमंत्री बदलने के बाद भी उस वक्त राजीव के खिलाफ विरोध के स्वर कहीं पर नहीं उठे।
पीवी नरसिम्हा राव के समय वोटिंग से चुने जाते थे सीएम
राजीव गांधी के बाद कांग्रेस की कमान पीवी नरसिम्हा राव के हाथों में थी। राव ने अपने समय में वोटिंग के जरिए सीएम चुनने को तरजीह दी। 1993 में मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह वोटिंग के जरिए ही मुख्यमंत्री चुने गए। इसके 2 साल बाद केरल के करुणाकरण को हटाने के लिए भी त्रिवेंद्रम में विधायकों की बैठक बुलाई गई। विधायकों ने एकसाथ उस वक्त एके एंटोनी को नेता चुन लिया था।
सोनिया काल में अहमद पटेल का ओहदा था अहम
1998 में सीताराम केसरी के बाद कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी ने संभाली। सोनिया गांधी के आने के बाद राजस्थान, महाराष्ट्र और कर्नाटक में कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हुई। कांग्रेस में मुख्यमंत्री चुनने के लिए 'एक लाइन के प्रस्ताव' प्रक्रिया की शुरुआत सोनिया काल में ही शुरू किया गया। इसके तहत जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनती थी, उन राज्यों में दिल्ली से ऑब्जर्वर भेजे जाते थे। ऑब्जर्वर एक लाइन का प्रस्ताव लेकर दिल्ली आ जाते थे। इसके बाद सभी दावेदारों को दिल्ली बुलाया जाता था और मुख्यमंत्री नाम पर फैसला लिया जाता था। सोनिया काल में मुख्यमंत्री चयन में उनके राजनीतिक सचिव अहमद पटेल की सिफारिश अहम मानी जाती थी। अहमद पटेल सोनिया गांधी के करीबी और उनके खास सिपहसालार थे। सोनिया किसी भी नियुक्ति से पहले पटेल से जरूर सलाह लेती थीं, पटेल खुद को हमेशा मैडम का संदेश वाहक बताते थे। सोनिया के दौर में अहमद पटेल ने अपने करीबी मुख्यमंत्रियों पर कभी भी संकट नहीं आने दिया। इनमें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम शामिल है। आपको बता दें कि राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत को अहमद पटेल का करीबी और विश्वसनीय दोस्त माना जाता था।
राहुल-खरगे के दौर सीएम चुनने में हो रही देरी
राहुल गांधी और अब मल्लिकार्जुन खरगे के दौर में सीएम के चयन में घंटों की देरी हो रही है। राहुल के अध्यक्ष रहते कांग्रेस को छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान चुनाव में जीत मिली थी। तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री चुनने में कांग्रेस को 4 दिन से ज्यादा का वक्त लग गया था। कांग्रेस ने उस वक्त भी दिल्ली में ही मुख्यमंत्री का विवाद सुलझाया था। हालांकि, मुख्यमंत्री का मसला सुलझाने का दावा फेल रहा। एमपी में सीएम चयन को लेकर ही सरकार गंवानी पड़ी। वहीं राजस्थान में भी पार्टी के अंदर पनपी गुटबाजी के कारण हालत बिगड़ गई थी, लेकन समय रहते हालात सुधार लिए गए।
खरगे नहीं सुलझा सके एक भी विवाद
राहुल के बाद अब मल्लिकार्जुन खरगे कांग्रेस के अध्यक्ष बने। खरगे के अध्यक्ष बनने के बाद हिमाचल में मुख्यमंत्री का पेंच फंसा था। वहां भी प्रियंका गांधी ने सुलझाया था। इसी तरह कर्नाटक का 4 दिन तक पेंच फंसा रहा, जिसे आखिर में रात दो बजे सोनिया गांधी ने सुलझाया।