NEW DELHI. चंद्रयान-3 चांद की ओर जाने को तैयार है। इसरो के वैज्ञानिकों के मुताबिक चंद्रयान-3 ने दूसरी ऑर्बिट रेंजिंग प्रोसेस सफलतापूर्वक पूरी कर ली है। स्पेसक्राफ्ट चंद्रयान-3 अब ऐसी अंडाकार कक्षा में घूम रहा है जो पृथ्वी से सबसे करीब 226 किलोमीटर और सबसे दूर 41 हजार 603 किलोमीटर है। स्पेसक्राफ्ट की हेल्थ नॉर्मल बताई जा रही है।
पृथ्वी की कक्षा कब छोड़ेगा चंद्रयान-3
स्पेसक्राफ्ट की कक्षा बढ़ाने के लिए अगली फायरिंग मंगलवार दोपहर 2 से 3 बजे के बीच प्लान की गई है। इसके बाद पृथ्वी के ऑर्बिट में 2 बार और फायरिंग की जाएगी। स्पेसक्राफ्ट 31 जुलाई और 1 अगस्त की मध्यरात्रि को पृथ्वी की कक्षा छोड़ देगा और चंद्रमा की ओर बढ़ेगा। 5 अगस्त को चंद्रमा की ग्रैविटी स्पेसक्राफ्ट को कैप्चर करेगी। 23 तारीख को चंद्रयान चांद पर लैंड करेगा।
चांद के साउथ पोल पर उतरेंगे लैंडर और रोवर
चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर चांद के साउथ पोल पर उतरेंगे और 14 दिनों तक वहां प्रयोग करेंगे। प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रमा की कक्षा में रहेगा और धरती से आने वाली रेडिएशन्स का अध्ययन करेगा। इस मिशन के जरिए ISRO पता लगाएगा कि चांद की सतह पर भूकंप कैसे आते हैं। रोवर चांद की मिट्टी का अध्ययन भी करेगा।
चंद्रयान-3 से भारत को क्या मिलेगा ?
ISRO में साइंटिस्ट रह चुके मनीष पुरोहित का कहना है कि इस मिशन के जरिए भारत दुनिया को बताना चाहता है कि उसके पास चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने और रोवर को वहां चलाने की काबिलियत है। इससे दुनिया का भारत पर भरोसा बढ़ेगा जो कमर्शियल बिजनेस बढ़ाने में मदद करेगा। भारत ने अपने हेवी लिफ्ट लॉन्च व्हीकल LVM3-M4 से चंद्रयान को लॉन्च किया है। इस व्हीकल की काबिलियत भारत पहले ही दुनिया को दिखा चुका है।
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चांद का साउथ पोल दूसरे रीजन्स से काफी अलग
चंद्रयान-3 को चांद के साउथ पोल पर इसलिए भेजा जा रहा है। क्योंकि ये चंद्रमा के दूसरे पोल से काफी अलग है। यहां कई हिस्से ऐसे हैं जहां सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुंचती और तापमान -200 डिग्री सेल्सियस से नीचे तक चला जाता है। ऐसे में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यहां बर्फ के रूप में पानी मौजूद हो सकता है। भारत के 2008 के चंद्रयान-1 मिशन ने चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का संकेत दिया था। अगर सब कुछ ठीक रहा तो चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट-लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला स्पेसक्राफ्ट बन जाएगा।