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कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है, जो चार प्रमुख स्थानों पर आयोजित होता है हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन। इन स्थानों पर होने वाले कुंभ के पर्व की अवधि और आयोजन की स्थिति अलग-अलग होती है। तो आइए जानते हैं इनके महत्व और आयोजन के बारे में विस्तार से.....
कुंभ क्या है?
कुंभ का अर्थ "घड़ा" या "कलश" होता है। हर तीन साल में कुंभ का आयोजन होता है, लेकिन उज्जैन को छोड़कर यह आयोजन अन्य तीन स्थानों पर ही होता है।
अर्धकुंभ क्या है?
"अर्ध" का अर्थ आधा होता है। हरिद्वार और प्रयाग में, दो कुंभ पर्वों के बीच छह साल के अंतराल पर अर्धकुंभ का आयोजन होता है।
पूर्णकुंभ क्या है?
पूर्णकुंभ का आयोजन हर 12 साल में एक बार होता है। उदाहरण के लिए, जब उज्जैन में कुंभ होता है, तो उसके तीन साल बाद हरिद्वार, फिर प्रयाग और नासिक में कुंभ होते हैं। 12 साल बाद पुनः उज्जैन में कुंभ होगा, और इसे पूर्णकुंभ कहा जाएगा।
महाकुंभ क्या है?
महाकुंभ का आयोजन 144 वर्षों में एक बार प्रयागराज में होता है। 144 साल का अंतर 12 के गुणा 12 से आता है। इस आयोजन का महत्व अन्य कुंभ से कहीं अधिक होता है, और इसका आयोजन तब होता है जब चार कुंभों का चक्र पूरा होता है।
सिंहस्थ क्या है?
सिंहस्थ का आयोजन उज्जैन और नासिक में तब होता है जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। इसे सिंहस्थ इसलिए कहा जाता है क्योंकि बृहस्पति सिंह राशि में होता है।
कुंभ मेले के चार प्रमुख स्थल
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हरिद्वार: हरिद्वार में कुंभ का आयोजन तब होता है जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं।
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प्रयागराज: प्रयागराज में कुंभ पर्व तब आयोजित होता है जब सूर्य मकर राशि में और बृहस्पति वृष राशि में प्रवेश करते हैं।
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नासिक: नासिक में कुंभ का आयोजन गोदावरी नदी के तट पर होता है, जब बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करते हैं।
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उज्जैन: उज्जैन में कुंभ तब होता है जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं।
पौराणिक मान्यताएं और ज्योतिषीय विश्लेषण
कुंभ और अर्धकुंभ के आयोजन को लेकर पौराणिक ग्रंथों जैसे नारदीय पुराण, शिव पुराण और ब्रह्मा पुराण में भी ज्योतिषीय विश्लेषण दिए गए हैं। इन पर्वों का आयोजन हर तीन साल के अंतराल पर होता है, जहां हरिद्वार से शुरुआत होती है और फिर अन्य स्थानों पर होते हैं।
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