La Nina : तो इसलिए पड़ रही कड़ाके की ठंड, ला नीना याद दिला रहा नानी

ला नीना प्रभाव (La Nina Effect) के चलते इस साल भारत में कड़ाके की ठंड पड़ेगी। उत्तर भारत में शीतलहर के साथ तापमान गिरावट और बर्फबारी का असर देखने को मिलेगा।

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Sourabh Bhatnagar
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भैया ऐसी सर्दी तो सालों बाद पड़ी है। कुछ करने का न तो मन हो रहा है और ना ही हिम्मत। आखिर ऐसा क्या खास है इस बार की सर्दी में, तो आइए समझते हैं जमकर सर्दी पड़ने के वैज्ञानिक कारण को। दरअसल इस साल मौसम का मिजाज देशवासियों के लिए और भी चुनौतीपूर्ण होने वाला है। विश्व मौसम संगठन (World Meteorological Organization) यानी डब्ल्यूएमओ (WMO) ने अनुमान लगाया है कि भारत के कई हिस्सों में इस बार कड़ाके की ठंड (Severe Cold) पड़ने की संभावना है। इसका मुख्य कारण ला नीना प्रभाव (La Nina Effect) बताया जा रहा है, जो वैश्विक स्तर पर मौसम में बड़ा बदलाव लाता है।

इस साल ठंड होगी सामान्य से ज्यादा

डब्ल्यूएमओ के अनुसार, इस साल ठंड की अवधि लंबी हो सकती है और तापमान सामान्य से अधिक गिर सकता है। उत्तर भारत (North India) के मैदानी और पहाड़ी इलाकों में इसका असर सबसे ज्यादा देखने को मिलेगा। रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर से नवंबर 2024 के बीच ला नीना बनने की संभावना 55% है और अक्टूबर 2024 से फरवरी 2025 तक इसके प्रभावी होने की संभावना 60% तक बढ़ जाएगी। यानी इस बार सर्दी से जल्दी राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। 
यहां रहेगा सर्दी का ज्यादा असर- कलर बॉक्स
ला नीना प्रभाव के चलते भारत के उत्तरी राज्यों जैसे दिल्ली (Delhi), उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh), पंजाब (Punjab), हरियाणा (Haryana), राजस्थान (Rajasthan) और हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में कड़ाके की ठंड का प्रकोप रहेगा।

ला नीना प्रभाव क्या है?

दरअसल ला नीना (La Nina) समुद्र के तापमान से जुड़ी जलवायु घटना है। जब प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) के मध्य और पूर्वी हिस्से में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से कम हो जाता है, तो इसे ला नीना कहा जाता है। यह घटना वैश्विक मौसम चक्र को प्रभावित करती है। भारत में इसका असर मॉनसून (Monsoon) के दौरान ज्यादा बारिश और सर्दियों में अधिक ठंड के रूप में देखने को मिलता है। चलिए इसे चित्र से समझते हैं। 

ला नीना के कारण होने वाले बदलाव

  • भारत (India): सामान्य से अधिक ठंड और शीतलहर।
  • ऑस्ट्रेलिया (Australia): बाढ़ की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
  • पेरू और इक्वाडोर (Peru and Ecuador): सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • अमेरिका (USA): सर्दियों में बर्फबारी का प्रकोप बढ़ता है।
  • पश्चिम प्रशांत महासागर (Western Pacific): समुद्र का तापमान सामान्य से अधिक होता है।

क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ?

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पर्यावरण वैज्ञानिकों का कहना है कि इस साल का ला नीना प्रभाव (La Nina Effect) लंबे समय तक बना रहेगा। विशेषज्ञों के अनुसार, सर्दियों के बीच-बीच में शीतलहर की तीव्रता बढ़ सकती है, जिससे आम जनजीवन प्रभावित होगा।

साइबेरिया से आने वाली ठंडी हवाएं

ला नीना के दौरान, साइबेरिया (Siberia) की ठंडी हवाएं उत्तर भारत की ओर बहने लगती हैं। यह हवाएं उत्तर-पश्चिमी भारत में तापमान को और अधिक गिरा देती हैं। इससे दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में कड़ाके की ठंड पड़ने की संभावना है।

भारत में ठंड पर असर

भारतीय मौसम विभाग (IMD) का कहना है कि इस साल ला नीना प्रभाव के चलते उत्तर भारत में शीतलहर (Cold Wave) लंबे समय तक जारी रहेगी। इसके अलावा, पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) की गतिविधियों के कारण बर्फबारी और बारिश का सिलसिला जारी रहेगा।

विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों के अनुसार, इस बार का ला नीना प्रभाव (La Nina Effect) अधिक तीव्र हो सकता है। इससे साइबेरिया (Siberia) की ठंडी हवाएं उत्तर भारत की ओर बहेंगी और तापमान में भारी गिरावट आएगी।

FAQ

ला नीना प्रभाव क्या है?
ला नीना प्रशांत महासागर की जलवायु घटना है जिसमें समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से कम हो जाता है।
ला नीना का भारत में क्या असर पड़ता है?
इसके कारण भारत में सर्दियों में कड़ाके की ठंड और शीतलहर का प्रकोप बढ़ता है।
ला नीना और अल नीनो में क्या अंतर है?
अल नीनो गर्मी बढ़ाता है, जबकि ला नीना ठंड और बारिश बढ़ाता है।
ला नीना की वजह से भारत में सर्दी क्यों बढ़ेगी?
प्रशांत महासागर में ला नीना के कारण तापमान गिरता है और साइबेरिया से ठंडी हवाएं भारत में आती हैं।
ला नीना का असर कितने समय तक रहता है?
आमतौर पर इसका असर 9 से 12 महीने तक रहता है।

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