NEW DELHI. उद्योगपति गौतम अडानी के शेयरों में गिरावट के बीच कांग्रेस ने संसद में भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को लेकर सरकार के खिलाफ हंगामा किया। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि एलआईसी ने अडानी को नियमों के विपरीत बड़ा लोन दिया है, जिससे एलआईसी और उसके निवेशकों का बड़ा नुकसान हो सकता है। ये पहली बार नहीं है, जब एलआईसी पर गड़बड़ी के आरोप लग रहे हैं। आज से 66 साल पहले भी एलआईसी के शेयरों को लेकर संसद में बवाल हुआ था। 16 दिसंबर 1957 को कांग्रेस सांसद फिरोज गांधी के अर्जेंट नोटिस पर लोकसभा स्पीकर ने उन्हें बोलने की इजाजत दी थी। फिरोज ने एलआईसी में हुए घपलों का यहां जिक्र किया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि वित्त मंत्री के कहने पर एलआईसी ने बोगस शेयर खरीदे। इसके बदले कांग्रेस को 2.5 लाख रुपए का चंदा मिला। फिरोज के आरोप के बाद संसद में विपक्षी पार्टियों ने हंगामा किया था। हंगामे को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को रिटायर जज की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी बनानी पड़ी थी।
एलआईसी से डील के बदले मूंदड़ा ने कांग्रेस को दिया था 2.50 लाख का चंदा
साल 1957 में कोलकाता के एक सटोरिया और व्यापारी हरिदास मूंदड़ा ने अपनी कंपनी के बोगस शेयर एलआईसी को बेच दिए थे। दरअसल, मूंदड़ा की कंपनी 1.20 करोड़ रुपए की थी, लेकिन कंपनी पर 5.25 करोड़ रुपए का कर्ज हो चुका था। मूंदड़ा ने उस वक्त एक मीटिंग केंद्रीय वित्त सचिव एचएम पटेल से की थी। यहां मूंदड़ा ने कहा था कि अगर एलआईसी शेयर खरीदती है, तो लोग इसमें निवेश करेंगे और फिर कंपनी का नुकसान नहीं होगा। बाद में ऐसा ही हुआ और एलआईसी ने बिना नियमों के पालन किए 1.20 करोड़ रुपए के शेयर खरीद लिए। शेयर खरीदने के बाद एलआईसी को पता चला कि मूंदड़ा की कंपनी पर भारी कर्ज है। यहां आरोप लगा था इस डील के एवज में मूंदड़ा ने कांग्रेस को 2.50 लाख रुपए का चंदा दिया। पंडित नेहरू इससे तिलमिला गए और जांच कराने की बात कही।
ये खबर भी पढ़ें...
मामले में वित्त मंत्री, वित्त सचिव और एलआईसी के चेयरमैन की हो गई थी छुट्टी
एलआईसी की ओर से बोगस शेयर खरीदने के आरोप पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने मुंबई हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीश एमसी छागला को जांच का जिम्मा सौंपा। छागला ने ओपन कोर्ट में 24 दिनों तक जांच चली की। इसमें में वित्त मंत्री टीटी कृष्णमचारी, वित्त सचिव और एलआईसी के चेयरमैन घेरे में आ गए। फरवरी 1958 में तीनों की कुर्सी चली गई। इसी केस में मूंदड़ा को 22 साल की सजा मिली। 6 जनवरी 2018 को मूंदड़ा की मौत हो गई थी।