पुरी में निकली भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा, आज भी जगन्नाथ की मूर्ति में धड़कता है श्री कृष्ण का हृदय, जानिए इससे जुड़ी कथा

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Pratibha Rana
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पुरी में निकली भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा, आज भी जगन्नाथ की मूर्ति में धड़कता है श्री कृष्ण का हृदय, जानिए इससे जुड़ी कथा

Puri. ओडिशा स्थित जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ की 146वीं भव्य रथ यात्रा आज  (20 जून) को हर्षोल्लास के साथ निकाली गई है। भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र रथ में सवार होकर नगर यात्रा पर निकले हैं।  बता दें, रथयात्रा प्रारंभ होने से पहले ओडिशा के राजा रथ के चलने वाले मार्ग पर झाडू लगाकर उसे साफ करते हैं। यह प्रथा प्राचीनकाल से चली आ रही है। प्रचलित कथाओं में बताया जाता है कि आज भी जगन्नाथ जी की मूर्ति में भगवान श्रीकृष्ण का हृदय धड़कता है। यात्रा में शामिल होने के लिए लाखों भक्त दूर-दूर से आते हैं। 



मान्यता- यहां साक्षात विराजमान हैं भगवान श्रीकृष्ण 



ओडिशा स्थित जगन्नाथ पुरी की गणना सिद्ध चारधाम में की जाती है। हिन्दू धर्म में इस स्थान और भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का विशेष महत्व है। ऐसा इसलिए क्योंकि मान्यता है कि यहां भगवान श्री कृष्ण साक्षात विराजमान हैं। इसलिए जगन्नाथ पुरी को 'धरती का वैकुंठ' इस नाम से भी जाना जाता है। पुराणों में भी इस विशेष स्थान का और भगवान शनीलमाधव की लीलाओं का वर्णन मिलता है। जिस वजह से इस इस धाम का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। 



प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा



आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन भगवान जगन्नाथ विशाल रथ पर आसीन होकर यात्रा पर निकलते हैं। यह प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है और जगन्नाथ पुरी धाम में रथ यात्रा को उत्सव के रूप में धूम-धाम से मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ उनके बड़े भाई भगवान बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा भी मंदिर से बाहर निकलकर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं और नगर भ्रमण कर गुंडिचा मंदिर जाते हैं।



अद्भुत हैं तीनों भाई-बहन की मूर्तियां



सृष्टि के पालनहार भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन देवी सुभद्रा के साथ पुरी धाम में रहते हैं। यहां स्थापित तीनों भाई-बहन की मूर्तियों को पवित्र वृक्ष की लकड़ियों से उकेरा जाता है और उनकी पूजा की जाती है। इन मूर्तियों को हर 12 साल के बाद बदलने का विधान है। अनोखी बात यह है कि गर्भ गृह में स्थापित भगवान मूर्तियां अर्ध-निर्मित हैं। इसके पीछे भी एक रोचक कथा का वर्णन मिलता है। तीनों भाई-बहन की मूर्तियां अद्भुत हैं।



क्यों अधूरी रह गई थीं भगवान की मूर्तियां?



किवदंतियों के अनुसार, राजा इंद्रदयुम्न ने बूढ़े बढ़ई के रूप में जब भगवान विश्वकर्मा को मूर्ति निर्माण का कार्य सौंपा था। तब विश्वकर्मा ने राजा के सामने यह शर्त रखी थी कि वह बंद कमरे में मूर्तियों का निर्माण करेंगे। साथ ही यह भी कहा था कि जब तक यह मूर्तियां नहीं बन जाएगी, तब तक कोई भी कमरे के अंदर प्रवेश नहीं कर सकता है, राजा भी नहीं। अगर कोई कमरे में आता है तो वह मूर्ति का निर्माण छोड़ देंगे। राजा ने इस शर्त को स्वीकार किया और विश्वकर्मा मूर्तियों के निर्माण में जुट गए। नितदिन राजा इंद्रदयुम्न दरवाजे के बाहर खड़े होकर आवाज सुनते और यह सुनिश्चित करते कि अंदर मूर्तियों का कार्य चल रहा है या नहीं। एक दिन अंदर से कोई आवाज नहीं आ रही थी, तब राजा को यह आभास हुआ कि बढ़ई कार्य छोड़कर चला गया है। इसी बात को देखने के लिए उन्होंने कमरे का दरवाजा खोल दिया और शर्त के अनुसार उसी समय विश्वकर्मा स्वर्गलोक के लिए प्रस्थान कर गए। इस प्रकार भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी रह गई। आज भी उसी रूप में भगवान विराजमान हैं।



भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में क्यों धड़कता है दिल?



मान्यता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण अपना देह त्यागकर वैकुंठ धाम चले गए, तब उनके शरीर का अंतिम संस्कार पांडवों द्वारा पुरी में किया गया था। भगवान श्रीकृष्ण का पूरा शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया था, लेकिन उनका हृदय जीवित रहा। तब से आज तक उनके हृदय को भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में सुरक्षित रखा गया है और माना जाता है कि आज भी भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में भगवान श्रीकृष्ण में हृदय धड़कता है।



हर साल ऐसा रहता है रथयात्रा का भव्य रूप



यात्रा में बलदेव प्रभु का रथ सबसे आगे, उनके पीछे सुभद्राजी का रथ और सबसे पीछे जगन्नाथदेव का रथ होता है। हर साल रथयात्रा प्रारंभ होने से पूर्व ओडिशा के राजा रथ चलने वाले मार्ग पर झाडू लगाकर उसे साफ करते हैं। यह प्रथा प्राचीनकाल से ही है। राजा अपनी राज पोशाक त्यागकर साधारण व्यक्ति जैसे वस्त्र धारण करते हैं और अपने हाथों से मार्ग में चंदन जल छिड़ककर स्वर्ण के हत्थेवाले झाडू से मार्ग की सफाई करते हैं। पूर्व में लोगों में भगवान जगन्नाथ के प्रति कोई विशेष भाव रथयात्रा में कीर्तन और नृत्य न होने से विशेष भाव उदित नहीं होते थे, लेकिन बाद में कीर्तन-नृत्य के द्वारा अपने आंतरिक भावों को प्रकट कर रथयात्रा को भक्ति रसमय बना दिया गया और इस रस के आस्वादन हेतु बंगाल, ओडिशा बिहार और भारतवर्ष के अन्य स्थानों से लाखों की संख्या में भक्त लोग हर साल  रथयात्रा में आने लगे। 



धार्मिक मान्यता- भगवान जगन्नाथ के दर्शन का है विशेष महत्व



धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आज के दिन भगवान जगन्नाथ पूर्ण रूप से स्वस्थ होकर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। माना जाता है कि इस विशेष अवसर पर भगवान जगन्नाथ के दर्शन से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। साथ ही अगले दिन यानी रथ यात्रा के अवसर पर रथ यात्रा में शामिल करने से और श्रीहरि के दर्शन करने से अक्षय पुण्य के समान फल प्राप्त होते हैं। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा तीन विशेष रथों पर विराजमान होकर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं और 10 दिनों तक यहीं विश्राम करते हैं।

 


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