BHOPAL. गुड फ्राइडे ईसाई धर्म के लोगों का त्योहार है। सुनने में ऐसा लगता है कि ये जश्न मनाने का त्योहार है, लेकिन ये जश्न का नहीं बल्कि शोक का त्योहार है। शुक्रवार के ही दिन प्रभु यीशु सूली पर चढ़ाए गए थे। भगवान ईसा मसीह ने शारीरिक और मानसिक यातनाएं सहते-सहते अपना जीवन मानव जाति के लिए कुर्बान कर दिया था। इसलिए ईसाई धर्म के लोग इस दिन को गुड फ्राइडे के रूप में मनाते हैं।
गुड फ्राइडे का इतिहास
2004 साल पहले प्रभु ईसा मसीह यरुशलम में रहते थे। वे मानवता और कल्याण के लिए भाईचारे, एकता और शांति के उपदेश दिया करते थे। लोग उन्हें परमपिता परमेश्वर का दूत मानते थे। इसलिए कुछ पाखंडी धर्मगुरुओं ने यहूदी शासकों के कान यीशु के खिलाफ भरने शुरू किए। एक दिन उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें सूली पर चढ़ाने का फरमान जारी कर दिया गया। प्रभु यीशु को कांटों का ताज पहनाया। इसके बाद सूली को कंधे पर उठाकर ले जाने के लिए मजबूर किया और फिर कीलों से ठोककर उन्हें सूली पर लटका दिया गया।
प्रभु यीशु के आखिरी शब्द क्या थे?
ईसा मसीह की क्षमा शक्ति अद्भुत मिसाल मानी गई। सूली पर लटकाने से पहले उन्हें कांटों का ताज पहनाया गया। इसके बाद भी उनके मुंह से सिर्फ क्षमा और कल्याण के संदेश ही निकले। जिन लोगों ने यीशु को सूली पर लटकाया उनके लिए मृत्यु से पहले उन्होंने कहा कि 'हे ईश्वर, इन्हें क्षमा करें क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।'
यीशु के आखिरी वक्त में आया जलजला
ईसाई धर्म की पवित्र बाइबिल में यीशु को सूली पर चढ़ाने की घटना के बारे में विस्तार से बताया गया है। प्रभु यीशु को पूरे 6 घंटों तक सूली पर लटकाया गया था। उनके आखिरी 3 घंटों में चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा छा गया था। यीशु ने जब प्राण त्यागे तो एक जलजला-सा आ गया था। कब्रों की कपाटें टूट गईं और दिन में अंधेरा हो गया। इसलिए गुड फ्राइडे के दिन दोपहर 3 बजे चर्च में प्रार्थना सभाएं होती हैं, लेकिन किसी भी तरह का जश्न और समारोह नहीं होता।
ईस्टर को जीवित हो उठे प्रभु यीशु
गुड फ्राइडे के 3 दिन बाद ईस्टर मनाया जाता है। सूली पर चढ़ाने के 3 दिनों बाद प्रभु यीशु जीवित हो उठे थे। ऐसा माना जाता है कि कब्र का पत्थर अपनी जगह पर नहीं था। कब्र में यीशु का शरीर भी नहीं था। प्रशु यीशु प्रकट हुए और कहा कि मैं जीवित हो उठा हूं। जाओ सबसे कह दो कि परम पिता परमेश्वर की संतान पुन: धरती पर आ गए हैं। ये कहकर प्रभु यीशु अदृश्य हो गए। प्रभु यीशु जीवित होने के 40 दिनों तक धरती पर रहे और फिर स्वर्ग लोक लौट गए। धरती पर रहने के दौरान उन्होंने अपने शिष्यों को उपदेश दिए और धर्म, कर्म, शांति के साथ मानवता की शिक्षा दी।