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उज्जैन में बाबा महाकाल की सवारी
सावन का महीना शिवभक्तों के लिए एक बड़ा उत्सव होता है और ऐसे में इस समय मध्यप्रदेश के उज्जैन के बाबा महाकाल की सवारी का नजारा बेहद खास होता है। आज हम इस सवारी की कुछ खास बातें जानेंगे।
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महाकाल की सवारी का इतिहास
महाकाल की सवारी की परंपरा राजा भोज ने शुरू की थी, जब नए रथ और हाथी शामिल किए गए थे। यह परंपरा आज भी विधिपूर्वक निभाई जाती है।
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राजाधिराज का नगर भ्रमण
बाबा महाकाल को उज्जैन का राजाधिराज माना जाता है। सावन के महीने में वे अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए मंदिर से नगर भ्रमण पर निकलते हैं।
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सृष्टि के संचालक महाकाल
मान्यता है कि वर्षा काल में सभी देवी-देवता शयनकाल में चले जाते हैं और उस दौरान बाबा महाकाल ही पूरी सृष्टि का संचालन करते हैं। इसलिए, उनका ये भ्रमण और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
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दिव्य रूप और शाही सवारी
सावन के हर सोमवार को बाबा महाकाल अपने अलग-अलग रूप में चांदी की पालकी पर सवार होकर भक्तों को दर्शन देने निकलते हैं। इस दौरान जय महाकाल के जयकारों से पूरा उज्जैन गूंज उठता है।
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शाही सम्मान और आरती
सवारी शुरू होने से पहले श्री महाकालेश्वर मंदिर (baba mahakal king of ujjain) के सभा मंडप में पूजा-अर्चना की जाती है। महाकाल की सवारी में तलवारबाज और घुड़सवार भी शामिल होते हैं, जो इसे और भी रोमांचक और आकर्षक बनाते हैं।
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महाकाल की सवारी का महत्व
महाकाल की सवारी (Baba Mahakal of Ujjain) हर साल सावन माह में निकलती है। इसे लेकर मान्यता है कि महाकाल प्रजा का हाल जानने निकलते हैं और उनके दर्शन से भय और रोगों का नाश होता है। यह अद्भुत मिलन भक्त और भगवान के बीच होता है, जिसे देखने के लिए लोग देश-विदेश से आते हैं।Madhya Pradesh