महाकुंभ-2025: पुराणों में क्या बताया गया है कुंभ स्नान का महत्व

महाकुंभ-2025 प्रयागराज में आयोजित होगा, जहां लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान करेंगे। यह आयोजन पापों से मुक्ति और पुण्य की प्राप्ति का प्रतीक है, जैसा कि सनातन परंपरा में माना जाता है।

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Sandeep Kumar
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उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ-2025 का आयोजन होने वाला है, जिसमें देश और दुनिया भर से सनातन धर्म के अनुयायी त्रिवेणी के संगम पर जुटेंगे। यहां लोग एक साथ गंगा स्नान करेंगे और पवित्र जल में डुबकी लगाने से उनकी आत्मा शुद्ध होगी। यह स्नान पुण्य के साथ-साथ पापों से मुक्ति का भी प्रतीक है, जैसा कि सनातन परंपरा में माना जाता है। हर डुबकी के साथ "हर-हर गंगे" का उद्घोष एकता और शुद्धता का प्रतीक बनता है।

महाकुंभ एकता और शुद्धता का प्रतीक

महाकुंभ-2025 प्रयागराज में एक विशेष अवसर होगा जब लाखों श्रद्धालु एक साथ गंगा स्नान करेंगे। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। गंगा में स्नान करने से न केवल पापों की शुद्धि होती है, बल्कि यह एक प्रकार का आंतरिक परिवर्तन भी लाता है। स्नान करने वाले श्रद्धालु यह प्रार्थना करते हैं कि गंगा उनके पापों को धोकर उन्हें नया जीवन प्रदान करें।

पाप-पुण्य की अवधारणा हर संस्कृति में

पाप और पुण्य की अवधारणा न केवल सनातन धर्म, बल्कि विश्वभर के विभिन्न धर्मों में भी समान रूप से पाई जाती है। चाहे वह ईसाई धर्म हो, इस्लाम या सनातन धर्म, हर धर्म में पाप और पुण्य का महत्व है। पवित्र जल का महत्व दुनिया भर की संस्कृतियों में समान रूप से पाया जाता है। गंगा जल, जो पवित्रता और शुद्धि का प्रतीक है, सनातन धर्म में विशेष स्थान रखता है। महाकुंभ में स्नान करने से न केवल पाप धुलते हैं, बल्कि यह एक नई शुरुआत का प्रतीक बनता है।

महामुनि व्यास ने पुराणों में क्या लिखा है?

एक बड़ा ही रोचक और प्रसिद्ध श्लोक है, अष्टादश पुराणेषु, व्यासस्य वचनद्वयं, परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनम्. यानी कि 18 पुराणों के सार में महामुनि वेदव्यास एक ही तथ्य कहते हैं। किसी के साथ परोपकार करना पुण्य है और किसी को जरा सा भी कष्ट देना पाप है।धरती पर मानव जीवन की शुरुआत के साथ ही पाप और पुण्य दो सबसे बड़ी भावनाओं का भी जन्म हुआ। यह दोनों ही मनुष्य की छाया बनकर उसके साथ ही चलते रहे।  जैसे ही किसी मनुष्य की जीवन यात्रा शुरू होती है, पाप और पुण्य की भी यात्रा प्रारंभ हो जाती है। 

स्कंद पुराण कहता है कि माघ मास में गंगा में स्नान करने वाले व्यक्ति के पितर युगों-युगों तक स्वर्ग में वास करते हैं।
माघे मासे गंगे स्नानं यः कुरुते नरः
युगकोटिसहस्राणि तिष्ठंति पितृदेवताः।


श्रीमद्भागवत पुराण गंगा स्नान का महत्व बताते हुए कहा गया है कि, पवित्र समय में गंगा के तीर्थ पर स्नान करने वाला व्यक्ति पुण्य प्राप्त कर वैकुण्ठ धाम को जाता है।

तत्रापि यः स्नानकृत् पुण्यकाले
गंगा जलं तीर्थमथाधिवासम्।
पुण्यं लभेत् कृतकृत्यः स गत्वा
वैकुण्ठलोकं परमं समेति..

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