राजस्थान के मेवाड़ राजघराने के बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ का चित्तौड़गढ़ के किले में परंपरा के अनुसार खून से राजतिलक हुआ। दरअसल मेवाड़ राजघराने के सदस्य और पूर्व सांसद महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद सोमवार 25 नवंबर को उनके बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ ( Vishwaraj Singh Mewar ) का राजतिलक किया गया। 77वें दीवान के रूप में राजगद्दी पर आसीन हुए विश्वराज सिंह मेवाड़ उदयपुर के सिटी पैलेस ( Udaipur City Palace) में स्थित धूणी के दर्शन करने पहुंचे। हालांकि उन्हें दर्शन नहीं करने दिया गया।
ठिकानेदारों ने अपमान बताया
दरअसल एक दिन पहले ही कानून के अनुसार नोटिस जारी कर दोनों जगह पर अनाधिकृत लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी। इस नोटिस के बाद मेवाड़ के ठिकानेदारों ने इसे अपमान बताया।
दर्शन करने से रोका गया
बताया जा रहा है कि मेवाड़ में परंपरा रही है कि नए दीवान के राजगद्दी पर आसीन होने के बाद वह धूणी के दर्शन करने किए जाते हैं। इसके बाद एकलिंग के दर्शन कर शोक को भंग किया जाता है। सिटी पैलेस पर Maharana Mewar Charitable Trust का आधिपत्य होने की वजह से विश्वराज सिंह मेवाड़ को दर्शन के लिए रोका गया।
दोनों पक्ष अपनी-अपनी बात पर अड़े
महेंद्र सिंह मेवाड़ के भाई और विश्वराज के चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ के परिवार ने परंपरा निभाने से रोकने के लिए सिटी पैलेस के दरवाजे बंद कर दिए हैं। विश्वराज सिंह को परंपरा के तहत धूणी दर्शन के लिए सिटी पैलेस में जाना था। माहौल नहीं बिगडे़ इसके लिए जिला कलेक्टर अरविंद पोसवाल ( Collector Arvind Poswal ) और एसपी योगेश गोयल सिटी पैलेस ( SP Yogesh Goyal ) पहुंचे। दोनों पक्षों के बीच समझौता कराने की कोशिश की गई। दोनों अपनी बात पर अड़े रहे।
क्यों हुई पत्थरबाजी
जब City Palace में दर्शनों के लिए Vishwaraj Singh Mewar अपने समर्थकों के साथ जाने लगे तो उन्हें रोका गया। इसके बाद लगातार समझाइश का दौर चला, लेकिन कोई समझौता नहीं हो सका। सिटी पैलेस के अंदर से विश्वराज सिंह मेवाड़ के समर्थकों और प्रशासन के बीच झड़प हुई। इस दौरान पत्थरबाजी भी की गई। पत्थरबाजी की वजह से कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। इस घटना के बाद विश्वराज सिंह के समर्थकों ने जमकर नारेबाजी की।
चित्तौड़ में खून से किया गया राजतिलक
इससे पहले, चित्तौड़गढ़ में विश्वराज सिंह मेवाड़ को गद्दी पर बैठाने की परंपरा निभाई गई। लोकतंत्र आने के बाद राजशाही खत्म हो गई है, लेकिन प्रतीकात्मक यह रस्म निभाई जाती है। सोमवार को चित्तौड़गढ़ किले के फतह प्रकाश महल में दस्तूर (रस्म) कार्यक्रम के दौरान खून से राजतिलक की रस्म हुई।
राज परिवार में पहले से चल रहा प्रॉपर्टी विवाद
दरअसल, उदयपुर के आखिरी महाराणा भगवत सिंह ने 1963 से 1983 तक राजघराने की कई प्रॉपर्टी को लीज पर दे दिया था। कुछ प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी बेच दी। इनमें लेक पैलेस, फतह प्रकाश, जग निवास, शिव निवास, गार्डन होटल, जग मंदिर, सिटी पैलेस म्यूजियम जैसी बेशकीमती प्रॉपर्टीज शामिल थीं। ये सभी प्रॉपर्टी राजघराने द्वारा स्थापित एक कंपनी को ट्रांसफर हो गई थीं। यहीं से विवाद शुरू हुआ। उदयपुर के पूर्व राजपरिवार में पूरा झगड़ा उदयपुर सिटी पैलेस से जुड़ी तीन अलग-अलग प्रॉपर्टी पर है। इनमें राजघराने का बड़ी पाल, घास घर और शाही पैलेस शंभू निवास शामिल हैं।
कोर्ट ने 4-4 साल के लिए दे दी प्रॉपर्टी
करीब 37 साल सुनवाई चलने के बाद उदयपुर की जिला अदालत ने 2020 में एक चौंकाने वाला फैसला दिया। कोर्ट ने कहा कि जो संपत्तियां भगवत सिंह ने अपने जीवनकाल में बेच दी थीं, उन्हें दावे में शामिल नहीं किया जाएगा। इस फैसले के बाद सिर्फ तीन संपत्ति शंभू निवास पैलेस, बड़ी पाल और घास घर ही बची, जिसे बराबर हिस्सों में बांटा जाना था। 28 जून 2022 को हाईकोर्ट ने उदयपुर कोर्ट के फैसले और उसे लागू करने पर रोक लगा दी। यह रोक अपीलों के अंतिम निर्णय तक के लिए लगाई गई। इस फैसले के बाद अब शंभू निवास, घास घर और बड़ी पाल, तीनों अरविंद सिंह मेवाड़ के पास ही रहेंगे।
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