नीरज सोनी, JHANSI. झांसी को दुनिया में विशिष्ट पहचान दिलाने का श्रेय वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई को जाता है। 181 साल पहले झांसी के गणेश मंदिर पर ही मनु यानी मणिकर्णिका (लक्ष्मीबाई) की शादी मई माह में हुई थी। 19 मई 1842 को मनु की शादी झांसी नरेश गंगाधर राव से मराठी विधि विधान से संपन्न हुई थी। वरमाला और फेरे की रस्में इस मंदिर में संपन्न हुई थी। इससे पहले की सभी रस्में दुर्गाबाई के बाड़े में संपन्न हुई थी। लक्ष्मीबाई और गंगाधर राव के विवाह की सालगिरह को पूरे धूम धाम से मनाया जाता है। मराठी समाज द्वारा इस कार्यक्रम को भव्य रूप से आयोजित किया जाता है।
आज भी जीवित है परंपरा
गणेश मंदिर की देख रेख करने वालों के अनुसार रानी लक्ष्मीबाई के जन्म दिवस और उनके बलिदान दिवस को तो हर व्यक्ति याद करता ही है, लेकिन युवा पीढ़ी को वह दिन भी याद रहना चाहिए जब झांसी को रानी लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगना मिली। इस दिन पर बच्चियां लक्ष्मीबाई के दुल्हन स्वरूप में तैयार होती हैं। इसके साथ ही एक शोभायात्रा भी निकाली जाती है, जो पूरे शहर में भ्रमण करने के बाद गणेश मंदिर पहुंचती है। यहां विवाह की रस्में संपन्न कराई जाती हैं।
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टीके के समय बदला जाता है लड़की का नाम
महाराष्ट्रीयन परंपरा के अनुसार विवाह में टीके के समय लड़की का नाम बदलने की परंपरा है। यही कारण था मनुकर्णिका से इनका नाम रानी लक्ष्मीबाई हो गया। विवाह के बाद मनु महारानी लक्ष्मीबाई बन गई। महाराजा के निधन के बाद उन्होंने राजगद्दी संभाली और इसके बाद समय ने ऐसा खेल-खेल में महारानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने के बाद विश्व पटल पर छा गई।
विभिन्न प्रतियोगिताओं का होता है आयोजन
महारानी लक्ष्मीबाई की 19 मई को उनके विवाह की 181वीं सालगिरह है। यह दिन महाराष्ट्र समिति धूमधाम से मनाता है। जिस गणेश मंदिर में झांसी के नरेश गंगाधर राव महारानी लक्ष्मी बाई के साथ विवाह बंधन में बंधे थे, वहां वैवाहिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दौरान महारानी लक्ष्मीबाई की वैवाहिक परिधानों पर चित्रकला प्रतियोगिता, शाम को मेहंदी प्रतियोगिता के अलावा महिला संगीत का भी आयोजन किया जाता है। जिसमें शहर के अनेकों लोग शामिल होते हैं।