महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आ रहे हैं। बीजेपी यहां सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। रुझानों में बीजेपी को 120 से ज्यादा सीटें मिलती नजर आ रही हैं। वहीं, बीजेपी की अगुआई वाले महायुति गठबंधन की शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजीत पवार गुट) का प्रदर्शन भी बेहतर माना जा रहा है।
सबसे खास यह है कि इस बार महाराष्ट्र में 66 फीसदी वोटिंग हुई है, जो 2019 के 61.1% से ज्यादा है। महायुति ने वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए प्रचार अभियान चलाया। देवेंद्र फडणवीस ने इस बढ़ी हुई वोटिंग को महायुति के लिए सकारात्मक संकेत बताया था। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बीजेपी, शिवसेना (शिंदे गुट), और एनसीपी (अजित पवार गुट) के सामूहिक प्रयास ने मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक लाने में मदद की। इस रणनीति से महायुति ने अपने विरोधियों से आगे बढ़ते हुए जीत का अंतर बढ़ाया है।
'द सूत्र' ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव पर करीब से नजर रखने वाले विशेषज्ञों से नतीजों को समझने की कोशिश की, इसमें पांच अहम फैक्टर निकलकर सामने आए।
पढ़िए ये खास रिपोर्ट...
1. महिलाओं का मिला भरपूर समर्थन
मध्य प्रदेश और हरियाणा में महिलाओं के लिए शुरू की गईं योजनाओं का दोनों राज्यों के परिणामों पर बड़ा असर पड़ा। मध्य प्रदेश और हरियाणा में बीजेपी ने बंपर जीत हासिल की। यही फॉर्मूला बाद में महाराष्ट्र में अपनाया गया। यहां बीजेपी की अगुआई में महायुति गठबंधन ने माझी लाड़की बहिन योजना लागू की। यही गेमचेंजर साबित हुई। आपको बता दें कि महाराष्ट्र में इस योजना में 2 करोड़ 34 लाख महिलाओं को हर महीने 1500 रुपए देने का ऐलान किया गया है। चुनाव से पहले शिंदे सरकार ने महिलाओं के खाते में रुपए भेजना शुरू कर दिए थे।
2. आरएसएस का जमीनी समर्थन
महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में हमेशा से आरएसएस का बड़ा रोल रहा है। इस चुनाव में भी संघ ने अंदरूनी तौर पर जबरदस्त का किया। जानकारी के अनुसार, 60 हजार से ज्यादा स्वयं सेवकों ने घर-घर लोगों से संपर्क साधा। वहीं, बीजेपी का स्ट्रॉन्ग बूथ मैनेजमेंट भी काम आया। जिस तरह पार्टी ने मध्य प्रदेश और हरियाणा में सफलता हासिल की, ठीक वही फॉर्मूला महाराष्ट्र में अपनाया गया। महाराष्ट्र के हर विधानसभा क्षेत्र में कोर कमेटियों की सक्रियता पर ध्यान दिया। पन्ना प्रभारी, बूथ कमेटी और शक्ति केंद्र पर काम किया। बीजेपी के प्रवासी नेताओं ने भावनात्मक जुड़ाव बढ़ाने के लिए स्थानीय कार्यक्रमों में भाग लिया। इस तरह संघ और बीजेपी ने अपने खेमे में परम्परागत वोटों को रखते हुए नए वोटर्स को भी अपने साथ किया।
3. भूपेंद्र यादव फिर शुभंकर साबित हुए
बीजेपी ने क्षेत्रीय क्षत्रपों को तवज्जो देकर राज्य के सभी इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत की। देश के कुछ ऐसे नेताओं को भी जिम्मेदारियां दी गई, जिनका महाराष्ट्र से भावनात्मक जुड़ाव रहा है। बीजेपी के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश ने महाराष्ट्र में डेरा डाला। महाराष्ट्र के लिए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को प्रभारी और केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव को सह प्रभारी बनाया गया। इन्हीं दोनों नेताओं को मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की कमान दी गई थी। भूपेंद्र यादव चुनावी रणनीति में माहिर माने जाते हैं। वहीं, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कोटे से सुहास भगत को महाराष्ट्र भेजा गया। इसी तरह मध्य प्रदेश में काम कर चुके अरविंद मेनन भी महाराष्ट्र में अहम भूमिका में रहे।
4. महाविकास अघाड़ी का कमजोर प्रदर्शन इसलिए
कांग्रेस की अगुआई वाले महाविकास अघाड़ी में शुरू से जोश नहीं दिखा। गठबंधन कोई ठोस मुद्दा भी जनता के सामने नहीं रख सका। महिलाओं को साधने के लिए भले योजना लाने की बात कही गई, लेकिन शिंदे सरकार पहले ही महिलाओं को राशि देने लगी। लोकसभा चुनाव में संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर सफलता पाने वाले महाविकास अघाड़ी के नेता कोई मुद्दा सेट नहीं कर सके। हालांकि गद्दारी और महंगाई जैसे पुराने मुद्दों को भुनाने की कोशिश हुई, लेकिन जनता ने इन्हें नकार दिया। महाविकास अघाड़ी की ओर से कोई ठोस रणनीति पूरे चुनाव में महाराष्ट्र के पांचों क्षेत्रों में कहीं भी नजर नहीं आई।
5. एम फैक्टर का बड़ा असर दिखा
लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए एम फैक्टर का साथ मिला। एम फैक्टर यानी मराठा, मुस्लिम और महार यानी दलितों ने महायुति को पूरा समर्थन दिया। बीते चुनावों का इतिहास देखें तो इससे बीजेपी को नुकसान होता रहा है, लेकिन इस बार गेम पलट गया। मराठा आरक्षण चाहते हैं। मुस्लिम बीजेपी विरोधी हैं और महार यानी दलितों को संविधान से छेड़छाड़ का मुद्दा सताता रहा है, महाविकास अघाड़ी इन मुद्दों को प्रभावी ढंग से जमीन पर नहीं उतार पाई। जबकि लोकसभा चुनाव में तीनों ने एमवीए का साथ दिया था, जिससे कांग्रेस को ज्यादा फायदा हुआ। अब विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने यह फैक्टर तोड़ दिया और बात बन गई।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र में मराठा करीब 22 फीसदी, मुस्लिम 13 फीसदी और महार यानी दलित करीब 12 फीसदी हैं। इस बार आदिवासियों ने भी बीजेपी के साथ कदमताल की। यही नहीं बीजेपी को महाराष्ट्र में संघ के माधव फॉर्मूला का भी साथ हर बार की तरह मिला। 'म' यानी माली, 'ध' यानी धनगर और 'व' मतलब बंजारा समाज।
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