महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों के नतीजे लगभग स्पष्ट हो गए हैं। महाराष्ट्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति ने शानदार जीत दर्ज की है। बीजेपी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, और विपक्ष को पिछली बार से भी कम सीटें मिली हैं। इस हार के साथ ही राहुल गांधी और चुनाव लड़ने की उनकी कार्यशैली भी सवालों के घेरे में आ गई है। भले ही कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे ने कमान संभाल रखी है, मगर पार्टी का संचालक कौन है, यह किसी से छिपा नहीं है। 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को आंशिक सफलता दिलाने के बाद फिर राहुल का करिश्मा चुक गया लगता है।
कांग्रेस की हार और राहुल गांधी का नेतृत्व
महाराष्ट्र की हार ने कांग्रेस और खासकर Rahul Gandhi के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बड़ा सवाल यह है कि अब राहुल गांधी को यह समझना होगा कि पार्टी चुनाव क्यों हारी। क्या उनके प्रचार का तरीका जनता से जुड़ने में नाकाम साबित हो रहा है। सच्चाई यह है कि कांग्रेस सोशल मीडिया पर तो सक्रिय रही, लेकिन जमीनी स्तर पर पार्टी की उपस्थिति कमजोर रही। कांग्रेसी विचारधारा वाले कुछ यू-ट्यूब चैनल भी लगातार यह हवा भरते रहते हैं कि कांग्रेस की लहर है। यह हरियाणा और अब महाराष्ट्र में साबित हो चुका है कि धरातल पर कांग्रेस के लिए सब सफाचट है। दरअसल यह नतीजे कांग्रेस के लिए सबक हैं, खासकर विदर्भ जैसे क्षेत्रों में जहां कभी कांग्रेस का दबदबा था। आखिर क्या हुआ महाराष्ट्र में चलिए समझते हैं…
विपक्ष का एंटी-डेवलपमेंट रवैया
दरअसल विपक्ष की रणनीति पूरी तरह एंटी-डेवलपमेंट की रही है। यही उसकी हार का मुख्य कारण बनी।
शिवसेना (यूबीटी) की गिरती साख
उद्धव ठाकरे ने बाला साहेब ठाकरे की राजनीतिक विरासत को कमजोर किया है। उनका प्रांतवाद और विकास विरोधी रवैया उन्हें जनता से दूर कर रहा है। शिवसेना (यूबीटी) का प्रदर्शन भी निराशाजनक रहा।
आखिर बीमारी क्या है?
लगातार चुनाव हार रही कांग्रेस में जान फूंकने के कई प्रयास हुए, लेकिन सब कोशिशें बेनतीजा ही रही। 2019 में हार के बाद एके एंटोनी की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई थी। कमेटी ने रिपोर्ट में हार के लिए 3 मुख्य कारणों को जिम्मेदार माना था।
फैसले लेने में देरी
रिपोर्ट में कहा गया था कि चुनाव प्रबंधन और टिकट बंटवारे जैसे अहम फैसले देरी से होते हैं। इस वजह से चुनाव में हार का सामना करना पड़ता है।
संगठन स्तर पर गुटबाजी
रिपोर्ट में कहा गया कि राज्य और जिला स्तर पर संगठन में काफी गुटबाजी है। इसे खत्म किए बिना चुनाव नहीं जीते जा सकते।
पॉपुलर चेहरे की कमी
रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी पॉपुलर और विश्वसनीय चेहरों की भारी कमी है, जिस वजह लोग कांग्रेस की नीति में भरोसा नहीं कर पाते हैं।
बदलाव की बात, मगर कुछ नहीं बदला
उत्तर प्रदेश समेत 5 राज्यों में हारने के बाद कांग्रेस नेताओं ने मई 2022 में राजस्थान के उदयपुर में 3 दिन तक चिंतन किया था। शिविर में वन पोस्ट-वन पर्सन फॉर्मूला समेत कई प्रस्ताव पास किए गए थे। हालांकि, इस फॉर्मूले को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने ही अब तक पालन नहीं किया है। खरगे कांग्रेस अध्यक्ष के साथ ही राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष भी हैं।
राहुल गांधी: हार के ट्वीट्स और कांग्रेस की चुनौतियां
पिछले सालों में राहुल गांधी ने हार स्वीकारते हुए कांग्रेस में सुधार की बात कई बार की है। इन ट्वीट्स से उनकी रणनीति और कांग्रेस की चुनौतियों का अंदाजा लगाया जा सकता है।
प्रमुख चुनावी हार और राहुल के ट्वीट्स
गुजरात चुनाव 2022: कांग्रेस को मात्र 17 सीटें मिलीं। राहुल ने लड़ाई जारी रखने का संदेश दिया।
यूपी, पंजाब, गोवा 2022: 5 राज्यों में हार के बाद संगठन मजबूत करने की बात कही।
बंगाल, असम 2021: असम में वापसी की उम्मीद थी, लेकिन हार हुई। राहुल ने नई रणनीति की बात कही।
लोकसभा चुनाव 2019: कांग्रेस फिर धराशाई। अमेठी में राहुल हार गए। संगठन सुधार पर जोर दिया।
नॉर्थ-ईस्ट 2018: त्रिपुरा, मेघालय, नगालैंड में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा।
यूपी, उत्तराखंड 2017: गठबंधन के बावजूद हार। सरकार गंवाने के बाद ट्वीट किया।
गुजरात, हिमाचल 2017: करीबी मुकाबले के बाद संगठन में सुधार की बात कही।
बंगाल, असम 2016: हार के बाद नई शुरुआत की बात।
दिल्ली 2015: कांग्रेस का सूपड़ा साफ। मजबूती से वापसी का वादा।
हरियाणा, महाराष्ट्र 2014: सरकार खोने पर नैतिक जिम्मेदारी ली।
लोकसभा चुनाव 2014: मोदी लहर में कांग्रेस धराशाई। राहुल ने अपनी जिम्मेदारी मानी।
राजस्थान, एमपी, दिल्ली 2013: AAP से सीखने की बात कही।
इसलिए फेल हो गए राहुल के सारे दांव
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम: छह महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस, एनसीपी, और उद्धव ठाकरे की शिवसेना (MVA) को कुल 43.71% वोट मिले थे। हालांकि, ताजा विधानसभा चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगियों ने 288 सीटों में से 218 सीटों पर बढ़त बना ली है, जबकि महाविकास अघाड़ी (MVA) सिर्फ 56 सीटों पर सिमट गई।
राहुल गांधी की रणनीति क्यों नहीं आई काम?
Rahul Gandhi ने अपनी सभाओं में संविधान (Constitution), आरक्षण (Reservation), और जातिगत जनगणना (Caste Census) जैसे मुद्दों को जोर-शोर से उठाया। वह लगातार कहते रहे, "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी।" उन्होंने दलित, ओबीसी, और आदिवासी वर्ग को लुभाने की कोशिश की, लेकिन महाराष्ट्र का सामाजिक ताना-बाना दिखाता है कि राहुल गांधी का यह नैरेटिव इस बार काम नहीं आया। छह महीने पहले लोकसभा चुनाव में जो दलित, ओबीसी, और मराठा समुदाय उनके साथ थे, उन्होंने इस बार बीजेपी की ओर रुख कर लिया।
महाराष्ट्र में घटा MVA का वोट शेयर
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, कांग्रेस को सिर्फ 10.58%, एनसीपी को 11.58%, और उद्धव शिवसेना को 10.67% वोट मिले। यानी कुल 32.83%। जबकि बीजेपी को 25.08%, अजित पवार की एनसीपी को 10.95%, और एकनाथ शिंदे की शिवसेना को 12.70% वोट मिले। इससे कुल 48.73% वोट महायुति को मिले।
लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अंतर
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 16.92%, एनसीपी को 10.27%, और उद्धव की शिवसेना को 16.52% वोट मिले थे। कुल 43.71% वोट के साथ MVA ने 48 में से 30 सीटें जीती थीं। इसके उलट, विधानसभा चुनाव में यह जनसमर्थन तेजी से घट गया।
Rahul Gandhi की हार के प्रमुख कारण
स्थानीय मुद्दों की अनदेखी
महाराष्ट्र की जनता ने लोकसभा चुनावों की तुलना में स्थानीय समस्याओं को अधिक तवज्जो दी।
बीजेपी का मजबूत प्रचार
महायुति का चुनावी प्रचार रणनीति राहुल गांधी की कमजोर रणनीति पर भारी पड़ा।
वोट शेयर में गिरावट
कांग्रेस और MVA के घटते वोट परसेंट ने यह संकेत दिया कि राहुल गांधी का नैरेटिव आकर्षक नहीं रहा।
इस खबर से जुड़े सामान्य सवाल
thesootr links
- मध्य प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- रोचक वेब स्टोरीज देखने के लिए करें क्लिक