रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मिकी ( Maharishi Valmiki ) को अपने विद्वता और तप के कारण महर्षि की पदवी प्राप्त हुई थी। महर्षि वाल्मिकी के जन्म दिन को ही वाल्मिकी जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस साल वाल्मिकी जयंती 17 अक्टूबर यानी आज गुरुवार को है। महर्षि वाल्मिकी का नाम केवल एक समुदाय तक ही सीमित नहीं है बल्कि उनका ज्ञान और मार्गदर्शन आज भी करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा है। आइए विस्तार से जानते हैं वाल्मिकी जयंती का महत्व।
वाल्मिकी जयंती कब है
महर्षि वाल्मिकी का जन्म आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इस साल महर्षि वाल्मिकी जयंती अक्टू का समापन 17 अक्टूबर को दोपहर 04 बजकर 55 मिनट पर होगा। ऐसे में वाल्मीकि जयंती गुरुवार, 17 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
क्या है महर्षि वाल्मिकी जयंती का महत्व
वाल्मिकी जयंती हर साल महर्षि वाल्मिकी के जन्मदिन पर मनाई जाती है। वाल्मिकी जी को भगवान राम का परम भक्त माना जाता है। महर्षि वाल्मिकी ने ही रामायण ( Ramayana )की रचना की थी। वाल्मिकी जयंती सभी लोग मनाते हैं, लेकिन वाल्मिकी समुदाय के लोगों के लिए वाल्मिकी जयंती विशेष मानी जाती है। वाल्मिकी समुदाय के लोग ऋषि वाल्मिकी को भगवान का रूप मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। इस दिन उनके मंदिरों और स्थानों को फूलों से सजाया जाता है और रामायण की चौपाई गाई जाती हैं।
महर्षि वाल्मिकी को लेकर ये कहानी प्रचलित है
महान ऋषि बनने से पहले महर्षि वाल्मीकि (Maharishi Valmiki ) एक डाकू थे, जिनका नाम रत्नाकर था। रत्नाकर (Ratnakar ) नाम के इस डाकू ने अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए वन में आने वाले लोगों को लूटा करते थे। एक दिन नारद मुनि (Narad Muni ) से मुलाकात ने उनका जीवन बदल दिया। नारद मुनि ने रत्नाकर से पूछा, क्या तुम्हारा परिवार तुम्हारे पापों (sins ) का भागीदार बनेगा? नारद मुनि की बातों ने रत्नाकर को झकझोर दिया। रत्नाकर ने अपने पापों के लिए पश्चाताप किया और क्षमा याचना के लिए तपस्या में लीन हो गए। उनकी तपस्या इतनी गहरी थी कि उनके चारों ओर चींटियों ने अपना घर बना लिया और वह वाल्मीकि ( चींटी के घर से निकला हुआ ) कहलाने लगे। महर्षि वाल्मीकि की कहानी हमें बताती है कि सच्चे पश्चाताप और तपस्या से इंसान कितना भी बड़ा पापी क्यों न हो, वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
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